Quantcast
Channel: हक और बातिल
Viewing all 658 articles
Browse latest View live

ईद के चाँद पे क्यूँ होता है बवाल ?

$
0
0


बुशरा अलवी
चाँद का देखा जाना इस्लामी फ़िक़्ह का बहुत ही अहम मसअला है जिसके बारे में हमारे मराजे और विद्वानों ने बहुत सी किताबें लिखी हैं, और इस्लामी शरीअत के बहुत से काम जैसे रमज़ान के रोज़े, हज, ईद, बक़्रईद शबे क़द्र जैसी चीज़ें चाँद से ही साबित होती हैं, और इस्लाम का विभिन्न समुदायों में बल्कि मराजे तक़लीद के बीच भी इस विषय पर विभिन्न प्रकार के दृष्टिकोण होने के कारण मुसलमानों के बीच रमज़ान, ईद बक़्रईद जैसे मसअलों पर इख़्तेलाफ़ पैदा होता रहता है और कभी कभी यह विरोध और इख़्तेलाफ़ इतना ज़्यादा बढ़ जाता है कि लोगों की आवाज़ें बुलंद हो जाती हैं और हर तरफ़ से विरोध के स्वर उठने लगते हैं।


अगरचे इस्लामी इतिहास में यह कोई नई चीज़ नहीं है शेख़ तूसी अपनी किताब तहज़ीबुल अहकाम में लिखते हैं कि अमीरुल मोमिनीन हज़रत अली (अस) की हुकूमत के दिनों में लोगों ने रमज़ान की 28 तारीख़ को चाँद देख लिया (और उसी के हिसाब से ईद कर ली) इमाम ने आदेश दिया कि रमजान 29 दिन का है और सब को एक दिन के रोज़े की क़ज़ा करनी होगी।


बहर हाल चाँद के बारे में इख़्तेलाफ़ होता रहता है और आगे भी होता रहेगा क्योंकि इसके कारण कई प्रकार के हैं जैसे कुछ मराजे चाँद के साबित होने में क्षितिज के एक होने को शर्त मानते हैं और कहते हैं कि अगर एक जगह पर चाँद साबित हो गया तो हर जगह पर साबित हो जाता है और कुछ लोग इसको शर्त नहीं मानते हैं।
हम अपने इस लेख में हिन्दुस्तान में हुई ईद और उस पर मचे बवाल के बाद आयतुल्लाह सीस्तानी की नज़र में ईद के बारे में पाए जाने वाले सवालात और चाँद के साबित होने का विश्लेषण करेंगे
आयतुल्लाह सीस्तानी की नज़र में चाँद साबित होने के कई माध्यम हैं जिनमें से हम तीन को यहां पर लिख रहे हैं जो कि आज के हिन्दुस्तानी समाज के लिहाज़ से साबित भी हो चुके हैं
1. इंसान ख़ुद चाँद देखे।
2. दो आदिल (सच्चे) गवाही दें कि उन्होंने चाँद देखा है।
3. इतने लोग कहें कि जिससे यक़ीन या इत्मीनान हो जाए कि चाँद देखा जा चुका है
इस बार की ईद पर होने वाले कुछ एतेराज़ात
1. आयतुल्लाह सीस्तानी इराक़ में हैं वह हिन्दुस्तान की ईद के बारे में फ़तवा कैसे दे सकते हैं, क्या अब ईद फ़तवों के हिसाब से मनाई जाएगी?
2. कैसे एकदम से रात को यह ऐलान कर दिया जाता है कि कल ईद है इस तरह से ग़रीब लोग ईद की तैयारियां एकदम से कैसे कर पाएंगे?
3. अलग अलग ईद होना मुसलमानों के बीच इख़्तेलाफ़ का सबब बनता है?


जवाब

कम से कम इस बार हम सभी जानते हैं कि हिन्दुस्तान की सरहदों के अंदर ही कश्मीर और केलर जैसी जगहें थी जहां पर शिया और सुन्नी दोनों ने एक साथ ईद मनाई, यानी ऐसा नहीं था कि हर जगह सिर्फ शियों ने ही ईद मनाई हो, जिससे यह पता चलता है कि कम से कम दो जगहों पर चाँद साबित हो जाने के बारे में कोई इख़्तेलाफ़ नहीं था, जो जब दो जगहों पर साबित हो जाता है तो उसको पूरे हिन्दुस्तान में शामिल करने में क्या मुश्किल है आयतुल्लाह सीस्तानी के चाँद साबित होने के कारणों के हिसाब से क्या केरल और कश्मीर में दो आदिल नहीं है जो चाँद साबित होने की गवाही नहीं दे सकते? क्या केरल और कश्मीर के मुसलमान मुसलमान नहीं हैं जिनकी गवाही नहीं मानी जाएगी? क्या केरल और कश्मीर में चाँद के देखे जाने का मशहूर होना चाँद को साबित नहीं करेंगा? अब आप इसको इस हिसाब से लें कि अगर केरल और कश्मीर से कुछ लोगों का फोन आयतुल्लाह सीस्तानी के दफ़्तर में जाता है और यह लोग कहते हैं कि यहां पर चाँद देखा जा चुका है तो क्या उनकी गवाही पर पूरे हिन्दुस्तान पर चाँद साबित नहीं होता है (जबकि क्षितिज एक ही है) ?

तो अगर इन सब चीज़ों को देखते हुए रात के तीन बजे क्या अगर सुबह आठ बजे भी ईद का एलान किया जाता है तो इतना बवाल क्यों, हम यह क्यों सोचते हैं कि हमारी बात ही सही है, हमारे मुक़ाबले में भी मुसलमानों की एक बड़ी संख्या है जो कह रह हैं कि चाँद साबित हो चुका है

अब दूसरा सवाल कि जिसमें कहा जाता है कि अगर एकदम से यह एलान कर दिया जाए कि कल ईद है तो ग़रीब लोग ईद की तैयारियां कैसे कर पाएंगे

यह सवाब बहुत अच्छा है और इसी के लिये इस्लाम ने कहा है कि हम को ग़रीबों की देखभाल करने के लिये ईद और बक़्रईद जैसे त्याहारों तक ही सीमित नहीं रहना चाहिये बल्कि पूरे साल उनकी देखभाल करनी चाहिए और अगर ऐसा होता तो यह प्रश्न ही पैदा न होता, और दूसरी बात यह है कि इस्लामी विचारधारा में (जो हिन्दू समाज से प्रेरित नहीं है) ईद का मतलब सिर्फ़ नए कपड़े पहनना और गले मिलना नहीं है बल्कि ईद नाम है अल्लाह की तरफ़ पलट कर आने का, अपने आप को अल्लाह को और क़रीब करने का ईद नाम है पूरे रमज़ान रोज़ा रखने के बाद अल्लाह से मोमिन का सार्टिफिकेट लेने का, ईद नाम है अपने इस्लाम के ख़ालिस होने की मोहर लगवाने का.....तो ईद के सिर्फ़, नए कपड़ों, गले मिलने, सिवइयां बनाने..... तक सीमित न करें

अब तीसरा और सबसे अहम सवाल कि इस प्रकार एकदम से एक समुदाय द्वारा ईद का ऐलान कर दिये जाने से शिया सुन्नी एकता की कोशिशों को धचका लगता है इससे शिया और सुन्नियों के बीच एख़्तेलाफ़ पैदा होता है
शिया और सुन्नी के बीच इत्तेहाद होना चाहिये और यह आज के दौर में मुसलमानों की बहुत बड़ी ज़रूरत है लेकिन सवाल यह है कि यह इत्तेहाद किस बेस पर और कहां तक, क्या यह इत्तेहाद यह कहता है कि हम हलाल और हराम को छोड़ दें? और यह कौन सा इत्तेहाद है जो सिर्फ एक त्योहार के अलग हो जाने पर ख़त्म हुआ जा रहा है? क्या हमारे इत्तेहाद और उसके लिये की जाने वाली कोशिशों की डोर इतनी कमज़ोर है कि वह एक ईद के मसले पर ही टूटी जा रही है? बल्कि हम को तो दो अलग अलग ईद को एक अवसर की तरह लेना चाहिये पहले जब एक दिन ईद हुआ करती थी तो समय की कमी के कारण शिया लोग सिर्फ़ शियों के यहां और सुन्नी सिर्फ़ सुन्नियों के यहां ही मिलने जा पाया करते थे लेकिन अब ईद दो हो जाने के बाद सब के पास पूरा समय है एक दूसरे के यहां जाने के लिये।

सबसे बड़ी बात जो इस  बार की ईद में हुई है वह यह है कि इस ईद ने एक बहुत ही बड़े सवाल और लोगों के बीच बढ़ती उस सोंच का जवाब दे दिया है जिसमें कहा जा रहा था कि अब शिया समुदाय जो कि कभी अपने मराजे के फ़तवे और हुक्म पर अपनी जान क़ुरबान करने के लिये तैयार रहता था अब वैसा नहीं रहा बल्कि अब वह भी अपने मराजे से जुदा हो चुका है।

यह वह सोच थी जो शियों को अपने मराजे से दूर कर रही थी लेकिन इस अलग ईद के हुक्म के बाद तमाम शिया का (अलग अलग सोच होने के बावजूद) एक प्लेटफार्म पर जमा हो कर ईद मनाना दिखाता है कि शियों ने दुश्मनों की तरफ़ से रची जाने वाली साज़िशों को एक बार फिर नाकाम कर दिया है वह कल भी अपने मराजे के साथ थे और आज भी हैं और कल भी रहेंगे, अख़बारियत का नारा लगाने वालों को न तो कल शियों का साथ मिला था और न ही कभी मिलेगा
*कर रही थी सवाल यह दुनिया*
*क्या हक़ीक़त है सीस्तानी की*
*आज की ईद ने किया साबित*
*क्यों ज़रूरत है सीस्तानी की*







ईद क्या है जानिये हज़रात अली अलैहिस्सलाम से |

$
0
0
सभी लोगों को ईद की मुबारकबाद के साथ मैं सबसे पहले मशहूर शायर कामिल जौनपुरी के इन शब्दों को आप सभी तक पहुंचाना चाहूँगा |

मैखान-ए-इंसानियत की सरखुशी, ईद इंसानी मोहब्बत का छलकता जाम है।
आदमी को आदमी से प्यार करना चाहिए, ईद क्या है एकता का एक हसीं पैगाम है।
                                                                              .........मशहूर शायर कामिल जौनपुरी

माहे रमजान में पूरे महीने हर मुसलमान रोज़े रखता है और इन रोजो में गुनाहों से खुद को दूर रखता है | पूरे महीने अल्लाह की इबादत के बाद जब ईद का चाँद नज़र आता है तो सारे मुसलमानों के चेहरे पे एक ख़ुशी नज़र आने लगती है | क्यूँ की यह ईद का चाँद बता रहा होता है की कल ईद की नमाज़ के बाद अल्लाह उनकी नेकियों को कुबूल करेगा और गुनाहों को धोने का एलान फरिश्तों से करवाएगा | चाँद देखते ही अल्लाह का हुक्म है ठहरो ख़ुशी की तैयारी करने से पहले गरीबों के बारे में सोंचो और सवा तीन किलो अन्न के बराबर रक़म परिवार के हर इंसान के नाम से निकालो और फ़ौरन गरीबों को दे दो जिस से उनके घरों में भी ईद वैसे ही मनाई जाए जैसे आपके घरों में मनाई जाएगी | यह रक़म निकाले बिना ईद की नमाज़ अल्लाह कुबूल नहीं करता | इस रक़म को फितरा कहते हैं जिसपे सबसे अहले आपके अपने गरीब रिश्तेदार , फिर पडोसी, फिर समाज का गरीब और फिर दूर के रोज़ेदार का हक़ होता है|

बच्चों की ईद इसलिए सबसे निराली होती है क्योंकि उन्हें नए-नए कपड़े पहनने और बड़ों से ईदी लेने की जल्दी होती है. बच्चे, चांद देख कर बड़ों को सलाम करते ही यह पूछने में लग जाते हैं कि रात कब कटेगी और मेहमान कब आना शुरू करेंगे. महिलाओं की ईद उनकी ज़िम्मेदारियां बढ़ा देती है. एक ओर सिवइयां और रंग-बिरंगे खाने तैयार करना तो दूसरी ओर उत्साह भरे बच्चों को नियंत्रित करना. इस प्रकार ईद विभिन्न विषयों और विभिन्न रंगों के साथ आती और लोगों को नए जीवन के लिए प्रेरित करती है| ईद यही पैगाम लेकर आता है कि हम इसे मिलजुल कर मनाएं और अपने दिलों से किसी भी इंसान के लिए हसद और नफरतों को निकाल फेंके और सच्चे दिल से हर अमीर गरीब ,हिन्दू मुसलमान , ईसाई से गले मिलें और समाज को खुशियों से भर दें |


शब्दकोष में ईद का अर्थ है लौटना और फ़ित्र का अर्थ है प्रवृत्ति |इस प्रकार ईदे फ़ित्र के विभिन्न अर्थों में से एक अर्थ, मानव प्रवृत्ति की ओर लौटना है| बहुत से जगहों पे इसे अल्लाह की और लौटना भी कहा गया है जिसका अर्थ है इंसानियत की तरफ अपने दिलों से नफरत, इर्ष्य ,द्वेष इत्यादि बुराईयों को निकालना |वास्वतविक्ता यह है कि मनुष्य अपनी अज्ञानता और लापरवाही के कारण धीरे-धीरे वास्तविक्ता और सच्चाई से दूर होता जाता है| वह स्वयं को भूलने लगता है और अपनी प्रवृत्ति को खो देता है. मनुष्य की यह उपेक्षा और असावधानी ईश्वर से उसके संबन्ध कोसमाप्त कर देती है| रमज़ान जैसे अवसर मनुष्य को जागृत करते और उसके मन तथा आत्मा पर जमी पापों की धूल को झाड़ देते हैं|इस स्थिति में मनुष्य अपनी प्रवृत्ति की ओर लौट सकता है और अपने मन को इस प्रकार पवित्र बना सकता है कि वह पुनः सत्य के प्रकाश को प्रतिबिंबित करने लगे|


हज़रत अली अलैहिस्सलाम कहते हैं कि हे लोगो, यह दिन आपके लिए एसा दिन है कि जब भलाई करने वाले अल्लाह से अपना पुरूस्कार प्राप्त करते और घाटा उठाने वाले निराश होते हैं। इस प्रकार यह दिन प्रलय के दिन के समान होता है। अतः अपने घरों से ईदगाह की ओर जाते समय कल्पना कीजिए मानों क़ब्रों से निकल कर ईश्वर की ओर जा रहे हैं। नमाज़ में स्थान पर खड़े होकर ईश्वर के समक्ष खड़े होने की याद कीजिए। घर लौटते समय, स्वर्ग की ओर लौटने की कल्पना कीजिए। इसीलिये यह बेहतर है कि नमाज़ ए ईद खुले मैदान मैं अदा कि जाए और सर पे सफ़ेद रुमाल नंगे पैर ईद कि नमाज़ मैं जाए. नमाज़ से पहले गुसल करे और सजदा नमाज़ के दौरान मिट्टी पे करे|

ईद की नमाज़ होने के बाद एक फ़रिश्ता पुकार-पुकार कर कहता हैः शुभ सूचना है तुम्हारे लिए हे ईश्वर के दासों कि तुम्हारे पापों को क्षमा कर दिया गया है अतः बस अपने भविष्य के बारे में विचार करो कि बाक़ी दिन कैसे व्यतीत करोगे? इस शुभ सुन्चना को महसूस करने के बाद रोज़ेदार खुश हो जाता है और एक दुसरे को गले मिल के मुबारकबाद देता है | घरों की तरफ लौट के खुशियाँ मनाता है और अल्लाह से वादा करता है की अब पाप से बचूंगा और समाज में एकता और शांति के लिए ही काम करूँगा | 

आप सभी पाठको को ईद मुबारक |--- एस एम् मासूम 

ईद के चांद ने वातावरण को एक नए रूप मे सुगन्धित किया

$
0
0
 eid 
ईद के चांद ने वातावरण को एक नए रूप मे खुशगवार बना दिया . चांद देखते ही लोगों के बीच फ़ितरे की बातें होने लगीं.  फ़ितरा उस धार्मिक कर को कहते हैं जो प्रत्येक मुस्लिम परिवार के मुखिया को अपने परिवार के प्रत्येक सदस्य की ओर से निर्धनों को देना होता है. रमज़ान में चरित्र और शिष्टाचार का प्रशिक्षण लिए हुए लोग इस अवसर पर फ़ितरा देने और अपने दरिद्र भाइयों की सहायता के लिए तत्पर रहते हैं.

इस्लाम इस बात का ख्याल रखता है कि हर वो शख्स जिसने रोज़ा रेखा हो चाहे वो अमीर हो या ग़रीब उसके घर  मैं ईद मनाई जाए. एक ग़रीब रोज़ा तो बग़ैर किसी कि मदद के रख सकता है और इफ्तार और सहरी किसी भी मस्जिद मैं जा के कर सकता है लेकिन ईद मानाने के लिए नए कपडे, और सिंवई बना के खुशिया मानाने के लिए पैसे कहाँ से लाये?
अदा  इस्लाम ने इस बात का ख्याल रखते हुए चाँद रात  फितरा  देना हर मुसलमान पे फ़र्ज़ किया है. फितरा की  रक़म इस बात पे तय कि जाती है कि आप किस दाम का अन्न जैसे गेहूं या चावल आप अधिक खाते हैं ? उसका तीन किलो या सवा तीन सेर अन्न की कीमत आप निकाल के ग़रीबों मैं चाँद रात ही बाँट दें. यह  रक़म घर का मुखिया अपने घर के हर एक फर्द की तरफ से अदा करेगा. मसलन अगर घर में ३ मेम्बर मैं तो रक़म ९ किलो अन्न की जाएगी.

यदि आप के इलाके मैं , शहर मैं कोई ग़रीब है जिसके घर ईद ना मन पा रही हो तो फितरे की रक़म बाहर नहीं भेजी जा सकती. हाँ आप यह रक़म अगर  कहीं दूर किसी गरीब को भेजना चाहते हैं  तो आप इसे  चाँद रात के पहले भी निकाल सकते हैं बस नियत  यह होगी की उस शख्स को क़र्ज़ दिया और जैसे ही चाँद आप देखें आप निय्यत कर दें के जो रक़म बतौर क़र्ज़ दी थी वो फितरे मैं अदा किया.

इस तरह से आप किसी दूर के ग़रीब रिश्तेदार, दोस्त  या भाई तक यह रक़म पहुंचा सकते हैं जिस से वो ईद मना सके,

इस फितरे की रकम पे सबसे पहले आप के अपने गरीब रिश्तेदार , फिर पडोसी, फिर समाज का गरीब और फिर दूर के रोज़ेदार का हक़ होता है.




बच्चों की ईदइसलिए सबसे निराली होती है क्योंकि उन्हें नए-नएकपड़े पहनने और बड़ों से ईदी लेने की जल्दी होती है. बच्चे, चांददेख कर बड़ों कोसलाम करते ही यह पूछने में लग जाते हैं कि रात कब कटेगी और मेहमान कब आना शुरू करेंगे. महिलाओं की ईदउनकी ज़िम्मेदारियां बढ़ा देती है. एकओर सिवइयां और रंग-बिरंगे खाने तैयार करना तो दूसरी ओर उत्साह भरे बच्चों कोनियंत्रित करना. इस प्रकार ईदविभिन्न विषयों और विभिन्न रंगों केसाथ आती और लोगों कोनएजीवन केलिए प्रेरित करती है.

 


इस समय एकमहीने तक मन केउपवन पर ईश्वरीय अनुकंपाओं और विभूतियों की वर्षा केपश्चात ईमान केफूलों केखिलने का दिन आता है. आज रोज़ा रखने वाले ईश्वर से अपनी ईदी लेने केलिए आकाश की ओर हाथ उठाए हुए हैं. ईदकी नमाज़ वास्तव में ईश्वर की अनुकंपाओं केलिए उसका आभार व्यक्त करना ही तो है.



रोज़ा सभी धर्मों की विशेष उपासनाओं में सम्मिलित है किंतु अंतर यह है कि अन्य धर्मों में रोज़े का अंत किसी महोत्सव पर नहीं होता है. इस्लाम में पहली बार एकमहीने केरोज़े केपश्चात आने वाले दिन कोईदका नाम दिया गया और लोगों कोयह आदेश दिया गया कि वे इस दिन कोविशेष उपासनाओं केसाथ मनाएं. पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे वआलेही वसल्लम फ़रमाते हैं कि ईदेफ़ित्र ईश्वर की ओर से मेरी उम्मत अर्थात मेरे अनुयाइयों कोदिया गया उपहार है और ईश्वर नेएसा उपहार मुझसे पूर्व किसी कोभी प्रदान नहीं किया.



शब्दकोष में ईदका अर्थ है लौटना और फ़ित्र का अर्थ है प्रवृत्ति.इस प्रकार ईदे फ़ित्र केविभिन्न अर्थों में से एकअर्थ, मानव प्रवृत्ति की ओर लौटना है. अब प्रश्न यह उठता है कि इस दिन कोईदेफ़ित्र क्यों कहा गया है? वास्वतविक्ता यह है कि मनुष्य अपनी अज्ञानता और लापरवाही केकारण धीरे-धीरे वास्तविक्ता और सच्चाई से दूर होता जाता है. वह स्वयं कोभूलने लगता है और अपनी प्रवृत्ति कोखो देता है. मनुष्य की यह उपेक्षा और असावधानी ईश्वर से उसके संबन्ध कोसमाप्त कर देती है. रमज़ान जैसे अवसर मनुष्य कोजागृत करते और उसके मन तथा आत्मा पर जमी पापों की धूल कोझाड़ देते हैं. इस स्थिति में मनुष्य अपनी प्रवृत्ति की ओर लौट सकता है और अपने मन कोइस प्रकार पवित्र बना सकता है कि वह पुनः सत्य केप्रकाश कोप्रतिबिंबित करने लगे.




यदि मनुष्य इस सीमा तक परिपूर्णता तक पहुंच जाए तो इसका अर्थ यह है कि अब उसमे ईदे फ़ित्र कोसमझने की योग्यता उत्पन्न हो गई है. इसीलिए कहा जाता है कि एकमहीने तक रोज़े रखने केपश्चात मनुष्य इतना परिवर्तित हो जाता है कि जैसे उसने पुनः जन्म लिया हो. यही कारण है कि अपनी भौतिक इच्छाओं पर सफलता केदिन वह उत्सव मनाता है.



हज़रत अली अलैहिस्सलाम कहते हैं कि हे लोगो, यह दिन आपके लिए एसा दिन है कि जब भलाई करने वाले अपना पुरूस्कार प्राप्त करते और घाटा उठाने वाले निराश होते हैं। इस प्रकार यह दिन प्रलय के दिन के समान होता है। अतः अपने घरों से ईदगाह की ओर जाते समय कल्पना कीजिए मानों क़ब्रों से निकल कर ईश्वर की ओर जा रहे हैं। नमाज़ में स्थान पर खड़े होकर ईश्वर के समक्ष खड़े होने की याद कीजिए। घर लौटते समय, स्वर्ग की ओर लौटने की कल्पना कीजिए। इसीलिये यह बेहतर है कि नमाज़ ए ईद खुले मैदान मैं अदा कि जाए और सर पे सफ़ेद रुमाल नंगे पैर ईद कि नमाज़ मैं जाए. नमाज़ से पहले गुसल करे और सजदा नमाज़ के दौरान मिट्टी पे करे.
 

हे ईश्वर के बंदों, रोज़ा रखने वालों को जो न्यूनतम वस्तु प्रदान की जाती है वह यह है कि रमज़ान महीने के अन्तिम दिन एक फ़रिश्ता पुकार-पुकार कर कहता हैः शुभ सूचना है तुम्हारे लिए हे ईश्वर के दासों कि तुम्हारे पापों को क्षमा कर दिया गया है अतः बस अपने भविष्य के बारे में विचार करो कि बाक़ी दिन कैसे व्यतीत करोगे?

eid_final_thumb[1]

ईदे फ़ित्र केमहत्व केसंबन्ध में महान विचारक शेख मुफ़ीद लिखते हैं कि शव्वाल महीने केप्रथम दिन कोईदमनाने का कारण यह है कि लोग रमज़ान केमहीने में अपने कर्मों केस्वीकार होने पर प्रसन्न होते हैं. वे इस बात से प्रसन्न होते हैं कि महान ईश्वर नेउनके पापों कोक्षमा करके उनकी बुराई पर पर्दा डाल दिया है. ईमान वाले ईश्वर की ओर से दी गई उस शुभसूचना पर प्रसन्न होते हैं कि उनका विधाता उन्हें अत्यधिक पुरूस्कार और पारितोषिक देगा। वे इसलिए प्रसन्न हैं कि रमज़ान केदिनों और रातों में ईश्वर केसामिप्य केकई चरण पार कर चुके हैं. ईदकेदिन जिन कामों पर विशेष रूपसे बल दिया गया है उनमें नहाना है जो पापों से पवित्र होने की निशानी है. अत्र व सुगंध का प्रयोग, स्वच्छ या नएवस्त्र धारण करना और खुले आसमान तले नमाज़ पढ़ना है। यह सब प्रसन्नता का प्रतीक है, एसी प्रसन्नता का प्रतीक जो तत्वज्ञान केसाथ होती है.




ईदे फ़ित्र एकसुन्दर एतिहासिक घटना कोनेत्रों केसामने चित्रित करती है. वह घटना मर्व नामक स्थान पर इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम द्वारा पढ़ाई गई ईदे फ़ित्र की नमाज़ केबारे में है. एकदिन अब्बासी शासक मामून नेजनता कोधोखा देने और उन्हें अपनी ओर आकर्षित करने केउद्देश्य से इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम से कहा कि वे ईदकी नमाज़ पढ़ाएं. इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम नेजो मामून की भावना से पूर्णत्यः अवगत थे, इस काम से इन्कार कर दिया किंतु मामून आग्रह करने लगा. उसके आग्रह पर इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम नेइस शर्त केसाथ नमाज़ पढ़ाना स्वीकार कियाकि उनका व्यवहार पैग़म्बरे इस्लाम और हज़रत अली अलैहिस्सलाम की परंपरा केअनुसार होगा. मामून नेउत्तर दिया कि जैसा चाहे करें परन्तु बाहर आएं और ईदकी नमाज़ पढ़ाएं.



इस बात का समाचार फ़ैलते ही कि इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम द्वारा नमाज़ पढ़ाई जाएगी, लोग नगर केहर गली कूचे से निकल कर इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम केघर पर एकत्रित होने लगे ताकि उनके साथ नमाज़ केलिए जा सकें. पहली शव्वाल अर्थात ईदकेदिन का सूर्य उदय हो रहा था कि इमाम रज़ा अलैहिस्साम नेस्नान किया, सफ़ेद पगड़ी बांधी, हाथ में छड़ी पकड़ी और घर से निकल पड़े. उनके पैरों में जूते नहीं थे। यह देखकर उनके सेवक और निकटवर्ती साथी भी नंगे पैर हो गए और इमाम केपीछे-पीछे ईदगाह की ओर चल पड़े. इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम घर से निकले और आकाश की ओर मुंह करके उन्होंने चार बार अल्लाहो अकबर कहा. उनकी वाणी आध्यात्म और पवित्र ईश्वरीय प्रेम से इतनी ओतप्रोत थी कि मानो धरती और आकाश मिल कर उनके साथ ईश्वर की महानता की घोषणा कर रहे हों.



इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम की आवाज़ पर पुरूष, महिलाएं और बच्चे सभी लोग, अल्लाहोअकबर कहने लगे. नगर का वातावरणअल्लाहो अकबर केपवित्र शब्दों से गूंजने लगा. यह वातावरणइतना प्रभावशाली था कि मामून केसिपाही ही घोड़ों से उतर कर नंगे पांव चलने लगे. अब स्थिति यह हो गई थी कि मामून केमंत्री फ़ज़्ल बिन सहल नेउसे सूचना दी कि इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम यदि इसी प्रकार से ईदगाह तक चले गए तो हो सकता है कि जनता, शासन केविरोध पर उतर आए अतः उनको मार्ग से ही वापस बुला लिया जाए. मामून नेतुरंत इमाम कोलौटने पर विश्व करने का आदेश दे दिया. इस प्रकार उस दिन ईदे फ़ित्र की नमाज़ इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम नहीं पढ़ा सके परन्तु पैग़म्बरे इस्लाम केप्रति जनता का प्रेम सिद्ध हो गया.


ईदे फ़ित्र का दिन रोज़े रखने का पुरूस्कार है अतः मनुष्य को चाहिए कि वह इस दिन अपने  लिए अपने समाज, देश तथा अन्य लोगों के लिए बहुत अधिक दुआ करे और ईश्वर से लोक-परलोक की भलाइयां मांगे. .


ईद मुबारक

ईद की मुबारकबाद- जानिये ईद क्या है ?

$
0
0


सभी लोगों को ईद की मुबारकबाद | मशहूर शायर कामिल जौनपुरी ने क्या खूब कहा है |

मैखान-ए-इंसानियत की सरखुशी, ईद इंसानी मोहब्बत का छलकता जाम है।
आदमी को आदमी से प्यार करना चाहिए, ईद क्या है एकता का एक हसीं पैगाम है।

ईद उल फि़त्रः पहली शव्वाल को एक महीने के रोज़े पूरे करने का शुकराना और फि़तरा निकाल कर ग़रीबों की ईद का सामान फ़राहम करने का ज़रिया है।

शब्दकोष में ईद का अर्थ है लौटना और फ़ित्र का अर्थ है प्रवृत्ति |इस प्रकार ईदे फ़ित्र के विभिन्न अर्थों में से एक अर्थ, मानव प्रवृत्ति की ओर लौटना है| बहुत से जगहों पे इसे अल्लाह की और लौटना भी कहा गया है जिसका अर्थ है इंसानियत की तरफ अपने दिलों से नफरत, इर्ष्य ,द्वेष इत्यादि बुराईयों को निकालना |वास्वतविक्ता यह है कि मनुष्य अपनी अज्ञानता और लापरवाही के कारण धीरे-धीरे वास्तविक्ता और सच्चाई से दूर होता जाता है| वह स्वयं को भूलने लगता है और अपनी प्रवृत्ति को खो देता है. मनुष्य की यह उपेक्षा और असावधानी ईश्वर से उसके संबन्ध कोसमाप्त कर देती है| रमज़ान जैसे अवसर मनुष्य को जागृत करते और उसके मन तथा आत्मा पर जमी पापों की धूल को झाड़ देते हैं|इस स्थिति में मनुष्य अपनी प्रवृत्ति की ओर लौट सकता है और अपने मन को इस प्रकार पवित्र बना सकता है कि वह पुनः सत्य के प्रकाश को प्रतिबिंबित करने लगे|

 नह्जुल बलागा मे हजरत अली (अ.स) अपने खुत्बे मे कहते है कि :

 हे लोगो, यह दिन आपके लिए ऐसा  दिन है कि जब भलाई करने वाले अल्लाह से अपना पुरूस्कार प्राप्त करते और घाटा उठाने वाले निराश होते हैं। इस प्रकार यह दिन प्रलय के दिन के समान होता है। अतः अपने घरों से ईदगाह की ओर जाते समय कल्पना कीजिए मानों क़ब्रों से निकल कर ईश्वर की ओर जा रहे हैं। नमाज़ में स्थान पर खड़े होकर ईश्वर के समक्ष खड़े होने की याद कीजिए। घर लौटते समय, स्वर्ग की ओर लौटने की कल्पना कीजिए। इसीलिये यह बेहतर है कि नमाज़ ए ईद खुले मैदान मैं अदा कि जाए और सर पे सफ़ेद रुमाल नंगे पैर ईद कि नमाज़ मैं जाए. नमाज़ से पहले गुसल करे और सजदा नमाज़ के दौरान मिट्टी पे करे|

ईद की नमाज़ होने के बाद एक फ़रिश्ता पुकार-पुकार कर कहता हैः शुभ सूचना है तुम्हारे लिए हे ईश्वर के दासों कि तुम्हारे पापों को क्षमा कर दिया गया है अतः बस अपने भविष्य के बारे में विचार करो कि बाक़ी दिन कैसे व्यतीत करोगे? इस शुभ सुन्चना को महसूस करने के बाद रोज़ेदार खुश हो जाता है और एक दुसरे को गले मिल के मुबारकबाद देता है | घरों की तरफ लौट के खुशियाँ मनाता है और अल्लाह से वादा करता है की अब पाप से बचूंगा और समाज में एकता और शांति के लिए ही काम करूँगा |

 संचालक......एस एम मासूम

ईद का चाँद होने के पहले क्या फ़ित्र निकाल सकते हैं |

$
0
0



सवालः क्या रमज़ान से पहले फ़क़ीर को फ़ितरा देना सही है

जवाबः नहीं, सही नहीं है, लेकिन (रमज़ान से पहले) क़र्ज़ के तौर पर फ़क़ीर को दे दे और ईद के दिन उस क़र्ज़ को फ़ितरा मान कर माफ़ कर दे।

(आयतुल्लाह ख़ामेनेई से इस्तिफ़ता)

आयतुल्लाह सीस्तानी

अगर कोई इंसान रमज़ान से पहले फ़ितरा दे दे तो यह सही नहीं है लेकिन रमज़ान के महीना आने के बाद फ़ितरा दे सकता है अगरचे एहतियाते मुस्तहेब यह है कि रमज़ान के महीने में भी फ़ितरा न दे और ईद की रात तक फ़ितरा न निकाले, लेकिन अगर कोई रमजान से पहले फ़क़ीर को क़र्ज़ा दे दे और जब उस पर (ईद की रात) फ़ितरा वाजिब हो जाए और वह फ़क़ीर (जिसको क़र्ज़ दिया है) अब भी मुस्तहेक़ हो तो वह अपने क़र्ज़े को फ़ितरे में हिसाब कर सकता है।

(तौज़ीहुल मसाएल आयतुल्लाह सीस्तानी समअला 2677)


नजफ़ ऐ हिन्द जोगीपुरा का मुआज्ज़ा , जियारत और क्या मिलता है वहाँ जानिए |

$
0
0
हर सच्चे मुसलमान की ख्वाहिश हुआ करती है की उसे अल्लाह के नेक बन्दों की जियारत करने का मौक़ा  मिले और इसी को अल्लाह से  मुहब्बत कहा जाता है | अल्लाह के नेक बन्दे  अपनी ज़िन्दगी में भी अल्लाह के नेक बन्दों के आस पास रहना पसंद करते हैं और मौत के बाद उनके रोजों , क़ब्रों पे जा के अकीदत पेश किया करते हैं और उनकी ज़िन्दगी से ,उनके कौल और अमल से अपनी ज़िन्दगी संवारा करते हैं |


इस बार जब मैं लखनऊ आया तो मुझसे मेरे परिवार वालों ,भाई बहनों ने कहा चलो इस बार मौला अली (अ.स) के दरबार नजफ़ ऐ हिन्द जोगीपुरा जियारत को चला जाए | बस आनन फानन में ये तय हो गया और हम सभी चल पड़े मौला के दरबार जोगी पूरा की तरफ अपनी अकीदत पेश करने और अपने दिल में अपनी मुरादें लिए |
 



जोगीपुरा जाने के लिए सबसे बेहतरीन दिन होता है शब् ऐ जुमा और जायरीन के लिए जितना बेहतरीन इंतज़ाम मैंने वहाँ देखा शायद कहीं नहीं देखा था | जोगीपुरा जाने के लिए आपको उत्तेर प्रदेश वेस्ट के नजीबाबाद रेलवे स्टेशन पे उतरना होता है |

अगरआपकेपास जोगीपुरा दरगाह का फ़ोन नंबर है तो वहाँ से आप टैक्सी भी बुला सकते हैं और अगर नहीं है तो आप ३००/- रुपये दे के स्टेशन के बाहर टैक्सी मिलती है उस से १५मिन में रौज़ा ऐ मौला अली (अ.स ) पे पहुँच जाते हैं | कुछ बस की सुविधाएं भी हैं लेकिन उनका वक़्त तय नहीं होने के कारन नए जायरीन को मुश्किल हो जाया करती है |

नजीबाबाद रेलवे स्टेशन स्टेशन से जोगीपुरा ७-८ किलोमीटर की दूरी पे है | जैसे ही टैक्सी जोगीपुरा दरगाह के  गेट पे पहुंची तो दिल में एक ख़ुशी सी महसूस हुयी और ऐसा लगा दुनिया के सारे ग़मऔर मुश्किलात दूर हो गयीं क्यूँ हम पहुँच चुके थे मौला मुश्किल कुशा हज़रत अली (अ.स ) के दरबार में |

दरगाह के दफ्तर में पहुँचते ही वहाँ लोगों से जब कमरे के बारे में पुछा तो उन्होंने के कई कमरे दिखाए जिन्हें और १००-१५०-२०० जैसे हदिये पे ले सकते हैं | और मौला की तरफ से दो  वक़्त आप को बेहतरीन साफ़ सफाई के साथ खाना भी मुफ्त में दिया जाता है |



क्यूँ जोगीपुरा को नजफ़ इ हिन्द कहा जाता है और यहाँ कौन सा मुआज्ज़ा हुआ था जानिये |

१६५७ सितम्बर के महीने में मुग़ल बादशाह शाहजहाँ बीमार पड़ा तो ये मशहूर हो गया की शाहजहाँका इन्तेकाल हो गया | बादशाहत इस से कमज़ोर होने लगी लेकिन उनका बेटा औरंगजेब तो सियासत में तेज़ था उसने अपने बड़े भाई जो वारिस था शाहजहाँ का उसे एकसाल के अंदर ही इस दौड़ से अलग कर दिया |

रौज़ा मौला अली (अ.स ), जोगी पूरा |

औरंगजेब ने शाहजहाँ के किले में ही क़ैद कर लिया और बादशाह बन बैठा | तख़्त पे बीतते ही उसने शाहजहाँ के वफादार कमांडर और गवर्नर को जान से मार दिए जाने का हुक्म सुना दिया |
ज़री मुबारक मौला अली (अस)

उन्हें कमांडर में से एक थे राजू दादा जिन्होंने ने औरंगजेब को पसंद नहीं किया | औरंगजेब से बचने के लिए राजू दादा अपने वतन जोगी राम पूरा , बिजनौर वापस चले आये | वहां उन्होंने अपने गाँव वालों को बता दिया की औरंगजेब के फ़ौज से उनकी जान को खतरा है | राजू दादा की इमानदारी और गरीब परवर मिज़ाज ने उन्हें गाँव में अच्छी इज्ज़त दे रखी थी| गाँव वाले उनकी हिफाज़त करने लगे और बहुत ही सावधान रहते थे की कहीं औरंगजेब के लोग राजू दादा का कोई नुकसान ना कर दें |


राजू दादा अपने गाँव के पास वाले जंगल में छुपे रहते थे | राजू दादा मौला अली (अ.स ) के चाहने वाले थे और उन्होंने मौला अली (अ.स) को मदद के लिए नाद ऐ अली और या अली अद्रिकनी पढ़ के बुलाना शुरू किया | एक दिन एक बूढ़े हिन्दू ब्राह्मण जो घास काट रहा था और इतना बुध था की ठीक से देख भी नहीं सकता था उसने एक आवाज़ सुनी और जब नज़र डाली तो उसे महसूस हुआ की कोई शख्स घोड़े पे सवार है और उस से कह रहा है कहा है राजू दादा जो मुझे बुलाया करता था ? जाओ उस से कह दो मैंने मिलने को बुलाया है | उस बूढ़े ने कहा मैं ठीक से देख नहीं सकता और कमज़ोर भी हूँ जंगले में कैसे जाऊं उन्हें बुलाने ?

अचानक उस बूढ़े को महसूस हुआ की उसे सब कुछ दिखाई देने लगा और उसके जिस्म में ताक़त भी आ गयी | फिर हजरत अली (अ.स ) ने कहा अब जाओ और राजू दादा से कहो मैं आया हूँ | जब राजू दादा ने उस किसान से सुना तो वो समझ गए कीहजरतअली (अ.स)आयेहैंऔर राजूदादा दौड़ के उस  मुकाम की तरफ चले | गाँव वालों ने  जब राजू दादा को दौड़ते देखा तो समझे औरंगजेब के सिपाही आये हैं और राजू दादा की मादा के लिए उनके पीछे भागने लगे |

राजू दादा जब उस जगह पे पहुंचे तो वहाँ कोई नहीं था लेकिन घोड़े के खड़े होने के निशाँ बाकी थे | लोगों से उस जगह को घेर दिया लेकिन राजू दादा उसी जगह पे  जहां मौला अली (अ.स ) आये थे वहाँ बिना कुछ खाए पिए सात दिन तक नाद ऐ अली पढ़ पढ़ के मौला अली (अ.स ) को बुलाने लगे |


मिटटी में यहाँ की शेफा है |

सातवें दिन मौला अली (अ.स० ) ने राजू दादा को बशारत दी और कहा मत घबराओ औरंगजेब तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड़ सकता तुम्हे उस से डरने की ज़रुरत नहीं है | राजू दादा ने मौला अली (अ.स ) से कहा की वो चाहते हैं की आप ऐसी कोई चीज़ दे जायें जिस से कौम को शेफा हो उनका भला हो |

तो मौला मौला अली (अ.स ) के मुआज्ज़े से वहाँ एक पानी का चश्मा फूटा जो आज भी मौजूद है | जहां मौला अली (अ.स) खड़े थे वहाँ की मिटटी में आज भी शेफा है और वहाँ एक दूध का चश्मा निकला था जो अब नहीं है |

वो जगह जहाँ पानी का चश्मा फूटा था |
दरगाह के दफ्तर में पहुँचते ही वहाँ लोगों से जब कमरे के बारे में पुछा तो उन्होंने के कई कमरे दिखाए जिन्हें और 100-१५०-२०० जैसे हदिये पे ले सकते हैं | और मौला की तरफ से तो वक़्त आप को बेहतरीन साफ़ सफाई के साथ खाना भी मुफ्त में दिया जाता है |


ज़िन्दान बीबी सकीना

मश्क ज़िन्दान बीबी सकीना  के पास 
रौज़ा हज़रत अब्बास अलमदार


रौज़ा इमाम हुसैन ,राजू दादा के रौज़े के पास 
मस्जिद

रौज़ा हज़रात अब्बास अलमदार

मौला अली (अ.स)

दरगाह का दफ्तर

मौला अली (अस) के रौज़े का शेर दरवाज़ जहां से शेर सलाम करने आता था\

मौला अली (अस) का रौज़ा

दुआओं और मुरादों के बाद आराम और बेफिक्री के कुछ पल |

                                                             लेखक : एस एम् मासूम

लैलतुल रग़ाएब -रजब महीने की पहली शबे जुमा

$
0
0


रजब महीने की पहली शबे जुमा (गुरुवार की रात) को लैलतुर रग़ाएब कहा जाता है यानी आर्ज़ूओं और कामनाओं की रात ...
 https://www.youtube.com/user/payameamn
इस महान रात के कुछ ख़ास आमाल हैं, हमारी अगर कोई इच्छा कोई दुआ है और हम चाहते हैं कि अपनी कोई आरज़ू को पूरा कराएं तो हमको इस रात में ईश्वर की बारगाह में हाथ फैलाने चाहिएं और ख़ुदा से उनको पूरा करने की दुआ करनी चाहिए।

सबसे पहले हमें अपने पापो की क्षमां मांगना चाहिए अर्थात् अपने गुनाहों को लेकर अल्लाह की बारगाह में अफसोस ज़ाहिर करें और फिर गुनाहों के दलदल में न फंसने का वादा करें और इस वादे पर बाक़ी रहने की तौफ़ीक़ की दुआ करनी चाहिए।

इस रात में पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने ख़ास नमाज़ का आदेश दिया जिसका बहुत अधिक सवाब है और इस नमाज़ की वजह से बहुत से गुनाह माफ़ कर दिये जाते हैं।

लै-लतुर रग़ाएब की नमाज़ का तरीक़ा

रजब की पहली जुमेरात (गुरुवार) को रोज़ा रखें और जब मग़रिब का समय आ जाये तो मग़रिब और इशा की नमाज़ों के बीच 2-2 रक्कत करके 12 रक्अत नमाज़ पढ़ें

पहली रक्अत में एक बार सूरा-ए-हम्द (سورہ حمد) और तीन बार सूरा-ए-इन्ना अनज़ल्नाह (سورہ انا انزلناہ) और 12 बार क़ुल हुवल्लाहो अहद (قل ھو اللہ) पढ़ें, नमाज़ पूरी करने के बाद 70 बार पढ़ेः

اَللّہمَّ صَلِّ عَلى مُحَمَّدٍ النَّبِىِّ الاُْمِّىِّ وَعَلى آلِہ

अल्हुम्मा सल्ले अला मुहम्मदिन नबीइल उम्मी व अला आलेह

फिर सज्दे में सर रखें और 70 बार पढ़ेः

سُبُّوحٌ قُدُّوسٌ رَبُّ الْمَلائِكَةِ وَالرُّوحِ

सुब्बूहुन क़ुद्दूसुन रब्बुल मलाएकते वर्रूह

फिर सज्दे से सर उठायें और 70 बार पढ़ेः

رَبِّ اغْفِرْ وَارْحَمْ وَتَجاوَزْ عَمّا تَعْلَمُ اِنَّكَ اَنْتَ الْعَلِىُّ الاَعْظَم

रब्बिग़ फ़िर वरहम व तजावज़ अम्मा तअलम इन्नका अंतल अलीय़ुल अअज़म

फिर सज्दे में सर रखें और 70 बार पढ़ेः

سُبُّوحٌ قُدُّوسٌ رَبُّ الْمَلائِكَةِ وَالرُّوحِ

सुब्बूहुन क़ुद्दूसुन रब्बुल मलाएकते वर्रूह

फिर दुआ मांगे इंशा अल्लाह पूरी होगी



बरज़ख़ ,स्वर्ग.नरक और क़यामत क्या है

$
0
0


 https://www.youtube.com/user/payameamn


बरज़ख़

आयाते क़ुरआन और अहादीस मासूमीन (अ) से मालूम होता है कि मौत इंसान की नाबूदी का नाम नही है बल्कि मौत के बाद इंसान की रूह बाक़ी रहती है। अगर आमाल नेक हों तो वह रूह आराम व सुकून और नेमतों के साथ रहती है और अगर आमाल बुरे हों तो क़यामत तक अज़ाब में मुब्तला रहती है।

मौत के बाद से क़यामत तक के दरमियान की ज़िन्दगी को बरज़ख़ कहा जाता है। बरज़ख़ की ज़िन्दगी कोई ख़्याली ज़िन्दगी नही है बल्कि एक हक़ीक़ी ज़िन्दगी है।

बरज़ख़ के बारे में रिवायत में आया है कि

ان القبر ریاض من ریاض الجنة او حفرة من حفر النار

बरज़ख़ जन्नत के बाग़ों में से एक बाग़ या फिर जहन्नम की आग का एक हिस्सा है।[1]

 हज़रत अली (अ) का फ़रमान

हज़रत अमीरुल मोमिनीन (अ) से एक तूलानी रिवायत कई सनदों के साथ मोतबर किताबों में नक़्ल हुई है। आप उस रिवायत में बरज़ख़ के हालात को इस तरह बयान करते हैं:

जब इंसान की ज़िन्दगी का आख़िरी दिन और आख़िरत का पहला दिन होगा तो उस की बीवी, माल व दौलत और उस के आमाल उस के सामने मुजस्सम हो जायेगें, उस वक़्त मरने वाला शख़्स माल से सवाल करेगा कि क़सम ख़ुदा की मैं तेरा लालची था अब बता तू मेरे हक़ में क्या कर सकता है? माल जवाब देगा अपना कफ़न मुझ से लेकर चले जाओ। फिर वह अपने बच्चों की तरफ़ रुख़ कर के कहेगा: क़सम ख़ुदा की मैं तुम्हारा मुहिब और हामी था अब तुम मेरे लिये क्या कर सकते हो? वह जवाब देगें हम आप को क़ब्र तक पहुचा देगें और उस में दफ़्न कर देगें, उस के बाद वह आमाल की तरफ़ करेगा और कहेगा कि ख़ुदा की क़सम! मैं ने तुमसे मुँह फेर रखा था और तुम्हें अपने लिये दुशवार और मुश्किल समझता था अब तुम बताओ कि मेरे हक़ में क्या कर सकते हो? तो आमाल जवाब देंगे कि हम क़ब्र और क़यामत में तुम्हारे साथ रहेंगे यहाँ तक कि परवरदिगार के हुज़ूर में एक साथ हाज़िर होगें।

अब अगर इस दुनिया से जाने वाला अवलियाउल्लाह में से होगा तो उसके पास कोई ऐसा आयेगा जो लोगों में सब से ज़्यादा ख़ूबसूरत, ख़ुशबूदार और ख़ुश लिबास होगा और उससे कहेगा कि तुम्हे हर तरह के ग़म व दुख से दूरी और बहिशती रिज़्क़ और जावेद वादी की बशारत हो, इसलिये कि अब तुम बेहतरीन मंज़िल में आ चुके हो वह मरने वाला वली ए ख़ुदा सवाल करेगा ‘’तू कौन है?’’ वह जवाब देगा मैं तेरा नेक अमल हूँ लिहाज़ा अब तुम इस दुनिया से बहिश्त की तरफ़ कूच करो, फिर वह ग़ुस्ल और काधाँ देने वाले अफ़राद से कहेगा कि इसकी तजहीज़ व तकफ़ीन को ख़त्म करो........और अगर मय्यत ख़ुदा के दुश्मन की होगी तो उसके पास कोई आयेगा जो मख़्लूक़ाते ख़ुदा में सबसे ज़्यादा बद लिबास और बदबूदार होगा और वह उससे कहेगा मैं तुझे दोज़ख़ और आतिशे जहन्नम की ख़बर सुनाता हूँ फिर वह उसके ग़ुस्ल देने वालों और काँधा देने वालों से कहेगा कि वह इसके कफ़न व दफ़न में देर करें।

जब वह क़ब्र में दाख़िल होगा तो क़ब्र में सवाल करने वाले आ पहुँचेगें और उसके कफ़न को नोच देंगें और उस से मुख़ातिब हो कर कहेगें कि बता तेरा रब कौन है? नबी कौन है? और तेरा दीन क्या है? वह जवाब देगा कि मैं नही जानता। फिर सवाल करने वाले कहेगें कि क्या तूने मालूम नही किया और हिदायत हासिल नही की? फिर उस के सर पर ऐसा लोहे का गुर्ज़ लगायेगें कि जिस से जिन्नात व इंसान के अलावा ज़मीन के सारे जानवर हिल जायेगें। उस के बाद वह उस की क़ब्र में जहन्नम का एक दरवाज़ा खोल देगें और कहेगें कि बदतरीन हालत में सो जा और वह हालत ऐसी होगी कि तंगी की शिद्दत की वजह से वह नैज़े और उस की नोक की तरह हो जायेगा और उस का दिमाग़ नाख़ुनों और गोश्तों से बाहर निकल पड़ेगा। ज़मीन के साँप बिच्छू उससे लिपट जायेगें और अपने डंक से उस के बदन को अज़ाब देगें। मय्यत उसी अज़ाब में बाक़ी रहेगी। यहाँ तक कि ख़ुदा उसे क़ब्र से उठायेगा। (बरज़ख़ का) अरसा उस पर इस क़दर सख़्त और दुशवार होगा कि वह हमेशा यह आरज़ू करेगा कि जल्द से जल्द क़यामत आ जाये।[2]

 सारांश

-          मौत के बाद इंसान की रूह बाक़ी रहती है, अगर आमाल नेक हों तो वह रूह नेमतों से सर फ़राज़ रहती है और अगर आमाल बुरे हों तो क़यामत तक अज़ाब में मुबतला रहती है।

-          मौत से क़यामत तक के दरमियानी मुद्दत को ‘’बरज़ख़’’ कहा जाता है।

-          इमाम अली (अ) ने अपने एक तूलानी बयान में बरज़ख़ के हालात को बयान किया है।

*********
 [1]. बिहारुल अनवार जिल्द 6 पेज 159 रिवायत 19
 [2]. तफ़सीरे अयाशी जिल्द 2 पेज 227, फ़ुरु ए काफ़ी जिल्द 3

स्वर्ग

इंसान क़यामत में उठाये जाने के बाद अपने नाम ए आमाल को देखेगा और उसी के अनुसार स्वर्ग या नर्क में जायेगा। स्वर्ग एक हमेशा बाक़ी रहने वाली जगह है जिसे ख़ुदा वंदे आलम ने अपने नेक और अच्छे बंदों को ईनाम देने के लिये पैदा किया है, स्वर्ग में हर प्रकार की शारीरिक और आत्मिक लज़्ज़तें मौजूद होगें।

जिस्मानी (शारीरिक) लज़्ज़तें

क़ुरआन मजीद की आयतों में स्वर्ग की बहुत सी जिस्मानी लज़्ज़तों को बयान किया गया है जिन में से कुछ यह है:

1.    बाग़: स्वर्ग में आसमान व ज़मीन से भी ज़्यादा बड़े बाग़ होगें। (सूर ए आले इमरान आयत 133) यह बाग़ तरह तरह के फलों से भरे हुए होगें। (सूर ए दहर आयत 14, सूर ए नबा आयत 32)

2.    महल: क़ुरआने मजीद में स्वर्ग के घरों के बारे में ‘’मसाकिने तय्यबा’’ का शब्द आया है जिस से समझ में आता है कि उस में हर क़िस्म का आराम व सुकून होगा। (सूर ए तौबा आयत 72)

3.    स्वादिष्ट खाने: क़ुरआन की आयतों से मालूम होता है कि स्वर्ग में हर तरह के खाने होगें। इसलिये कि इस बारे में

مما یشتهون.

(सूर ए मुरसलात आयत 42) के शब्दों का प्रयोग हुआ है जिस का अर्थ हैं जन्नती जो भी चाहेगा वह हाज़िर होगा।

4.    लज़ीज़ शरबत: जन्नत में तरह तरह के लज़ीज़ शरबत होगें। इस लिये कि क़ुरआन मजीद में

لذة للشاربین

    (सूर ए मुहम्मद आयत 47) का इस्तेमाल हुआ है यानी वह शरबत, पीने वाले के लिये लज़ीज़ और स्वादिष्ट होता है।

5.    बीवियाँ: ज़ौजा या बीवी इंसान के सुकून का सबब होती है। आयतों और हदीसों से मालूम होता है कि स्वर्ग में ऐसी बीवियाँ होगीं। जो हर तरह की ज़ाहिरी और बातिनी विशेषताएं रखती होंगी, वह बहुत सुन्दर, मोहब्बत करने वाली और पवित्र होगीं। (सूर ए बक़रा आयत 25, सूर ए आले इमरान आयत 15)

रूहानी (आत्मिक) लज़्ज़ते

क़ुरआने मजीद में स्वर्ग की जिस्मानी लज़्ज़तों की तरह बहुत सी रुहानी लज़्ज़तों का भी तज़किरा हुआ है जिन में से बाज़ यह है:

1.    विशेष सम्मान: स्वर्ग में प्रवेश करते ही फ़रिश्ते उन का विशेष स्वागत करेगें और सदैव उनका सम्मान करेगें, हर दरवाज़े से फ़रिश्ते दाख़िल होगें और कहेगें कि दुनिया में इज़्ज़त और इस्तेक़ामत की वजह से तुम पर सलाम हो। (सूर ए राद आयत 23, 24)

2.    मुहब्बत और दोस्ती का माहौल: स्वर्ग में हर तरह की मुहब्बत और दोस्ती का माहौल होगा। (सूर ए निसा आयत 69)

3.    ख़ुशी और प्रसन्नता का एहसास: ख़ुशी और प्रसन्नता के कारण स्वर्ग वालों के चेहरे खिले होगें, उन की शक्ल व सूरत नूरानी, ख़ुश और मुस्कुराती हुई होगी। (सूर ए अबस आयत 39)

4.    ख़ुदा वंदे आलम की ख़ुशनूदी: ख़ुदा के राज़ी होने का एहसास सबसे बड़ा सुख है जो स्वर्ग वालों को प्राप्त होगा। (सूर ए मायदा आयत 119)

5.    ऐसी नेमतें जिन का तसव्वुर भी नही किया जा सकता: स्वर्ग में ऐसी चीज़ें और नेमतें होगीं जिन का इंसान तसव्वुर भी नही कर सकता। पैग़म्बरे इस्लाम (स) फ़रमाते हैं कि स्वर्ग में ऐसी नेमते होगीं जिन्हे न किसी आँख ने देखा है और न किसी दिल में उन का ख़्याल भी आया होगा। (नहजुल फ़साहा हदीस 2060)

क़ुरआने मजीद में स्वर्ग की उन तमाम जिस्मानी व रूहानी लज़्ज़तों और नेमतों की वजह से मुसलमानों से कहा गया है:

لمثل هذا فلیعمل العاملون .

(अगर ऐसी जन्नत चाहिये तो अमल करने वाले वैसा ही अमल करें।)

सारांश

-          इंसान अपने नाम ए आमाल के अनुसार स्वर्ग या नर्क में जाएगा। स्वर्ग एक हमेशा बाक़ी रहने वाली जगह है जहाँ ख़ुदा वंदे आलम नेक लोगों को ईनाम देगा।

-          जन्नत में बहुत से जिस्मानी व रूहानी लज़्ज़तें और नेंमतें होगीं। जिस्मानी लज़्ज़तें जैसे बाग़, महल, स्वादिष्ट खाने, लज़ीज़ शरबत, ख़ूबसूरत बीवियाँ वग़ैरह।

-          रूहानी लज़्ज़तें जैसे जन्नत वालों का विशेष सम्मान, मुहब्बत व दोस्ती का माहौल, ख़ुशी का अहसास, ख़ुशनूदी ए ख़ुदा और ऐसी नेमतें जिन का तसव्वुर भी नही किया जा सकता।

-          ऐसी जन्नत पाने के लिये आमाल भी उसी तरह करने होगें। इस लिये कि क़ुरआन में वाज़ेह तौर पर इरशाद होता है:

لمثل هذا فلیعمل العاملون

(सूर ए साफ़्फ़ात आयत 60)
नर्क

क़यामत में उठाये जाने के बाद काफ़िरों और मुनाफ़िक़ों और पापी लोग नर्क में जायेगें। नर्क के अज़ाब और मुसीबतों का मुक़ाबला दुनिया की मुसीबतों से नही किया जा सकता।

क़ुरआने मजीद में ख़ुदा वंदे आलम जहन्नम के बहुत ही दर्दनाक हालत के बारे में इरशाद फ़रमाता है ‘’जिन्होने हमारी आयतों का इंकार किया है जल्दी ही हम उन्हे आग में झोंक देगें और जब भी उन के बदन की खाल जल कर ख़त्म हो जायेगी हम दोबारा एक नई खाल उन के बदन पर चढ़ा देगे ता कि वह दोबारा जलें और हमारे अज़ाब को चखें बेशक ख़ुदा वंदे आलम क़ुदरत वाला और हकीम है।’’ (सूर ए निसा आयत 65)

जिस तरह से पिछले लेख (स्वर्ग) में हमने पढ़ा कि ख़ुदा ने स्वर्ग वालों के लिये जिस्मानी व रूहानी लज़्ज़ते क़रार दी है उसी तरह से जहन्नम वालों के लिये भी ख़ुदा ने जिस्मानी व रूहानी सज़ा का इंतेज़ाम किया है जिन में से कुछ यह है:

शारीरिक अज़ाब

1.    अज़ाब की भयानकता: जहन्नम का अज़ाब इस क़दर भयानक होगा कि जहन्नम वाले यह आरज़ू करेगा कि अपनी बीवी, बच्चे, भाई और ज़मीन के तमाम लोगों को फ़िदा कर दे ताकि इस अज़ाब से निजात पा सके। (सूर ए मआरिज आयत 11, 14)

2.    ख़ौफ़नाक आवाज़ें: नर्क में चीख व पुकार, फ़रियाद और भयानक आवाज़े होगीं। (सूर ए फ़ुरक़ान आयत 13, 14)

3.    गंदा पानी: जब भी नर्क वाले प्यास की अधिकता से पानी माँगेंगें तो उन्हे गर्म, गंदा और सड़ा हुआ पानी दिया जायेगा और वह उसे पी लेगें। (सूर ए अनआम आयत 70, सूर ए युनुस आयत 4, सूर ए क़हफ़ आयत 29, सूर ए मुहम्मद आयत 15)

4.    खाना: ज़क़्क़ूम (थूहड़) का पेड़, गुनाह करने वालों के लिये खाना होगा और पिघले हुए ताँबें की तरह पेट में खौलेगा। (सूर ए दुख़ान आयत 43, 46)

5.    आग के कपड़े: क़ुरआने मजीद में इरशाद होता है कि जो लोग काफ़िर हुए हैं उन के लिये आग से लिबास काट कर निकाला जायेगा और जलती और खौलती हुई एक बहने वाली चीज़ उन के सर पर डालेगी जिस की वजह से उन का ज़ाहिरी और बातिनी हिस्सा पिघल जायेगा। (सूर ए हज आयत 19, 21)

आत्मा का अज़ाब

1.    ग़म व दुख और हसरत: जहन्नम वाले जब भी जहन्नम के ग़म व दुख से निकलना चाहेगें उन से कहा जायेगा कि पलट जाओ और जहन्नम के अज़ाब को चखो। (सूर ए हज आयत 22)

2.    लानत: जहन्नम वाले एक दूसरे पर लानत भेजेगें। (सूर ए अनकबूत आयत 25)

3.    शैतान की बुराई: जहन्नम वाले शैतान से कहेगें कि तुम्हारी वजह से हम गुमराह हुए। वह जवाब देगा कि ख़ुदा ने तुम्हे सच्चा वादा दिया तुम ने कबूल न किया और मैंने झूठा वादा दिया और तुमने कबूल कर लिया। लिहाज़ा मेरे बजाए ख़ुद को बुरा भला कहो। (सूर ए इब्राहीम आयत 22)

4.    जहन्नम में जाने का सबब: कुफ़्र व निफ़ाक की वजह से तो लोग जहन्नम में जायेगें ही उस के अलावा अगर कोई इबादात और वाजिबात को बजा न लाये और जिन चीज़ों से मना किया गया है उन्हे अंजाम दे वह भी जहन्नम में जायेगा। इस लिये कि क़ुरआने मजीद में इरशाद होता है (जन्नत वाले, जहन्नम वालों से सवाल करेगें कि किस चीज़ ने तुम्हे जहन्नम में झोंक दिया? वह जवाब देगें कि हम नमाज़ी नही थे, ग़रीबों की मदद नही करते थे, बुराई करने वालों के साथ हो जाते थे और क़यामत का इंकार करते थे।) (सूर ए मुद्दसिर आयत 40, 42)

सारांश

-          कुफ़्फ़ार, मुनाफ़ेक़ीन और गुनाहगार लोग जहन्नम में जायेगें।

-          जहन्नम में बहुत से जिस्मानी और रुहानी अज़ाब होगें जो दुनिया के अज़ाब और सज़ा से क़ाबिले क़यास न होगें।

-          जहन्नम वाले शदीद अज़ीब में रहेगें, उन के आस पास भयानक आवाज़े होगीं, जहन्नम वालों का खाना गंदा और सड़ा हुआ पानी और आग का खाना होगा और उन का लिबास आग का होना।

-          उन का रूहानी अज़ाब यह होगा कि वह हमेशा ग़म व दुख में रहेगें, एक दूसरे पर लानत भेजेगें, इसी तरह शैतान भी उन की बुराई करेगा।

-          कुफ़्फ़ार व मुनाफ़ेक़ीन तो जहन्नम में जायेगें ही, उन के अलावा वह लोग भी जहन्नम में जायेगें जो नमाज़ नही पढ़ते, ग़रीबों की मदद नही करते, बुरों का साथ देते हैं और क़यामत का इंकार करते हैं।

क़यामत

मौत के बाद क़यामत के दिन दुनिया में किये गये कामों का ईनाम या सज़ा पाने के लिये तमाम इंसानों के दोबारा ज़िन्दा किये जाने को ‘’मआद’’ कहते हैं।

मआद, उसूले दीन का पाचवाँ हिस्सा है जो बहुत अहम है और क़ुरआने मजीद की 1200 आयतें मआद के बारे में नाज़िल हुई हैं, दूसरे उसूले दीन की तरह जो शख़्स मआद का इंकार करे वह मुसलमान नही रहता. तमाम नबियों ने तौहीद की तरह लोगों को इस अक़ीदे की तरफ़ भी दावत दी है।

क़यामत की दलीलें

उलामा ने मआद की ज़रुरत पर बहुत सी दलीलें पेश की हैं जिन में से बाज़ यह हैं:

1.      ख़ुदा का आदिल होना

ख़ुदा वंदे आलम ने इंसानों को अपनी इबादत के लिये पैदा किया है लेकिन इंसान दो तरह के होते हैं: 1. वह जो ख़ुदा के नेक और सालेह बंदे हैं। 2. वह जो ख़ुदा की मासियत और गुनाहों में डूबे हुए हैं।

चूँकि ख़ुदा आदिल है लिहाज़ा ज़रुरी है कि वह मोमिन को ईनाम और गुनाह करने वाले को सज़ा दे। लेकिन यह काम इस दुनिया में नही हो सकता इस लिये कि जिस शख़्स ने सैकड़ों क़त्ल किये हों उसे इस दुनिया अगर सज़ा दी जाये तो उसे ज़्यादा से ज़्यादा मौत की सज़ा दी जायेगी। जो सिर्फ़ एक बार होगी जब कि उसने सैकड़ों क़त्ल किये हैं लिहाज़ा कोई ऐसी जगह होनी चाहिये जहाँ ख़ुदा उसे उस के अमल के मुताबिक़ सज़ा दे और वह जगह आख़िरत (मआद) है।

2.      इंसान का बे मक़सद न होना

हम जानते हैं कि ख़ुदा ने इंसान को बे मक़सद पैदा नही किया है बल्कि एक ख़ास मक़सद के तहत उसे वुजूद अता किया है और वह ख़ास मक़सद यह दुनियावी ज़िन्दगी नही है। इस लिये कि यह महदूद और ख़त्म हो जाने वाली ज़िन्दगी है जिस के बाद सब को उस दुनिया की तरफ़ जाना है जो हमेशा बाक़ी रहने वाली है लिहाज़ा अगर उसी दुनियावी ज़िन्दगी को पैदाईश का मक़सद मान लिया जाये तो यह एक बेकार और बे बुनियाद बात होगी। लिहाज़ा अगर ज़रा ग़ौर व फ़िक्र किया जाये तो मालूम हो जायेगा कि इंसान इस महदूद दुनियावी ज़िन्दगी के लिये नही बल्कि एक बाक़ी रहने वाली ज़िन्दगी के लिये पैदा किया गया है जो बाद के बाद की ज़िन्दगी यानी मआद है और यह दुनिया उसी असली ज़िन्दगी के लिये एक गुज़रगाह है। इस सिलसिले में क़ुरआने मजीद में इरशाद होता है:

افحسبتم انما خلقناکم عبثا و انکم الینا لا ترجعون .

क्या तुम यह ख़्याल करते हो कि हम ने तुम्हे बे मक़सद पैदा किया है और तुम हमारी तरफ़ पलट कर न आओगे? (सूर ए मोमिनून आयत 115)

मआद के दिन सब के आमाल उन के सामने लाये जायेगें। जिन लोगों ने नेक आमाल अंजाम दिये है उन का नाम ए आमाल दाहिने हाथ में होगा लेकिन जिन लोगों ने बुरे आमाल किये होगें उन की नाम ए आमाल बायें हाथ में होगा और बुरे आमाल वाला अफ़सोस करेगा कि ऐ काश मैं बुरे काम अंजाम न देता।

सारांश

-          क़यामत के दिन ईनाम और सज़ा पाने के लिये मौत के बाद तमाम इंसानों के दोबारा ज़िन्दा होने को मआद कहते हैं, इस्लाम में मआद को काफ़ी अहमियत हासिल है।

मआद की दो अहम दलीलें:

1.    ख़ुदा का आदिल होना: इस दुनिया में नेक काम करने वालों को ईनाम और गुनाह करने वालों को सज़ा नही दी जा सकती। लिहाज़ा एक ऐसी जगह का होना ज़रुरी है जहाँ ख़ुदा अपनी अदालत के ज़रिये ईनाम और सज़ा दे सके और वह जगह वही आलमे आख़िरत या मआद है।

2.    इंसान का बे मक़सद न होना: ख़ुदा ने इंसान को बे मक़सद पैदा नही किया है बल्कि ख़ास मक़सद के तहत उसे वुजूद बख़्शा है और वह ख़ास मक़सद यह महदूद दुनियावी ज़िन्दगी नही हो सकती। इस लिये कि यह एक बेकार बात होगी, वह ख़ास मक़सद हमेशा बाक़ी रहने वाली ज़िन्दगी है और इस दुनिया के बाद हासिल होगी जिसे मआद कहते हैं।'



ज़ियारते नाहिया हिन्दी अनुवाद

$
0
0


सलाम हो ख़लक़े ख़ुदा में चुने रोज़गार नबी आदम (अ:स) पर

सलाम हो अल्लाह के वली और इस के नेक बन्दे शीस (अ:स) पर

सलाम हो ख़ुदा के दलीलों के मज़हर इदरीस (अ:स) पर

सलाम हो सलाम हो नूह (अ:स) पर अल्लाह ने जिन की दुआ क़बूल की

ज़ियारते नाहिया हिन्दी अनुवाद
 https://www.facebook.com/jaunpurazaadari

सलाम हो हूद (अ:स) पर जिन की मुराद अल्लाह ने पूरी की

सलाम हो सालेह (अ:स) पर जिन की अल्लाह ने अपने लुत्फ़ ख़ास से रहबरी की

सलाम हो इब्राहीन (अ:स) खलील पर जिन्हें अल्लाह ने अपनी दोस्ती के ख़िल'अत से आ'रास्ता किया

सलाम हो फिदया-ए-राहे हक़ इस्माइल (अ:स) पर जिन्हें अल्लाह ने जन्नत से ज़िबह-अज़ीम का तोहफा भेजा

सलाम हो इसहाक़ (अ:स) पर जिन की ज़ुर्रियत में अल्लाह ने नबू'अत क़रार दी

सलाम हो याकूब (अ:स) पर जिन की बिनाई अल्लाह की रहमत से वापस आ गयी

सलाम हो युसूफ (अ:स) पर जो अल्लाह की बुज़ुर्गी के तुफैल कुंवे से रिहा हुए

सलाम हो मूसा (अ:स) पर जिन के लिए अल्लाह ने अपनी क़ुदरते ख़ास से दरया में रास्ते बना दिए

सलाम हो हारुन (अ:स) पर जिन्हें अल्लाह ने अपनी नबू'अत के लिए मखसूस फरमाया

सलाम हो शु'ऐब (अ:स) पर जिन्हें अल्लाह ने उन की उम्मत पर नुसरत देकर सरफ़राज़ किया

सलाम हो दावूद (अ:स) पर जिन की तौबा क़ो अल्लाह ने शरफे- क़बूलियत अता किया

सलाम हो सुलेमान (अ:स) पर जिन के सामने अल्लाह की इज़्ज़त के तुफैल जिनों ने सर झुका लिया

सलाम हो अय्यूब (अ:स) पर जिन क़ो अल्लाह ने बीमारी से शफ़ा दी

सलाम हो युनुस (अ:स) पर जिन के वादे क़ो अल्लाह ने पूरा किया

सलाम हो अज़ीज़ (अ:स) पर जिन क़ो अल्लाह ने दुबारा ज़िंदगी अता की

सलाम हो ज़करया (अ:स) पर जिन्हों ने सख्त आज़्मा'इशों में भी सबर से काम लिया

सलाम हो यहया (अ:स) पर जिन्हें अल्लाह ने शहादत से सर बुलंद किया

सलाम हो ईसा (अ:स) पर जो अल्लाह की रूह और इस का पैग़ाम हैं

सलाम हो मुहम्मद मुस्तफा (स:अ:व:व) पर जो अल्लाह के हबीब और इस के मुन्तखिब बन्दे हैं

सलाम हो अमीरुल मोमिनीन हज़रत अली इब्न अबी तालिब (अ:स) पर जिन्हें नबी (स:अ:व:व) के क़ु'वते बाजू होने का शरफ़ हासिल है

सलाम हो रसूल की इकलौती बेटी फ़ातिमा (स;अ) पर

सलाम हो इमाम हुसैन (अ:स) पर जो अपने बाबा की अमानतों के रखवाले और इनके जा'नशीन हैं

सलाम हो हुसैन (अ:स) पर जिन्हों ने इन्तेहाई ख़ुलूस से राहे ख़ुदा में जन निसार कर दी

सलाम हो इस पर जिस ने खिल्वत व जलवत में छिप कर आशकार अल्लाह की इता'अत व बंदगी की

सलाम हो इस पर जिस की कब्र की मिटटी ख़ाके शिफ़ा है

सलाम हो इस पर जिस के हरम की फ़िज़ा में दुआएं क़बूल होती हैं

सलाम हो इस पर के सिलसिले इमामत इस की ज़ुर्रियत से है

सलाम हो पेसर-ए-खत्मी मर्ताबत (अ:स) पर

सलाम हो सय्यद-ए-औसिया (अ:स) के फ़र्ज़न्द पर

सलाम हो फातिमा ज़हरा (स:अ) के बेटे पर

सलाम हो ख़दी'जतुल कुबरा (स:अ) के नवासे पर

सलाम हो सिदरतुल मुन्तहा के वारिस-ओ-मुख्तार पर

सलाम हो जन्नतुल मावा के मालिक पर

सलाम हो ज़मज़म व सफ़ा वाले पर

सलाम हो उस पर जो ख़ाक़ व खून में गलताँ हुआ

सलाम हो उस पर जिसकी सरकार लूटी गयी

सलाम हो किसा वालों की पांचवीं शख्सीयत पर

सलाम हो सब से बड़े परदेसी पर

सलाम हो सरवरे शहीदां पर

सलाम हो उस पर जो बे नंग-ओ-नाम लोगों के हाथों शहीद हुआ

सलाम हो कर्बला में आकर बसने वाले पर

सलाम हो उस पर जिस पर फ़रिश्ते रोये

सलाम हो उस पर जिस की ज़ुर्रियत पर-ओ-पाकीज़ा है

सलाम हो दीं के सय्यद-ओ-सरदार पर

सलाम हो उन पर दलाएल-ओ-ब्राहीन की अमाज्गाह हैं

सलाम हो उन पर जो सरदारों के सरदार इमाम हैं

सलाम हो चाक गरीबानों पर

सलाम हो मुरझाये हुए होटों पर

सलाम हो कर्ब-ओ-अंदोह में घिरे हुए चूर-चूर नफूस पर

सलाम हो उन रूहों पर जिन के जिस्मों क़ो धोके से तहे तेग़ किया गया

सलाम हो बे गोरो-कफ़न लाशों पर

सलाम हो ईन जिस्मों पर धुप कि शिद्द्त से जिन के रंग बदल गए

सलाम हो खून की ईन धारों पर जो कर्बला के दामन में जज़्ब हो गयीं

सलाम हो बिखरे हुए अज़ा पर

सलाम हो ईन सरों पर जिन्हें नेजों पर बुलंद किया गया

सलाम हो उन मुखद'देराते इस्मत पर जिन्हें बे-रिदा फिराया गया

सलाम हो दोनों जहानों के पालनहार की हुज्जत पर

सलाम हो आप पर और आप के पाक-ओ-पाकीज़ा आबा-ओ-अजदाद पर

सलाम हो आप पर और आप के शहीद फ़रज़न्दों पर

सलाम हो आप पर और आपकी नुसरत करने वाली ज़ुर्रियत पर

सलाम हो आप पर और आप के क़ब्र के मुजाविर फ़रिश्तों पर

सलाम हो इन्तेहाये मज़लूमियत के साथ क़त्ल होने वाले पर

सलाम हो आप के, ज़हर से शहीद होने वाले भाई पर

सलाम हो अली अकबर (अ:स) पर

सलाम हो कमसिन शीरख़ार पर

सलाम हो ईन नाजनीन जिस्मों पर जिन पर कोई कपड़ा नहीं रहने दिया गया

सलाम हो आप के दर-बदर किये जाने वाले ख़ानदान पर

सलाम हो उन लाशों पर जो सहराओं में बिखर गयी

सलाम हो उन पर जिन से ईन का वतन छुड़ाया गया

सलाम हो उन पर जिन्हें बगैर कफ़न के दफनाना पड़ा

सलाम हो उन सरों पर जिन्हें जिस्मों से जुदा कर दिया गया

सलाम हो उस पर जिस सब्र-ओ-शकेबाई के साथ अल्लाह की राह में जान कुर्बान की

सलाम हो उस मज़लूम पर जो बे यारो मददगार था

सलाम हो पाक-ओ-पाकीज़ा ख़ाक़ में बसने वाले पर

सलाम हो बुलंद-ओ-बाला क़ाभ: वाले पर

सलाम हो उस पर जिसे ख़ुदाए बुज़ुर्ग-ओ-बरतर ने पाक किया

सलाम हो उस पर जिसकी खिदमत गुज़ारी पर जिब्रील क़ो नाज़ था

सलाम हो उस पर जिसे मीकाईल ने गहवारे में लोरी दी

सलाम हो उस पर जिसके दुश्मनों ने उसको और उसके अहले हरम के सिलसिले में अपने अहद-ओ-पैमान क़ो तोड़ा

सलाम हो उस पर जिसकी हुरमत पामाल हुई

सलाम हो जिस का खून ज़ुल्म के साथ बहाया गया

सलाम हो ज़ख्मों से नहाने वाले पर

सलाम हो उस पर जिसे प्यास की शिद्द्त में नोके सिना के तल्ख़ घूँट पिलाए गए

सलाम हो उस पर जिसको ज़ुल्म-ओ-सितम का निशाना भी बनाया गया और उसके ख्याम के साथ उसके लिबास क़ो लूट लिया गया

सलाम हो उस पर जिसे इतनी बड़ी काएनात में यको-तन्हा छोड़ दिया गया

सलाम हो उस पर जिसे यूँ उरयाँ छोड़ा गया जिसकी मिसाल नहीं मिलती

सलाम हो उस पर जिसके दफ़न में बादियाह नशीनों ने हिस्सा लिया

सलाम हो उस पर जिस की शह'रग काटी गयी

सलाम हो दीं के इस हामी पर जिस ने बगैर किसी मददगार के दिफायी जंग लड़ी

सलाम हो इस रेश अक़दस पर जो खून से रंगीन हुई

सलाम हो आप के ख़ाक़ आलूद रुखसारों पर

सलाम हो लूटे और नुचे हुए बदन पर

सलाम हो इस दन्दाने मुबारक पर जिस के छड़ी से बे'हुर्मती की गयी

सलाम हो कटी हुई शह'रग पर

सलाम हो नीजे पर बुलंद किये जाने वाले सरे अक़दस पर

सलाम हो ईन मुक़द्दस जिस्मों पर जिन के टुकड़े सहरा में बिखर गए (1)

(1) यहाँ ऐसे मसाएब का ज़िक्र है जिसके तर्जुमे से दिल लरज़ता है (अनुवादक)

आक़ा ! हमारा सलामे न्याज़ो अदब क़बूल फरमाइए, नीज आप (अ:स) के क़ुबह के गिर्द पर्वानावार फ़िदा होने वाले, आप(अ:स) की तुर्बत क़ो हमेशा घेरे रहने वाले, आप (अ:स) की ज़रीह-ए-अक़दस का हमेशा तवाफ़ करने वाले और आप की ज्यारत के लिए आने वाले फ़रिश्तों पर भी हमारे सलाम निछावर हों!

आक़ा ! मै आप (अ:स) के हुज़ूर में सलामे शौक़ का हदिया लिए कामयाबी-ओ-कामरानी की आस लगाए हाज़िर हुआ हूँ!

आक़ा ! ऐसे गुलाम का अकीदत से भरपूर सलाम क़बूल कीजिये जो आप (अ:स) की इज़्ज़त-ओ-हुरमत से आगाह, आप की विलायत में मुख्लिस, आप की मुहब्बत के वसीलह से अल्लाह के तक़र्रुब का शैदा नीज़ आप के दुश्मनों से बरी-ओ-बेज़ार है!

आक़ा ! ऐसे आशिक़ का सलाम क़बूल फरमाइए जिस का दिल आप की मुसीबतों के सबब ज़ख्मों से छलनी हो चूका है और आप की याद में खून के आंसू बहाता है

आक़ा ! इस चाहने वाले का आदाब क़बूल कीजिये जो आप के ग़म में निढाल, बेजान और बेचैन है

आक़ा ! इस जाँ-निसार का हदिया-ए-सलाम क़बूल कीजिये जो अगर कर्बला में आप के साथ होता तो आप की हिफाज़त के लिये तलवारों से टकरा कर अपनी जान की बाज़ी लगा देता! दिलो-जान से आप पर फ़िदा होने के लिये मौत से पंजा आज़माई करता, आप के सामने जंगो-जिहाद के जौहर दिखाता, आप के ख़िलाफ बग़ावत करने वालों के मुक़ाबले में आप की मदद करता, और अंजाम कार अपना जिस्मो-जान, रूहो-माल, और आल और औलाद सब कुछ आप पर कुर्बान कर देता!

आक़ा ! इस जाँ-निसार का सलाम क़बूल कीजिये, जिस की रूह आप की रूह पर फ़िदा और इस के अहलो-याल आपके अहलो-याल पर तसदीक़

मौला! मै वाक़या-शहादत के बाद पैदा हुआ, अपनी क़िस्मत के सबब मै हुज़ूर (स:अ:व:व) की नुसरत से महरूम रहा, आप के सामने मैदाने कारज़ार में उतरने वालों में शामिल न हो सका, और न ही मै आपके दुश्मनों से नब्रो-आज़्मा हो सका!

लिहाज़ा!अब मै कमाले हसरतो अंदोह के साथ आप पर टूटने वाले मसा'येबो आलाम पर अफ़्सोसो-मलाल और तपिशे रंजो-ग़म के सबब सुबहो शाम मुसलसल गिरया-ओ-ज़ारी करता रहूँगा

नीज़!आप के खून की जगह इस क़दर खून के आंसू बहाऊंगा की अंजामे कार ग़मो-अंदोह की भट्टी और मुसीबतों के लपकते हुए शोलों में जल कर खाकस्तर हो जाऊं और यूँ आप के हुज़ूर अपनी जाँ के नजराना पेश कर दूँ!

आक़ा ! मै शहादत देता हूँ की :आप ने नमाज़ क़ायेम करने का हक़ अदा फ़रमाया, ज़कात अदा की, नेकी का हुक्म दिया, बुराई और दुश्मनी से रोका, दिलो जान से अल्लाह की अता'अत की, पल भर के लिये भी इस की ना फ़रमानी नहीं की, अल्लाह और इसके रस्सी से यूँ वाबस्ता रहे के इस की रज़ा हासिल कर ली, हमेशा इस के काम की निगाह'दाश्त व पासबानी करते रहे, इस की आवाज़ पर लब्बैक कही, इस की सुन्नतों क़ो क़ायेम किया, फ़ितनों की भड़कती हुई आग क़ो बुझाया, लोगों क़ो हक़-ओ-हिदायत की तरफ बुलाया, ईन के लिये हिदायत के रास्तों क़ो रौशन व मुनव्वर करके वाज़ेह किया, नीज़ आप ने अल्लाह के रास्ते में जेहाद करने का हक़ अदा कर दिया!

आक़ा ! मै दिलो जान से गवाही देता हूँ की:आप हमेशा दिल से अल्लाह के फर्माबरदार हैं, आप ने हमेशा अपने जददे-अमजद (स:अ:व:व) की इत्तेबा और पैरवी की, अपने वालिदे माजिद के इरशादात क़ो सुना और इस पर अम्ल किया, भाई की वसीयत की तेज़ी से तकमील की, दीं के सतून क़ो बुलंद किया, बगावतों क़ो चकना चूर किया और सरकशों और बागियों की सरकोबी की!

आप हमेशा उम्मत के नासेह बन कर रहे, आप ने जाँ-सिपारी की सख्तियों क़ो सब्रो-तहम्मुल और बुर्द'बारी से बर्दाश्त किया, फ़ासिकों का जम कर मुक़ाबला फ़रमाया, अल्लाह की हुज्जतों क़ो क़ायेम किया, इस्लाम और मुसलामानों की दस्तगीरी की हक़ की मदद की, आज़माइशों के मौक़ा पर सब्रो शकेबाई से काम लिया, दीं की हिफाज़त की, और इस के दाएरा-ए-कार की निगाहदाश्त फरमाई

आक़ा! मै अल्लाह के हुज़ूर में गवाही देता हूँ की :आप ने मीनारे हिदायत क़ो क़ायेम रखा, अदल की नस्रो-इशा'अत की, दीं की मदद करके इसे ज़ाहिर किया, दीं के तज़हीक़ करने वालों क़ो रोका, और इन्हें क़रार-ए-वाक़ई सज़ा दी, सिफ्लों से शरीफों का हक़ लेकर इन्हें पहुंचाया, और अदलो इंसाफ़ के मामले में कमज़ोर और ताक़तवर में बराबरी राव रखी!

आक़ा! मै इस बात की भी गवाही देता हूँ की :आप यतीमों के सरपरस्त और ईन के दिलों की बहार, ख़लक़े ख़ुदा के लिये बेहतरीन पनाहगाह, इस्लाम की इज़्ज़त, अहकामे इलाही का मख्ज़ंन और इनामो-इकराम का मादन, अपने जददे अमजद और वालिदे माजिद के रास्तों पर चलने वाले, और अपनी वसीयत और नसीहत में अपने भाई जैसे थे!

मौला! आप (अ:स) की शानो सफ़ात यह हैं के आप (अ:स) "जिम्मेदारियों क़ो पूरा करने वाले, साहिबे औसाफ़ हमीदा, जूडो करम में मशहूर, शब् की तारीकीयों में तहज्जुद गुज़ार, मज़बूत तरीकों क़ो अखत्यार करने वाले, ख़लक़े ख़ुदा में सबसे ज़्यादा खूबियों के मालिक, अज़ीम माज़ी के हामिल, आला हस्बो-नसब वाले, बुलंद मरतबों और बे पनाह मूनाकिब का मरकज़, पसंदीदा नमूने अमल के ख़ालिक़, मिसाली ज़िन्दगी बसर करने वाले, बा'विक़ार, बुर्दबार, बुलंद मर्तबा, दरया दिल, दाना व बीना, साहिबे अज़्मो जज़म, ख़ुदा शनास रहबर, खौफ़ो खशियत और सोज़ो तपिश रखने वाले, ख़ुदा क़ो चाहने और इस की बारगाह में सर देने वाले

आप! रसूले अकरम (स:अ:व:व) के फ़र्ज़न्द, क़ुरान बचाने वाले, उम्मत के मददगार, इता'अते इलाही में जफ़ाकश, अह्दो मिसाक़ के पाबन्द व मुहाफ़िज़, फ़ासिकों के रास्ते से दूर रहने वाले, हसूले मक़सद के लिये दिलो जाँ की बाज़ी लगाने वाले, और तूलानी रुकू'अ व सुजूद अदा करने वाले हैं!

मौला! आप ने दुन्या से इस तरह मुंह मोड़ा और यूँ बे-या'तनाई दिखाई जैसे दुन्या से हमेशा कूच करने वाले करते हैं, दुन्या से खौफ़'ज़दः लोग इसे देखते हैं, आप की तमन्नाएं और आरज़ूएं दुन्या से हटी हुई थीं, आप की हिम्मत-व-कोशिश इस की ज़ीनतों से बे नेयाज़ थीं, और आप ने तो दुन्या के चेहरे की तरफ़ कभी उचटती हुई निगाह भी नहीं डाली!

अलबता! आख़रत में आप की दिलचस्पी शःराए आफ़ाक़ है! यहाँ तक की, वो वक़्त आया, जब ________'जोरो सितम ने लम्बे लम्बे दाग भर कर सरकशी शुरू कर दी, ज़ुल्म तमाम तर हथ्यार जमा करके सख्त जंग के लिये आमादा हो गया, और बाग़ियों ने अपने तमाम साथियों क़ो बुला भेजा!

उस वक़्त 'आप 'अपने जड़ के हरम में पनाह गुज़ीं, जालिमों से अलग थलग, मस्जिदे मेहराब के साए में लज़'ज़ात और ख्वाहिशात से बेज़ार बैठे थे, आप अपनी ताक़त और इमकानात के मुताबिक दिलो ज़बान के ज़रिये बुराइयों से नफ़रत का इज़हार करते और लोगों क़ो बुराइयों से रोकते थे!मगर____________'फिर आप के इल्म का तक़ाज़ा हुआ की आप खुल्लम खुल्ला बैयत से इनकार कर दें और फजार के ख़िलाफ जेहाद के लिये उठ खड़े हों,चुनान्चेह आप अपने अहलो'याल, अपने शीयों, अपने चाहने वालों और जाँ-निसारों क़ो लेकर रवाना हो गए!

और अपनी इस मुख़्तसर लेकिन बा'अज़्मो हौसला जमा'अत की मदद से, हक़ और दलायेल व ब्राहीन क़ो अच्छी तरह वाज़ेह कर दिया, लोगों क़ो हिकमत और मो'अज़'ज़े हुस्ना के साथ अल्लाह की तरफ़ बुलाया, हदूदे इलाही के क़याम और अल्लाह की इता'अत का हुक्म दिया, और लोगों क़ो ख़बा'इसो बेहूदगीयों और सरकशी से रोका! लेकिन लोग ज़ुल्मो सितम के साथ आप के मुक़ाबले पर डट गए! ऐसे आड़े वक़्त पर भी'आप (अ:स) ने पहले तो ईन क़ो ख़ुदा के गज़ब से डराया और ईन पर हुज्जत तमाम की और फिर इनसे जिहाद किया! तब'इन्होंने आप से किया हुआ अहद तोड़ा और आप की बैयत से निकल कर आप के रब और आप के जददे अमजद क़ो नाराज़ किया और आप के साथ जंग शुरू कर दी!

लिहाज़ा! आप भी मैदान कारज़ार में उतर आये, आप ने फज्जर के लश्करों क़ो रौंद डाला, और ज़ुल्फ़िकार सोंत कर जंग के गहरे ग़ुबार के बादलों में घुस कर ऐसे घमसान का रन डाला के लोगों क़ो अली (अ:स) की जंग याद आ गयी! दुश्मनों ने आप की साबित क़दमी, दिलेरी और बे'बाकी देखि तो ईन का पत्ता पानी हो गया और इन्हों ने मुक़ाबला के बजाये मक्कारी से काम लिया और आप के क़त्ल के लिये फ़रेब के जाल बिछा दिए, और मल'उन उमर'साद ने लश्कर क़ो हुकुम दिया के वोह आप पर पानी बंद कर दे और तक पानी पहुँचने के तमाम रास्तों की नाकाबंदी कर दे! फिर दुश्मन ने तेज़ जंग शुरू कर दी और आप पर पै-दर-पै हमले करने लगा जिस के नतीजे में इस ने आप कू तीरों और नेजों से छलनी कर दिया, और इन्तेहाई दरिंदगी के साथ आप क़ो लूट लिया! इस ने न तो आप के सिलसिले में किसी अह्दो-पैमान की परवा की और न ही आप के दोस्तों के क़त्ल और आप और आपके अहलेबैत (अ:स) का सामान ग़ारत के सिलसिले में किसी गुनाह की फ़िक्र की! और आप ने मैदाने जंग में सब से आगे बढ़ कर मसायेबो मुश्किलात क़ो यूँ झेला के आसमान के फ़रिश्ते भी आप की सब्रो इस्ताक़ामत पर दांग रह गए !

फिर'दुश्मन हर तरफ़ से आप पर टूट पड़ा, इस ने आप क़ो ज़ख्मों से चूर चूर करके निढाल कर दिया और दम लेने तक की फुर्सत न दी, यहाँ तक की आप का कोई नासिरो मददगार बाक़ी न रहा और आप इन्तेहाई सब्रो शकेबाई से सब कुछ देखते और झेलते हुए यक्का-ओ-तनहा अपनी मुख़द'देराते इस्मतो तहारत और बच्चों क़ो दुश्मनों के हमले से बचाने में मसरूफ़ रहे! यहाँ तक की दुश्मन ने आप क़ो घोड़े से गिरा दिया और आप ज़ख्मों से पाश पाश जिस्म के साथ ज़मीन पर गिर पड़े फिर वोह तलवारें लेकर आप पर पिल पड़ा और उस ने घोड़ों के सुमों से आप क़ो पामाल कर दिया! यह वोह वक़्त था जब आप की जबीने अक़दस पर मौत का पसीना आ गया और रूह निकलने के सबब आप का जिसमे नाज़नीन दायें बाएं सिकुड़ने और फैलने लगा! अब आप इस मोड़ पर थे जहाँ इंसान सब कुछ भूल जाता है, ऐसे में आप ने अपने ख़याम और घर की तरफ़ आखरी बार हसरत भरी निगाह डाली और आप का अस्पे बावफ़ा तेज़ी से हिनहिनाता और रोता हुआ सुनानी सुनाने के लिये ख़याम की तरफ़ रवाना हो गया! जब मुख़द'देराते इस्मतो तहारत ने आप के दुलदुल क़ो ख़ाली और आप की जीन क़ो उलटा हुआ देखा तो एक कोहराम मच गया और वोह ग़म की ताब न लाते हुए खैमों से निकल आयीं! इन्होंने अपने बाल चेहरों पर बिखरा लिये और अपने रुखसारों पर तमांचे मारते हुए अपने बुजुर्गों क़ो पुकार पुकार कर नौहा-ओ-गिरया शुरू कर दिया, क्योंकि अब इस संगीन सदमे के बाद ईन क़ो इज़्ज़त-ओ-एहतराम की निगाहों से नहीं देखा जा रहा था और सब के सब ग़म से निढाल आप की शहादतगाह की तरफ़ जा रहे थे!

अफ़सोस! शिमर मल'उन आप के सीने पर बैठा हुआ, आप के गुलूये मुबारक पर अपनी तलवार रखे हुए था, वोह कमीना आप के रेशे-अक़दस क़ो पकडे हुए अपनी कुंद तवार से आप क़ो ज़िबह कर रहा था! यहाँ तक की -आप के होशो हवास साकिन हो गए, आप की सांस मधिम पड़ गयी, और आप का पाको पाकीज़ा सर नैज़े पर बुलंद कर दिया गया! आप के अहलो'याल क़ो गुलामों और कनीज़ों की तरह क़ैद कर लिया गया और ईनक़ो आहनी जंजीरों में जकड कर इस तरह बे-कजावा ऊंटों पर सवार कर दिया गया के दिन की बे-पनाह गर्मी ईन के चेहरों क़ो झुलसाये दे रही थी! बे-ग़ैरत दुश्मन ईन क़ो जंगलों और ब्याबानों में ले जा रहा था और इनके नाज़ुक हाथों क़ो गर्दनों के पीछे सख्ती से बाँध कर गलियों और बाज़ारों में इनकी नुमाइश कर रहा था!

लानत हो इस फ़ासिक़ गिरोह पर'जिस ने आप क़ो क़त्ल करके इस्लाम क़ो क़त्ल और नमाज़ रोज़ा क़ो मु'अत्तल कर दिया, अहकामे इलाही की नाफ़रमानी की, ईमान की बुन्यादों क़ो हिला दिया, आयाते क़ुरानी में तहरीफ़ की, और बग़ावत व दुश्मनी की दलदल में धंसता ही चला गया!

आप की शहादत पर अल्लाह का रसूल (स:अ:व:व) दर्द बन गया, किताबे ख़ुदा का कोई पूछने वाला न रहा, आप पर जफ़ा करने वालों का हक़ से रिश्ता टूट गया, आप के उठ जाने से ____ तक्बीरो तहलील, हरामो हलाल, तनज़ीलो तावील पर परदे पड़ गए! इस के अलावा _____ आप के न होने से, दीं में क्या क्या बदला गया! कैसे कैसे बदलाव अमल में लाये गए, मुल्हिदाना नज़रियों क़ो फ़रोग़ मिला, अहकामे शरियत मु]अत्तल किये गए, नफ़सानी ख्वाहिशों की गिरफ्त मज़बूत हुई,गुमराहियों ने ज़ोर पकड़ा, फ़ितनों ने सर उठाया, और बातिल की बन आई!फिर हुआ यह की नौहागरों ने आप के जददे अमजद के मज़ार पर आहो बुका और गिरया-ओ-ज़ारी के साथ यूँ मर्सिया खानी की -

अल्लाह के रसूल (स:अ:व:व) !आप का बेटा, आप का नवासा क़त्ल कर डाला गया, आप का घर लूट लिया गया, आप की ज़ुर्रियत असीर हुई, आप की इतरत पर बड़ी उफ्ताद पड़ी! यह सुन कर पैग़म्बर क़ो बहुत सदमा पहुंचा, इनके क़ल्बे तपाँ ने खून के आंसू बरसाए, मलाएका ने इन्हें पुरसा दिया, अम्बिया ने ताज़ियत की,

और मौला! आप की मादरे गिरामी जनाबे फ़ातिमा ज़हरा (स:अ) पर क़यामत टूट पड़ी !मलाएका क़तार दर क़तार आप के वालिदे गिरामी (स:अ:व:व) के हुज़ूर ताज़ियत के लिये आये, आला अलैय्याँ में सफ़े मातम बिछ गयी, हूरें अपने रुखसारों पर तमांचे मार मार कर निढाल हो गयी आसमान और आसमानी मख्लूक़, जन्नत और जन्नत के दरो दीवार, बुलंदियों और पस्तियों, समुन्दरों और मछलियों, जन्नत के खुद्दाम व सुक्कान, ख़ाना-ए-काबा और मुक़ामे इब्राहीम, मुश'अर हराम और हल्लो अहराम सब ने मिल कर आप की मुसीबत पर खून के आंसू बहाए !

बारे इलाहा! इस बा'बरकत और बा-इज़्ज़त जगह के तुफ़ैल, मुहम्मद (स:अ:व:व) और आले मुहम्मद (अ:स) पर दरूद भेज, मुझे ईन के साथ महशूर फ़रमा और इनकी शिफ़ाअत के सबब मुझे जन्नत अता कर

बारे इलाहा! ऐ जल्द हिसाब करने वाले, ऐ सबसे करीम हस्ती, और ऐ सबसे बड़े हाकिम - ! मै तेरी बारगाह में !तमाम जहानों की तरफ़ तेरे रसूल और आखरी नबी हज़रत मुहम्मद मुस्तफा (स:अ:व:व) ईन के भाई इब्ने अम, तवाना बाज़ू और दानिशो आगही के मरकज़ अमीरुल मोमिनीन अली इब्ने अबी तालिब (अ:स) - तमाम जहानों की ख्वातीन की सरदार हज़रत फ़ातिमा ज़हरा (स:अ) - परहेज़गारों के मुहाफ़िज़ इमाम हसन ज़की (अ:स) - शोहदा के सय्यादो सरदार हज़रत अबी अब्दुल्लाह-उल-हुसैन (अ:स) और इनकी मक़तूल औलाद और मज़लूम इतरत - आबिदों की ज़ीनत हज़रत अली इब्ने हुसैन (अ:स) - जो याये हक़ लोगों के मरकज़ तवज्जह हज़रत मुहम्मद बिन अली (अ:स) - सब से बड़े सादीक़-उल-कौल हज़रत जाफ़र बिन मुहम्मद (अ:स) - दलीलों क़ो ज़ाहिर करने वाले हज़रत मूसा इब्ने जाफ़र (अ:स) - दीं के मददगार हज़रत अली इब्ने मूसा (अ:स) - पैरोकारों के रहनुमा हज़रत मुहम्मद बिन अली (अ:स) - सब से बड़े पारसा हज़रत अली बिन मुहम्मद (अ:स) - और सिलसिले नबू'अत और इमामत के तमाम बुज़ुर्गों के वारिस और ऐ अल्लाह ! तेरी तमाम मख्लूक़ पर तेरी हुज्जत (1) का वास्ता देता हूँ की : तू मुहम्मद (स:अ:व:व) व आले मुहम्मद (अ:स) जो आले ताहा व यासीन भी हैं और सच्चे और नेको कार भी ---- दरूदो रहमत नाज़िल फ़रमा और मुझे रोज़े क़यामत इन लोगों में शामिल फ़रमा ले जिन क़ो ईन क़ो अमनो इत्मीनान हासिल होगा और वो इस परेशानी वाले दिन भी ख़ुशो ख़ुर्रम होंगे और जिन्हें जन्नत रिज़वान की ख़ुश'ख़बरी सुनायी जाएगी! (1) चुकी ज्यारत खुद इमाम ज़माना (अ:त:फ़) से सादिर हुई है इस लिये आप ने खुद अपना नाम नामी नहीं लिया है!बारे इलाहा !ऐ अर्हमर राहेमीन!अपनी रहमत के सदके में मेरा नाम मुसलामानों के फेहरिस्त में लिख ले, मुझे सालेह और नेकोकार लोगों में शामिल फ़रमा ले, मेरे पस्मंद्गान और बाद वाली नस्लों में मेरा ज़िक्र सच्चाई और भलाई के साथ जारी रख, बाग़ियों के मुक़ाबले में मेरी नुसरत फ़रमा, हसद करने वालों के कीदो-शर से मेरी हिफाज़त मरमा, जालिमों के हाथों क़ो मेरी जानिब बढ़ने से रोक दे, मुझे आला अलियीं में बा-बरकत पेशवाओं और अ-इम्मे अहलेबैत (अ:स) के जवार में ईन अम्बिया, सिददी'क़ीन, शोहदा, और सालेहीन के साथ जमा कर जिन पर तुने अपनी नेमतें नाज़िल फरमाईं हैं!

परवरदिगार !तुझे क़सम है'तेरे मासूम नबी की, तेरे हतमी एहकाम की, तेरे मुक़र'रेरह मुनाह्य्यात की, और इस पाको पाकीज़ा क़ब्र की जिसके पहलू में मासूम मक़तूल और मज़लूम इमाम दफ़न हैं!के 'तू मुझे दुन्या के ग़मों से नजात अता फ़रमा, मेरे मुक़द'दर की बुराई और शर क़ो मुझ से दूर कर दे और मुझे ज़हरीली आग से बचा ले!

बारे इलाहा !तू अपनी नेमत के तुफैल मुझे इज़्ज़त-ओ-आबरू मोरहमत फ़रमा, मुझे अपनी तक़सीम की हुई रोज़ी पर राजी रख, मुझे अपने करम और जूदो सखा से ढांप ले और मुझे अपनी नागवारी और नाराज़गी से महफूज़ फ़रमा दे!

परवरदिगारा !ना-अज़ेशों से मेरी हिफाज़त फ़रमा, मेरे कौलो अमल क़ो दुरुस्त करदे, मेरी मुददत-ए-उम्र क़ो बढ़ा दे, मुझे दर्दो अमराज़ से आफ़ियत अता फ़रमा दे, और मुझे अ'इम्मा (अ:स) के सदके और अपने फ़ज्लो करम के तुफ़ैल बेहतरीन उम्मीदों तक पहुंचा दे

ख़ुदावंदा !मुहम्मद (स:अ:व:व) व आले मुहम्मद (अ:स) पर दरूद नाज़िल फ़रमा, मेरी तौबा क़बूल फ़रमा ले, मेरे आंसूओं पर रहम फ़रमा, मेरी तकलीफों और रंजो ग़म में मेरा मोनीसो ग़मख़ार बन जा, मेरी खताएं माफ़ फ़रमा दे, और मेरी औलाद क़ो नेको-सालेह बना दे

रब्बे जलील!इस अज़ीम बारगाह और बा-करामत मुक़ाम पर मेरे तमाम गुनाह बख्श दे, ,मेरे सारे ग़म दूर करदे, मेरे रिजक में वुस'अत अता फ़रमा मेरी इज़्ज़त क़ो क़ायेम रख, बिगड़े हुए कामों क़ो संवर दे, उम्मीदों क़ो पुर कर दे, दुआएं क़बूल फ़रमा ले, तंगियों से निजात अता फ़रमा, मेरी परेशान हाली क़ो दूर करदे, जो काम मेरे जिम्मे हैं उन्हें मेरे ही हाथों मुकम्मल करवा दे, मालो-दौलत में कसरत अता फ़रमा, अखलाक़ अच्छा कर, जो कुछ तेरी राह में ख़र्च करून उसे क़बूल फ़रमा के इसे मेरे लिये ज़खीरा-ए-आख़ेरत बना दे, मेरे हालत क़ो रौशन व ताबिंदा कर, मुझ से हसद करने वालों क़ो नेस्तो-नाबूद फरमा, दुश्मनों क़ो हालाक करदे, मुझे हर शर से महफूज़ रख, हर मर्ज़ से शिफ़ा दे, मुझे अपने क़ुरबो-रज़ा की बुलंद तरीन मंजिलों तक पहुंचा दे, और मेरी तमा आरज़ूएं पूरी फरमा दे !

रब्बे करीम !मै तुझ से जल्दी मिलने वाली भलाई और पायेदार सवाब का ख्वाहाँ हूँ !

मेरे अल्लाह !मुझे इस क़द्र फ़रावानी से हलाल नेमतें अता फरमा की मुझे हराम की तरफ़ जाने की फ़ुर्सत न मिले और मुझ पर इतना फ़ज्लो करम कर के मै तमाम मख्लूकात से बेनेयाज़ हो जाऊं !

मेरे पालनहार!मै तुझ से नफा बख्श इल्म, तेरी जानिब झुकने वाले दिल, पुख्ता ईमान पाकीज़ा और मुखलिसाना अमल, मिसाली सबर, और बे पनाह अजरो सवाब का तलबगार हूँ!

मेरे अल्लाह !तुने मुझ पर जो फ़रावान नेमतें नाज़िल फरमाईं हैं तुही मुझे ईन के बारे में अपने शुक्रो सिपास की तौफीक़ अता फ़रमा और इस के नतीजे में मुझ पर अपने एहसानों करम में इज़ाफ़ा फ़रमा ! लोगों के दरम्यान मेरे कौल में तासीर अता कर, मेरे अमल क़ो अपनी बारगाह में बुलंदी अता फ़रमा, मुझे ऐसा बना दे के मेरी नेकियों की पैरवी की जाने लगे और मेरे दुश्मन क़ो तबाहो बर्बाद कर दे!

ऐ जहानों के पालनहार !तुने अपने बेहतरीन बन्दों यानी मुहम्मद (स:अ:व:व) व आले मुहम्मद (अ:स) पर शबो रोज़ अपनी रहमतें और दरूद नाज़िल फ़रमा, और मुझे बुरों की शर से महफूज़ कर दे,, गुनाहों से पाक फ़रमा दे, मेरे बोझ उतार दे, मुझे सुकून व क़रार की जगह यानी जन्नत में जगह दे! और मुझे और मोमिनों मोमिनात में से मेरे तमाम भाइयों और बहनों और अ-ईज़'ज़ा व अक़रबा तो बख़श दे!


ऐ सब से रहम करने वालों से ज़्यादा रहम करने वाले अपनी रहमत के तसद'दुक़ मेरी इल्तेजा क़ो क़बूल फ़रमा ले


बुखार से बचने की दुआ|

$
0
0


 https://www.facebook.com/smmasoomjaunpur/
हज़रत फ़ातेमा (स) से रिवायत बुखार से बचने की दुआ


(एक विस्तिरित हदीस में हज़रत सलमान फ़ारसी से इस प्रकार रिवायत हुई है)

हज़रत फ़ातेमा ज़हरा (स) ने सलमान फ़ारसी से फ़रमायाः हे सलमान मेरे पिता के देहांत के बाद तुमने मुझपर ज़ुल्म किया (तुम हमारी ज़ियारत को नहीं आए जब्कि तुम तो पैग़म्बर के कथानुसार हम अहलेबैत में से थे)

सलमान कहते हैः मैंने कहाः हे शहज़ादी क्या मैंने आपके हक़ में ज़ुल्म किया? (जब कि आप जानती है कि मैं आपके परिवार का मुरीद और मुख़लिस हूँ)

फ़ातेमा ज़हरा (स) ने फ़रमायाः चुप रहो और जो मैं कह रहीं हूँ सको सुनो।

सलमान ने कहाः हे शहज़ादी मुझे कुछ बताएं।

हज़रत ज़हरा (स) ने फ़रमायाः अगर तुम यह चाहते हो कि दुनिया में कभी तुमको बोख़ार न हो, तो जब तक दुनिया में हो उसको पढ़ो।

सलमान ने कहाः शहज़ादी मुझे वह दुआ बताएं।

तब शहज़ादी ने वह दुआ जो दुआ ए नूर के नाम से प्रसिद्ध हैं उनको सिखाई।

सलमान कहते हैं ईश्वर की सौगंध मैंने हज़रत ज़हरा (स) की उस दुआ को मक्के और मदीने के एक हज़ार लोगों को सिखाई जो बोख़ार में पड़े थे और सभी ईश्वर की कृपा से स्वस्थ हो गये।

(बिहारुल अनवार जिल्द 43 पेज 66 व 67)

दुआ ए नूर

بِسْمِ اللهِ النُّورِ، بِسْمِ اللهِ نُورِ النُّورِ، بِسْمِ اللهِ نُورٌ عَلى نُور، بِسْمِ اللهِ الَّذي هُوَ مُدَبِّرُ الاُْمُورِ، بِسْمِ اللهِ الَّذي خَلَقَ النُّورَ مِنْ النُّورِ، الْحَمْدُ للهِ الَّذي خَلَقَ النُّورَ مِنَ النُّورِ، وَاَنْزَلَ النُّورَ عَلى الطُّورِ، فِي كِتاب مَسْطُور، رِقٍّ مَنْشُور، بِقَدَر مَقْدُور، عَلى نَبِيٍّ مَحْبُور، الْحَمْدُ للهِ الَّذي هُوَ بِالْعِزِّ مَذْكُورٌ، وَبِالْفَخْرِ مَشْهُورٌ، وَعَلَى السَّرّاءِ وَالضَّرّاءِ مَشْكُورٌ، وَصَلَىّ اللهُ عَلى مُحَمَّد وَآلِهِ الطّاهِرينَ.





समस्याओं से छुटकारे के लिए इमाम ज़माना (अ) से रिवायत, आज़माई हुई दुआ

$
0
0


 https://www.facebook.com/smmasoomjaunpur/
समस्याओं से छुटकारे के लिए इमाम ज़माना (अ) से रिवायत, आज़माई  हुई दुआ

अनुवादकः सैय्यद ताजदार हुसैन ज़ैदी

किताब अलकरेमुल तय्यब में लेखक लिखते हैः मैने एक सम्मानित और विश्वासयोग्य सैय्यद का लिखा दिखा है जिसमें लिखा थाः मैंने 1093 हि0 क़0 को रजब के महीने में मेरे भाई और विद्वान अमीर इस्माईल बिन हुसैन बेग बिन अली अबन सुलैमान जाबेरी अंसारी से सुना कि वह कहते हैं:

मैं कुछ शत्रुओं के बीच सच्चे धर्म (शिया) की सच्चाई प्रमाणित करने के कारण फंस गया, उन शत्रुओं ने मेरे माल बरबाद कर दिया और मुझे अपनी जान का ख़तरा महसूस हुआ, जिसके कारण मैं बहुत परेशान था।

इसी बीच एक दिन मुझे अपनी जेब में एक दुआ मिली, मुझे बहुत आश्चर्य हुआ क्योंकि मैंने किसी से भी वह दुआ नहीं ली थी, लेकिन रात को सपने में एक व्यक्ति को मुत्तक़ियों के कपड़ों में देखा वह कह रहे थेः हमने तुम्हें फ़लां दुआ दी हैं उसे पढ़ो ताकि तुम्हारी समस्याएं हल हो सकें और तुम परेशानियों से नजात पा सको।

मुझे यह पता न चल सका कि मेरे सपने में मुझसे बात करने वाला कौन था, इसी कारण मेरा आश्चर्य और अधिक बढ़ गया दूसरी बार मैंने इमामे ज़माना (अ) को सपने में देखा कि आप फ़रमा रहे थेः

हमने तुम्हें जो दुआ दी है उसको पढ़ों और जिसे चाहों उसे इस दुआ का ज्ञान दो।

हमने बहुत बार यह दुआ पढ़ी और मेरी समस्याएं समाप्त हो गई, इस दुआ का हमने तजुर्बा किया है, लेकिन कुछ समय के बाद मुझसे यह दुआ खो गई जिसका मुझे बहुत अफसोस हुआ और इस कार्य पर मैं बहुत लज्जित हुआ

लेकिन एक व्यक्ति आया और उसने कहा कि तुम्हारी दुआ फ़लां स्थान पर गिर गई हैं, लेकिन मुझे यह याद नहीं पड़ता कि मैं कभी उस स्थान पर गया भी था। बहरहाल मैं उस स्थान पर गया और दुआ उठा ली और शुक्र का सजदा किया

वह दुआ यह थी

بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمنِ الرَّحيمِ

رَبِ اَسئَلُکَ مَدَداً روحانیّاً تَقوی بِهِ قوایَ الکُلِیة و الجُزئیة ، حَتی اَقهَرَ بِمَبادی نَفسی کُلُ نَفسٍ قاهِرَةٍ فَتَنقَبِضَ لی اِشارَةُ َقائِقِها، اِنقباضاً تَسقُط بِه قُواها ، حَتی لا بَیقی فِی الکَونِ ذُو رُوحٍ اِلّا وَ نارُ قَهری قَد اَحرَقَت ظُهُورَه.یا شَدیدُ یا شَدیدُ یا ذَالبَطشِ الشَدید یا قاهِرُ یا قَهّار، اَسئَلُکَ بِما اَودَعتَهُ عِزرائیلَ مِن اَسمائِک اَلقَهریة ، فَانفَعَلَت لَه  النُفُوس بِالقَهرِ اَن تودِعَنی هذا السِّرِّ فی هذهِ السّاعّةِ حَتی اُلَیِن بِه کِلَّ صَعبٍ وَ اُذَلِّل بِه کُلَّ مَنیع ،بِقُوَتِکَ یا ذَا القُوَةِ المَتین.

अगर संभव हो तो इस दुआ को सहर के समय तीन बार, सुबह के समय तीन बार और रात के समय तीन बार पढ़ें, और अगर समस्या बहुत गंभीर हो तो इस दुआ को पढ़ने के बाद तीस बार यह दुआ पढ़ें

 يا رَحْمانُ يا رَحيمُ ، يا أَرْحَمَ الرَّاحِمينَ ، أَسْئَلُكَ اللُّطْفَ بِما جَرَتْ بِهِ الْمَقاديرُ .


(सहीफ़ ए महदिया, पेज 346, सैय्यद मुर्तज़ा मुजतहेदी सीस्तानी)



महिलाएं या पुरुष खुद को अच्छा दिखाने के लिए अपने जीवन साथी की कमियाँ न गिनाएं |

$
0
0


यह बात अत्यंत आवश्यक है कि पति-पत्नी, अच्छी समझ-बूझ के लिए संयुक्त जीवन से बाहर एक दूसरे की बातों और रहस्यों को बयान न करें क्योंकि जीवन साथी की बातें दूसरों से बयान करने के बड़े नकारात्मक परिणाम सामने आते हैं।

राज़ या रहस्य का अर्थ होता है वह बात जो दिल में छिपी हुई हो या फिर केवल कुछ विशेष लोगों से बताई जाए। हमें राज़दारी ईश्वर से सीखनी चाहिए। वह सबसे अधिक अपने बंदों के कर्मों, व्यवहार, अवगुणों और पापों से सबसे अधिक अवगत है किंतु उसकी विनम्रता, बुराइयों को छिपाने की विशेषता और राज़दारी सबसे अधिक है। यही कारण है कि ईश्वर को सत्तारुल उयूब अर्थात बुराइयों को छिपाने वाला कहा जाता है।
 https://www.facebook.com/jaunpurazaadari/
पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम तथा उनके पवित्र परिजनों के कथनों में कहा गया है कि मोमिन के सम्मान की रक्षा अत्यंत मूल्यवान है। इसी कारण हमें दूसरों के सम्मान की रक्षा करनी चाहिए। अपने व्यक्तिगत व सामाजिक जीवन में हर मनुष्य के कुछ न कुछ रहस्य होते हैं जिनकी रक्षा का उसे प्रयास करना चाहिए। इनमें से कुछ राज़ उसके अपने जीवन से संबंधित होते हैं जबकि कुछ अन्य उसके परिवार या समाज से संबंधित होते हैं। आज सूचना प्रोद्योगिकी के विकसित उपकरणों के अस्तित्व में आ जाने तथा उनके व्यापक प्रयोग के दृष्टिगत, राज़ों की रक्षा करना अपरिहार्य है। यह बात एक नैतिक गुण तो है ही साथ ही मनुष्य के कल्याण व सौभाग्य में भी इसकी प्रभावी भूमिका है। हज़रत अली अलैहिस्सलाम कहते हैं कि सफलता, कार्य की दृढ़ता पर निर्भर है और कार्य की दृढ़ता, विचार पर निर्भर है और विचार, राज़ों की रक्षा का नाम है।

इसके मुक़ाबले में दूसरों के राज़ को फ़ाश करना, सफलता से दूरी बल्कि व्यक्ति के पतन का भी कारण बनता है जैसा कि पैग़म्बरे इस्लाम के पौत्र इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम ने कहा है कि राज़ फ़ाश करना, पतन का कारण है। हर व्यक्ति, परिवार, संगठन और समाज की कुछ न कुछ गोपनीय सूचनाएं होती हैं जिनसे दूसरों को अवगत नहीं होना चाहिए क्योंकि उनके फ़ाश होने से बड़ी बड़ी समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं। मनोवैज्ञानिक, राज़दारी को स्वस्थ व्यक्ति के चिन्हों में से एक बताते हैं कि जो अपनी कथनी और करनी को नियंत्रित रखता है। धार्मिक शिक्षाओं में भी दूसरों के रहस्यों की रक्षा करने वाले लोगों को ईमान वालों की पंक्ति में रखा गया है। धार्मिक शिक्षाओं में दूसरों की इज़्ज़त व सम्मान की रक्षा पर बहुत अधिक बल दिया गया है। पैग़म्बरे इस्लाम के पौत्र इमाम मुहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम कहते हैं कि एक ईमान वाले व्यक्ति का दूसरे मोमिन के प्रति दायित्व यह है कि वह उसके सत्तर बड़े पापों को छिपाए रखे। इसी प्रकार एक अन्य स्थान पर कहा गया है कि जो भी अपने मोमिन भाई के किसी बुरे कर्म को देखे और उसे फ़ाश न करे तो ईश्वर लोक-परलोक में उसके पापों को छिपाए रखेगा।

अनुभवों से सिद्ध होता है कि राज़दारी अन्य लोगों की दृष्टि में हमें विश्वस्त बनाती है और परिवार व समाज में मानवीय संबंधों को सुदृढ़ करती है। लोग प्रायः ऐसे लोगों को विश्वास की नज़र से देखते हैं जो दूसरों के राज़ फ़ाश नहीं करते। निश्चित रूप से परिवार में पति-पत्नी का एक दूसरे का राज़दार होना, जीवन साथी और बच्चों पर गहरा प्रभाव डालता है। इस्लाम की धार्मिक शिक्षाओं में परिवार में जीवन साथी के सम्मान पर बल देते हुए कहा गया है कि पति-पत्नी की समस्याओं को घराने से बाहर दूसरों के समक्ष बयान नहीं किया जाना चाहिए। पारीवरिक मामलों के विशेषज्ञों का कहना है कि जिन दंपतियों का आत्मिक व भावनात्मक रिश्ता बड़ा सीमित होता है, वे प्रायः अपनी ज़रूरतों के बारे में एक दूसरे से कम ही बात करते हैं और उनके बीच शाब्दिक संपर्क बड़ी मुश्किल से स्थापित होता है जिसके परिणाम स्वरूप पारीवारिक समस्याएं, घराने की सीमा पार कर जाती हैं। यद्यपि यह कार्य तर्कसंगत नहीं है किंतु कभी कभी पति या पत्नी की दृष्टि में इसके अलावा कोई और मार्ग नहीं होता कि अपनी बातें दूसरों को बताएं ताकि शायद उनका मानसिक दबाव कुछ कम हो सके किंतु इसके अत्यंत नकारात्मक परिणाम सामने आते हैं जिनमें से कुछ का हम कार्यक्रम के अगले भाग में उल्लेख करेंगे।

जीवन साथी के अवगुणों को बयान करना इस बात का कारण बनता है कि ईश्वर की दया दृष्टि पति-पत्नी से दूर हो जाए और परिणाम स्वरूप उनका सम्मान व वैभव समाप्त हो जाए। इस स्थिति में लोग उन्हें बड़ी तुच्छ नज़रों से देखते हैं। जीवन की समस्याएं परिवार से बाहर बयान करने और जीवन साथी के अवगुणों का उल्लेख करने का एक परिणाम यह भी होता है कि कुछ लोग बड़ी सरलता से उनके निजी मामलों में हस्तक्षेप करने लगते हैं। पति-पत्नी के बीच पैदा होने वाले बहुत से मतभेद, बड़ी तेज़ी से ख़त्म भी हो जाते हैं किंतु जीवन साथी की बुराई, दूसरों के मन में छवि उत्पन्न करती है वह सरलता से समाप्त नहीं होती। सभी चाहते हैं कि अपने जीवन साथी पर गर्व करें और दूसरों को उसका सम्मान करते हुए देखें किंतु पारीवारिक बुराइयों को दूसरों के समक्ष बयान करने से जीवन साथी का सम्मान कम हो जाता है और लोग उसे अर्थपूर्ण नज़रों से देखने लगते हैं। इसके अतिरिक्त जब पति या पत्नी में से कोई एक दूसरे की बुराई करे और दूसरे को बाद में पता चले तो परिवार में नई समस्याएं उत्पन्न हो जाती हैं और उसे लगता है कि परिवार के लोगों के बीच उसकी बेइज़्ज़ती हो गई है और संभावित रूप से वह उनसे दूर हो सकता है।

एक अन्य बात यह है कि पति-पत्नी का सम्मान एक प्रकार से एक दूसरे से जुड़ा हुआ है। इसका तात्पर्य यह है कि जब पति या पत्नी में से किसी एक की सराहना की जाती है तो दूसरे को भी गर्व का आभास होता है। तो जब इन दोनों में से कोई एक अपनी श्रेष्ठता सिद्ध करने के लिए दूसरे की बुराई करता है तो वस्तुतः वह स्वयं को ही अपमानित करता है और अपने सम्मान को अपने ही पैरों तले रौंद देता है।

पति-पत्नी, जो एक दूसरे के साथ रहते हैं, किसी भी अन्य व्यक्ति से अधिक एक दूसरे के अवगुणों से अवगत हो जाते हैं। इस आधार पर एक साथी के रूप में भी उनके लिए यह आवश्यक है कि वे राज़दारी से काम लें और अपने साथी की बुराइयों को दूसरों तक न पहुंचाएं। कुछ लोगों की मानसिकता बड़ी छोटी होती है और जैसे ही वे अपने जीवन साथी में कोई बुराई देखते हैं तो उसे तुरंत दूसरों को बता देते हैं। कुछ अन्य में सहनशीलता होती है किंतु जैसे ही उन्हें पारीवारिक समस्याओं का सामना होता है वे स्वयं को सही दर्शाने और दूसरों की कृपा दृष्टि प्राप्त करने के लिए अपने जीवन साथी की बुराइयों का बखान आरंभ कर देते हैं और उसके राज़ों को फ़ाश कर देते हैं।

कभी कभी पति या पत्नी की ओर से सार्थक आलोचना को स्वीकार न किया जाना भी, पारीवारिक बातों के बाहर जाने का कारण बनता है। जीवन साथी की ओर से आलोचना, यदि सही ढंग से हो और उसका उद्देश्य दूसरे पक्ष के व्यवहार को सुधारना हो तो पारीवारिक संबंधों की कमज़ोरी दूर होती है किंतु अगर पति-पत्नी में से कोई एक, सार्थक आलोचना सुनने के लिए तैयार न हो तो फिर यह आलोचना घर से बाहर भी सुनाई देने लगती है और बाहरी लोग भी इससे अवगत हो जाते हैं।

ईरान के प्रख्यात मनोवैज्ञानिक डाक्टर मुहम्मद रज़ा शरफ़ी परिवार के भीतर राज़दारी के महत्व के बारे में कहते हैं: जिन लोगों का व्यक्तित्व कमज़ोर होता है उनकी आंतरिक तुच्छता कभी कभी उन्हें अपनी कमियों की भरपाई के लिए दूसरों के व्यक्तित्व पर कीचड़ उछालने पर उकसाती है। इसी कारण वे दूसरों के रहस्यों को फ़ाश करके अपने दुखी मन को संतुष्ट करने का प्रयास करते हैं। खेद के साथ कहना पड़ता है कि इस प्रकार की बातें कभी कभी परिवारों में भी दिखाई पड़ती हैं। कुछ महिलाएं या पुरुष अपने को अच्छा दिखाने और जीवन साथी की छवि को बिगाड़ने के लिए दूसरों के समक्ष अपने पारीवारिक जीवन के रहस्य खोल देते हैं। डाक्टर शरफ़ी परिवार के राज़ों को फ़ाश करने के एक अन्य तरीक़े के बारे में कहते हैं: एक अन्य बुरी बात यह है कि कभी कभी पति-पत्नी में से कोई एक अपने बच्चों को जीवन साथी पर नज़र रखने के लिए कहता है। ऐसे लोग अपने इस प्रकार के व्यवहार से बच्चों के मन में अविश्वास का बीज बो देते हैं। वे न केवल यह कि परिवार विश्वास व संतोष के वातावरण को सामाप्त कर देते हैं बल्कि ऐसे लड़के-लड़कियों का प्रशिक्षण करते हैं जो भविष्य में अपने पारीवारिक जीवन के रहस्य दूसरों के समक्ष खोल देते हैं।


अलबत्ता इस बात का उल्लेख भी आवश्यक है कि यद्यपि जीवन की समस्याएं और जीवन साथी के अवगुण दूसरों के समक्ष बयान करना ग़लत बल्कि बहुत बड़ा पाप है किंतु कभी कभी पारीवारिक समस्याओं के समाधान के लिए इनमें से कुछ बातें किसी विश्वस्त एवं सक्षम व्यक्ति को बताना आवश्यक होता है। ऐसी स्थिति में आवश्यकता भर बातें उस विश्वस्त व्यक्ति को बताई जा सकती हैं। स्पष्ट है कि इन परिस्थितियों में पारीवारिक समस्याएं दूसरों को बताने से उनके समाधान की आशा रखी जा सकती है। यही कारण है कि इस्लामी शिक्षाएं और साथ ही पारीवारिक एवं प्रशिक्षण संबंधी मामलों के विशेषज्ञ, अपने घर-परिवार से जुड़ी समस्याओं को बयान करने के लिए किसी अमानतदार एवं दक्ष परामर्शदाता के पास जाने की सिफ़ारिश करते हैं।


मुसलमान ने मुसलमान का हक नहीं दिया तो विलायत के बहार | इमाम जाफ़र ऐ सादिक (अ.स)

$
0
0


 https://www.facebook.com/smmasoomjaunpur/
मोअल्लाह बिन ख़ुनैस इमाम सादिक़ (अ) से रिवायत करते हैं कि मैं ने इमाम से पूछा कि एक मुसलमान का दूसरे मुसलमान पर क्या हक़ है? आपने फ़रमायाः (एक मुसलमान पर दूसरे मुसलमान के) सात वाजिब हक़ हैं कि अगर उनमें से किसी एक को भी छोड़ दिया जाए तो वह हमारी विलायत से निकल गया|

पहला हक़ :-जो अपने लिये पसंद करो उसके लिये भी पसंद करो|
सबसे आसान हक़ यह है कि जो कुछ भी अपने लिये पसंद करो अपने मोमिन भाई के लिये भी उसको पसंद करो और जो अपने लिये पसंद न करो उसके लिये भी पसंद न करो।
अगर हमको यह अच्छा नहीं लगता है कि कोई पीठ पीछे हमारी बुराई करे, और अगर हम किसी से सुनते हैं कि कोई हमारी बुराई कर रहा था तो हम को बुरा लगता है तो हम भी किसी दूसरे की बुराई न करें और उसको दूसरों की नज़रों में नीचा करें।

दूसरा हक़:- उसको नाराज़ न करो|

कोई ऐसा काम न करो कि वह नाराज़ और क्रोधित हो जाए बल्कि ऐसा कार्य करो कि वह प्रसन्न हो और राज़ी रहे।

तीसरा हक़:- जितना हो सके उसकी मदद करो|

उसकी मदद करो, पैसे से, जान से माल से ज़बान से हाथ पैरे से, यानी अपने पूरे वजूद से उसकी मदद करो, अगर पैसे से मदद कर सको तो पैसा दो, अगर जबान से मदद कर सको तो ज़बान से करो, अगर उसके हक़ में बोल सको तो चुप न रहो बल्कि बोलो, दूसरों को उसके विरुद्ध बोल कर उसको अपमानित न करने दो।

चौथा हक़:- उसके लिये मार्गदर्शक और आईना बनो|

अगर तुम देखों कि तुम्हारा भाई किसी खाई में गिर रहा है तो उसकी आँख बन जाओ, जब देखों कि मोमिन भाई किसी बुराई की तरफ़ जा रहा है और उस चीज़ की जानकारी उस मोमिन को बचाने के लिये देना ज़रूरी है तो उसको बताओ, अगर कोई उसको विरुद्ध साज़िश रच रहा है तो उसको सावधान करो, अगर कोई उसको मारने, उसके सम्मान को ठेस पहुँचाने या.... की कोशिश कर रहा है तो तुम अपने मोमिन भाई के लिए आँख, कान बन जाओ उसके लिये मार्गदर्शक का रोल अदा करो।

पाँचवा हक़:-उसको भूखा या प्यासा न रहने दो|

एक मोमिन का दूसरे मोमिन पर पाँचवां हक़ यह है कि ऐसा न हो कि तुम्हारा पेट भरा हो और वह भूखा रहे, तुम तृप्त हो लेकिन वह प्यासा हो, तुम्हारे पास बेहतरीन कपड़ा हो लेकिन उसके पास पहनने को कपड़े न हो।

छटा हक़:-कार्यों को अंजाम देने में उसकी सहायता करो|

अगर तुम्हारे पास काम करने के लिये लोग हैं लेकिन उसके काम रुका हुआ है तो अपने नौकरों को भेजो ताकि वह कार्यों में उसकी सहायता करें।

सातवाँ हक़ :-कहने से पहले उसकी ज़रूरतों को पूरा कर दो।

उसकी क़सम पर विश्वास करो उसके निमंत्रण को स्वीकार करे और उसके अंतिम संस्कार में जाओ, बीमारी में उसकी मुलाक़ात को जाओ, उसकी ज़रूरतों को पूरा करने के लिये अपने शरीर को कष्ट दो और उसको इस बात को मोहताज न करो कि वह तुमसे मांगे तब तुम उसकी ज़रूरत को पूरा करो

अगर तुम ने यह हक़ अदा कर दिये तो तुम ने अपनी विलायत को उसकी विलायत से और उसकी विलायत को ख़ुदा की विलायत से मिला दिया है ।
(यह लेख थोड़े बदलाव के साथ आयतुल्लाह मकारिम शीराज़ी की तक़रीर का अनुवाद है)

*******
उसूले काफ़ी जिल्द 3, पेज 246, हदीस 2




हमारे अनुयाइ उस समय तक सुरक्षित रहेंगे जब तक वे अम्र बिलमारूफ और नही अनिलमुन्कर करते रहेंगे ..पैग़म्बरे इस्लाम

$
0
0


नमाज़, रोज़ा, हज, और जेहाद की भांति अम्र बिलमारूफ को भी धार्मिक आदेशों में समझा जाता है और उनके मध्य इसे विशेष स्थान प्राप्त है। हज़रत अली अलैहिस्सलाम के अनुसार अम्र बिलमारूफ और नही अनिलमुन्कर का दायेरा विस्तृत है और इसमें सांस्कृतिक, सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक क्षेत्र सभी शामिल हैं।
 https://www.facebook.com/hamarajaunpur/
हर वह कार्य जिसे धर्म और बुद्धि अच्छा समझते हैं उसे मारूफ कहते हैं जैसे महान ईश्वर की उपासना, माता पिता के साथ भलाई, निकट संबंधियों के साथ उपकार, दीन दुखियों की सहायता, निर्धन व दरिद्रों की मदद, वादे को पूरा करना और अत्याचार व अन्याय से संघर्ष आदि।

हर वह कार्य जिसे बुद्धि और धर्म पसंद नहीं करते हैं उसे मुन्कर कहते हैं। जैसे अनेकेश्वरवाद, बलात्कार, गाली गलौज, चोरी, सूद, अनाथों का माल खाना, घमंड, और दुर्व्यवहार आदि। पवित्र कुरआन की संस्कृति में अम्र बिलमारूफ और नही अनिल मुन्कर अनिवार्य दायित्वों में से है जो समाज के सुधार का कारण बनता है। पवित्र कुरआन के सूरे आले इमरान की १०४ वीं आयत में आया है” तुममे से कुछ लोगों को अच्छाई का आदेश देने और बुराई से रोकने वाला होना चाहिये और वही मुक्ति पाने वाले हैं”

पैग़म्बरे इस्लाम अम्र बिल मारूफ और नही अनिलमुन्कर के बारे में फरमाते हैं” हमारे अनुयाइ उस समय तक सुरक्षित रहेंगे जब तक वे अम्र बिलमारूफ और नही अनिलमुन्कर करते रहेंगे और भलाई तथा तक़वा अर्थात ईश्वरीय भय में एक दूसरे की सहायता करेंगे और जब उसे छोड़ देगें तो बरकत उन्हें छोड़कर चली जायेगी” हज़रत अली अलैहिस्सलाम भी फरमाते हैं” अम्र बिलमारूफ अर्थात अच्छाई का आदेश देना ईश्वर की सृष्टि का सर्वोत्तम कार्य है” एक अन्य स्थान पर हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने अम्र बिलमारूफ को धर्म का अंतिम उद्देश्य बताया है। वे फरमाते हैं धर्म का उद्देश्य अच्छाई का आदेश देना, बुराई से रोकना और सीमा निर्धारित करना है” हज़रत अली अलैहिस्सलाम सत्ता को इसी दृष्टि से देखते हैं और इसी दृष्टि से वे सरकार को स्वीकार करते हैं ताकि व समाज के मामलों का सुधार करें और समाज से बुराई का अंत करें। हज़रत अली अलैहिस्सलाम अपने शासन के अंतिम दिनों में एक भाषण में इस वास्तविकता की ओर संकेत करते हुए कहते हैं” हे ईश्वर! तू जानता है कि जो चीज़ हमसे चली गयी वह सत्ता में हमारी रूचि के कारण नहीं थी और न तुच्छ दुनिया से अधिक चाहत के कारण बल्कि मैंने चाहा कि धर्म के चिन्हों को उसके स्थान पर करार दूं और तेरे शहरों में सुधार करूं ताकि तेरे अत्याचारग्रस्त बंदों के लिए सुरक्षा उपलब्ध हो सके और तेरी बर्बाद हुई सीमा लागू हो जाये”

इस्लामी सरकार का एक दायित्व समस्त नागरिकों की सुरक्षा की आपूर्ति है। हज़रत अली अलैहिस्सलाम के अनुसार इस्लामी सरकार का एक दायित्व यह है कि हर पात्र व हक़दार को उसका अधिकार मिले । इसी कारण अम्र बिलमारूफ और नही अनिल मुन्कर के उद्देश्यों में से है कि शासक, लोगों के अधिकारों के बारे में ढिलाई से काम न लें और उनके अधिकारों की रक्षा करें।
भलाई का आदेश देना और बुराई से रोकना इस्लाम के सार्वजनिक कार्यक्रमों में से एक है और हर मुसलमान का दायित्व है कि वह इस दिशा में प्रयास करे। यह वह कार्य है जो किसी एक व्यक्ति से विशेष नहीं है और इसे समाज के हर व्यक्ति को यहां तक कि शासकों को भी अंजाम देना चाहिये। यानी समाज के समस्त लोगों को चाहिये कि वे समाज के प्रबंधकों एवं अधिकारियों के कार्यों पर दृष्टि रखें और आवश्यकता पड़ने पर उन्हें अच्छे कार्यों के लिए प्रोत्साहित करें और गलत व बुरे कार्यों से रोकें। हज़रत अली अलैहिस्सलाम मिस्र में अपने गवर्नर मालिके अश्तर को सिफारिश करते हुए फरमाते हैं” उन लोगों का चयन करो जो सत्य कहने में सबसे प्रखर हों।

हज़रत अली अलैहिस्सलाम न केवल अपने गवर्नरों को सिफारिश करते हैं कि वे टीका -टिप्पणी व आलोचना करने वालों की बात सुनें बल्कि इस दिशा में स्वयं अग्रणी थे और लोगों का आह्वान करते थे कि वे हक कहने या न्याय के बारे में परामर्श करने से परहेज़ न करें।

हज़रत अली अलैहिस्सलाम का मानना है कि जो भी सत्ता के सिंहासन पर बैठे उसे इस बात की आवश्यकता है कि दूसरे उसकी रचनात्मक आलोचना करके भलाई की ओर उसका मार्गदर्शन करें क्योंकि गुमराही का आरंभिक बिन्दु उस समय शुरू होता है जब समाज के शक्तिशाली व सत्ताधारी लोग स्वयं को गलती से सुरक्षित और भलाई की ओर मार्गदर्शन की आवश्यकता न समझें और इस बात की अनुमति न दें कि दूसरे उनके क्रिया- कलापों पर टीका- टिप्पणी करें। इस आधार पर हज़रत अली अलैहिस्सलाम मालिके अश्तर से सिफारिश करते हैं” यह न कहो कि हमने सत्ता प्राप्त कर ली है तो मैं आदेश दूंगा और लोगों को चाहिये कि वे मेरा आदेशापालन करें कि यह कार्य दिल के काला होने, धर्म के तबाह व बर्बाद होने और अनुकंपा के हाथ से चले जाने का कारण बनेगा।  

भलाई का आदेश देने और बुराई से रोकने के कार्यक्रम को सही तरह से लागू करने के लिए आवश्यक है कि सबसे पहले भलाई और बुराई को सही तरह से पहचाना जाये पंरतु कुछ अवसरों पर एसा होता है कि इंसान भलाई और बुराई को अच्छी तरह से नहीं जानता है इसलिए वह ग़लती कर बैठता है। कभी कभी एसा भी होता है कि इंसान भलाई को बुराई और बुराई को अच्छाई समझने लगता है। हां यह चीज़ उस समय होती है जब इंसान पवित्र कुरआन और धार्मिक शिक्षाओं की पहचान के बिना अपने व्यक्तिगत निष्कर्षों पर अमल करना आरंभ कर देता है और अपने दृष्टिकोणों को सही समझ बैठता है।

हज़रत अली अलैहिस्सलाम के ज्ञान का स्रोत वहि अर्थात ईश्वरीय संदेश था और वे सत्य व असत्य को भली भांति समझते थे फिर भी वे दूसरों पर अपने दृष्टिकोणों को नहीं थोपते थे और अपने अधीनस्थ लोगों के हाथ को खुला रखते थे। हां जहां इस कार्य से समाज को हानि होने वाली होती थी वहां आवश्यकता के अनुसार लोगों पर कड़ाई और उन्हें नियंत्रित करते थे। सिफ्फीन नामक युद्ध को उदाहरण के तौर पर देखा जा सकता है। हज़रत अली अलैहिस्सलाम को भलिभांति ज्ञात था कि मोआविया पूरी तरह धर्मभ्रष्ठ है और समस्त मुसलमानों का दायित्व है कि वे उसका मुकाबला करें परंतु जब कुछ मुसलमान मोआविया के विरुद्ध युद्ध करने में संदेह व असमंजस का शिकार हो गये और तो हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने उन्हें वास्तविकता को समझने का अवसर दिया और कहा कि वे अपने दृष्टिकोणों को बयान करें। रबीअ बिन खैसम इस प्रकार के व्यक्तियों में से एक था। वह हज़रत अली अलैहिस्सलाम और मोआविया के मध्य होने वाले युद्ध के बारे में असमंजस में था। वह अपने कुछ साथियों के साथ हज़रत अली अलैहिस्सलाम के पास आया और कहा हे अमीरूल मोमिनीन हम आपकी श्रेष्ठता को जानते हैं फिर भी इस युद्ध के बारे में मुझे संदेह हो गया है। हम एसे लोगों के अस्तित्व से आवश्यकतामुक्त नहीं हैं जो बाहरी शत्रुओं से लड़ें। तो हमें सीमाओं पर तैनात कर दें ताकि मैं वहां रहूं और वहां के लोगों की रक्षा के लिए लड़ूं। हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने अपनी सच्चाई पर आग्रह करने के बजाये उसकी बात स्वीकार कर ली और उसे बड़े ही अच्छे अंदाज़ से एक सीमावर्ती क्षेत्र में भेज दिया ताकि वह वहां पर अपने दायित्व का निर्वाह करे।

इस बात में कोई संदेह नहीं है कि जो इंसान दूसरों को भलाई का आदेश देता है और बुराई से रोकता है उसे चाहिये कि वह स्वयं इन बातों के प्रति वचनबद्ध रहे और जो कहता है उस पर स्वयं अमल करे। हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने उस इंसान की निंदा की है जो दूसरों को अच्छाई का आदेश देता है और बुराई से रोकता है और स्वयं उस पर अमल नहीं करता है। हज़रत अली अलैहिस्सलाम एसी महान हस्ती थे जिनके कथन और कर्म में लेशमात्र का भी अंतर नहीं था। वे अपने एक भाषण में कहते हैं हे लोगों ईश्वर की सौगन्ध मैं तुम्हें उस चीज़ के लिए प्रोत्साहित नहीं करता जिसे मैं तुमसे पहले स्वयं अंजाम न दे दूं। तुम्हें पाप से नहीं रोकना मगर यह कि तुमसे पहले मैं स्वयं उसे दूर रहना हूं”

अच्छाई का आदेश और बुराई से रोकना इस प्रकार से हो कि समाज को नुकसान न पहुंचे। इसके अतिरिक्त जब तक कोई खुलकर पाप नहीं करता तब तक किसी को भी उसके व्यक्तिगत मामलों में हस्तक्षेप करने या दूसरों के मामलों के बारे में जासूसी करने का कोई अधिकार नहीं है। पैग़म्बरे इस्लाम फरमाते हैं” जब कोई बंदा गुप्त रूप से कोई पाप करे तो उसके अलावा किसी और को कोई नुकसान नहीं पहुंचेगा और जब वह उसी पाप को खुल्लम खुल्ला अंजाम दे और लोग उस पर आपत्ति न जतायें तो उससे आम लोगों को नुकसान पहुंचेगा। एक अन्य स्थान पर पैग़म्बरे इस्लाम इसी संबंध में फरमाते हैं” ईश्वर उस पाप के कारण लोगों को दंड नहीं देगा जिसे विशेष लोग गुप्तरूप से अंजाम दें और उससे लोग अनभिज्ञ हों” हां यहां पर एक अपवाद है और वह सार्वजनिक एवं  सरकारी संस्था व संगठनों की निगरानी है। क्योंकि इस प्रकार के संगठन व संस्थाएं लोगों के धन से अस्तित्व में आती हैं और उन्हें चाहिये कि वे सदैव इस मार्ग में रहें। अतः सदैव उनकी निगरानी की जानी चाहिये। इस प्रकार इन संगठनों व संस्थाओं को चलाने वाले और उनमें काम करने वाले अधिकारी निगरानी में शामिल हैं। इसी कारण हज़रत अली अलैहिस्सलाम अपने गवर्नर मालिके अश्तर से सिफारिश करते हैं कि वे अपने अधीनस्थ लोगों और सरकारी कर्मचारियों के क्रिया कलापों की निगरानी करें और विशेष निरक्षकों को भेज कर संभावित उल्लंघन की रोकथाम करें।


दुनिया की कठिनाई और परेशानियां आख़ेरत की मिठास हैं

$
0
0


 https://www.facebook.com/hamarajaunpur/एक दिन हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम अपनी थकान उतारने के लिए लेटे तो आपने एक पत्थर अपने सर के नीचे रख लिया और आराम करने लगे।

इतने में उधर से शैतान निकल पड़ा उसने जब यह देखा तो कहाः अन्तः आप भी दुनिया की तरफ़ झुक गए।

हज़रत ईसा ने जैसे ही उसकी यह बात सुनी सर के नीचे से पत्थर निकल कर उसको दे मारा और कहाः यह पूरी दुनिया के साथ साथ यह पत्थर भी तेरा है। (यानी अगर यह पत्थर आराम का माध्यम है तो मुझे यह पत्थर भी नहीं चाहिए ) आराम तलबी और ख़ुद को चाहना और जमा करने के चक्कर में पड़े रहना एवं सजाव श्रंगार आदि के बुरे प्रभाव होते हैं
(महज्जतुल बैज़ा जिल्द 5 पेज 62 इबलीस नामा से लिया गया पेज 66)

इमाम अली अलैहिस्सलाम फ़रमाते हैं
दुनिया की कठिनाई और परेशानियां आख़ेरत की मिठास हैं और दुनिया की मिठास आख़ेरत की कड़वाहट का कारण है

(नहजुल बलाग़ा हिकमत 246 इबलीस नामा से लिया गया पेज 67)




आज तो ज़मीन जायदाद वक़्फ़ करने से डर लगता है

$
0
0


 https://www.facebook.com/jaunpurazaadari/आज तो ज़मीन जायदाद वक़्फ़  करने  से डर लगता है की कहीं आने वाले वक़्त में यह अपनी ही क़ौम में आपसी दुश्मनी की वजह ना बन जाय |  पहले जिनके पास जायदाद ज़्यादा  थी वो अपनी ज़मीन वक़्फ़ कर दिया करते थे जिस से वो क़ौम के काम आये और महफूज़ भी रहे क्यों की यह वक़्फ़ इमाम ऐ ज़माना की मिलकियत भी कहलाती थी |

आज हम इस दौर से गुज़र रहे हैं की सबसे ज़्यादा ताक़तवर  (अल्लाह और इमाम ऐ वक़्त ) जिसे हम कहते हैं सबसे पहले उसी का माल खाते हैं अब वो चाहे ख़ुम्स  हो या वक़्फ़ का माल | 

भाई मैं तो यही कहूंगा आज अगर आपके पास ज़्यादा जायदाद है तो अपनी ज़िन्दगी में ही उसे गरीबों और ज़रुरत मंदों में तक़सीम कर दें जिस से लूटने से बच जाय और किसी के काम आ सके | आज वक़्फ़ का  मतलब  भाई भाई में दुश्मनी और ताक़तवर द्वारा वक़्फ़ की जायदाद का हज़म किया जाना | 

अफ़सोस तो होता है यह कहते हुए लेकिन हालात आज के यही  कहते हैं | 







हज़रत इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम

$
0
0


 https://www.facebook.com/jaunpurazaadari

हज़रत इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम की समाधि पवित्र शहर मशहद मे है। जहाँ पर हर समय लाखो श्रद्धालु आपकी समाधि के दर्शन व सलाम हेतू एकत्रित रहते हैं। यह शहर वर्तमान समय मे ईरान मे स्थित है।


नाम व लक़ब (उपाधी)

हज़रत इमाम रिज़ा अलैहिस्सलाम का नाम अली व आपकी मुख्य उपाधि रिज़ा है।

माता पिता

हज़रत इमाम रिज़ा अलैहिस्सलाम के पिता हज़रत इमाम काज़िम अलैहिस्सलाम व आपकी माता हज़रत नजमा थीं। आपकी माता को समाना, तुकतम, व ताहिराह भी कहा जाता था।

जन्म तिथि व जन्म स्थान

हज़रत इमाम रिज़ा अलैहिस्सलाम का जन्म सन् 148 हिजरी क़मरी मे ज़ीक़ादाह मास की ग्यारहवी तिथि को पवित्र शहर मदीने मे हुआ था।

शहादत (स्वर्गवास)

हज़रत इमाम रिज़ा अलैहिस्सलाम की शहादत सन् 203 हिजरी क़मरी मे सफर मास की अन्तिम तिथि को हुई। शहादत का कारण अब्बासी शासक मामून रशीद द्वारा खिलाया गया ज़हर था।

समाधि

हज़रत इमाम रिज़ा अलैहिस्सलाम की समाधि पवित्र शहर मशहद मे है। जहाँ पर हर समय लाखो श्रद्धालु आपकी समाधि के दर्शन व सलाम हेतू एकत्रित रहते हैं। यह शहर वर्तमान समय मे ईरान मे स्थित है।

हज़रत इमाम रिज़ा की ईरान यात्रा

अब्बासी खलीफ़ा हारून रशीद के समय मे उसका बेटा मामून रशीद खुरासान(ईरान) नामक प्रान्त का गवर्नर था। अपने पिता की मृत्यु के बाद उसने अपने भाई अमीन से खिलाफ़त पद हेतु युद्ध किया जिसमे अमीन की मृत्यु हो गयी। अतः मामून ने खिलाफ़त पद प्राप्त किया व अपनी राजधीनी को बग़दाद से मरू (ईरान का एक पुराना शहर) मे स्थान्तरित किया। खिलाफ़त पद पर आसीन होने के बाद मामून के सम्मुख दो समस्याऐं थी। एक तो यह कि उसके दरबार मे कोई उच्च कोटी का आध्यात्मिक विद्वान न था। दूसरी समस्या यह थी कि मुख्य रूप से हज़रत अली के अनुयायी शासन की बाग डोर इमाम के हाथों मे सौंपने का प्रयास कर रहे थे, जिनको रोकना उसके लिए आवश्यक था। अतः उसने इन दोनो समस्याओं के समाधान हेतू बल पूर्वक हज़रत इमाम रिज़ा अलैहिस्सलाम को मदीने से मरू (ईरान ) बुला लिया। तथा घोषणा की कि मेरे बाद हज़रत इमाम रिज़ा मेरे उत्तरा धिकारी के रूप मे शासक होंगे। इससे मामून का अभिप्राय यह था कि हज़रत इमाम रिज़ा के रूप मे संसार के सर्व श्रेष्ठ विद्वान के अस्तित्व से उसका दरबार शुशोभित होगा। तथा दूसरे यह कि इमाम के उत्तरा धिकारी होने की घोषणा से शियों का खिलाफ़त आन्दोलन लग भग समाप्त हो जायेगा या धीमा पड़ जायेगा।


सफर महीने की अंतिम तारीख पैग़म्बरे इस्लाम के प्राणप्रिय पौत्र हज़रत इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम की शहादत का दुःखद अवसर है।

पैग़म्बरे इस्लाम के पौत्र हज़रत इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम अपने समय में ज्ञान, समस्त सदगुणों और ईश्वरीय भय व सदाचारिता के प्रतीक थे। इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम भी दूसरे इमामों की भांति अत्याचारी शासकों की कड़ी निगरानी में थे। अधिकांश लोग इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम का महत्व नहीं समझते थे।

इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के बारे में एक प्रश्न जो सदैव किया जाता है वह यह है कि इमाम रज़ा ने मामून जैसे अत्याचारी शासक का उत्तराधिकारी बनना क्यों स्वीकार किया? इस प्रश्न के उत्तर में इस बिन्दु पर ध्यान दिया चाहिये कि मामून यह सुझाव इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के सामने क्यों प्रस्तुत किया? क्या यह सुझाव वास्तविक व सच्चा था या मात्र एक राजनीतिक खेल था और मामून इस कार्य के माध्यम से अपनी सरकार के आधारों को मज़बूत करने की चेष्टा में था?

मामून ने अपने भाई अमीन और दूसरे हज़ारों लोगों की हत्या करके सत्ता प्राप्त की थी वह किस प्रकार इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम को अपना उत्तराधिकारी बनाने के लिए तैयार हो गया था जबकि वह स्वयं इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम को एक प्रकार से अपना प्रतिस्पर्धी समझता था। उसके सुझाव की वास्तविकता और उसके लक्ष्य को स्वयं मामून की ज़बान से सुनते हैं।

जब मामून ने आधिकारिक रूप से इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के सामने अपने उत्तराधिकारी पद का सुझाव दिया तो बहुत से अब्बासियों ने मामून की भर्त्सना की और कहा कि तू क्यों खेलाफत के गर्व को अब्बासी परिवार से बाहर करना और अली के परिवार को वापस करना चाहता है? तुमने अपने इस कार्य से अली बिन मूसा रज़ा के स्थान को ऊंचा और अपने स्थान को नीचा कर दिया है। तूने एसा क्यों किया?

मामून बहुत ही धूर्त, चालाक और पाखंडी व्यक्ति था। उसने इस प्रश्न के उत्तर में कहा मेरे इस कार्य के बहुत से कारण हैं।

इमाम रज़ा के सरकारी तंत्र में शामिल हो जाने से वह हमारी सरकार को स्वीकार करने पर बाध्य हैं। हमारे इस कार्य से उनके प्रेम करने वाले उनसे विमुख हो जायेंगे और वे विश्वास कर लेंगे कि इमाम रज़ा वैसा नहीं हैं जैसा वह दावा करते हैं। मेरे इस कार्य का दूसरा कारण यह है कि मैं इस बात से डरता हूं कि अली बिन मूसा को उनकी हाल पर छोड़ दूं और वह हमारे लिए समस्याएं उत्पन्न करें कि हम उन पर नियंत्रण न कर सकें। इस आधार पर उनके बारे में लापरवाही से काम नहीं लिया जाना चाहिये। इस प्रकार हम धीरे धीरे उनकी महानता एवं व्यक्तित्व को कम करेंगे ताकि वह लोगों की दृष्टि में खिलाफत के योग्य न रह जायें और जान लो कि जब इमाम रज़ा को हमने अपना उत्तराधिकारी बना दिया तो फिर अबु तालिब की संतान में से किसी से डरने की कोई आवश्यकता नहीं है”

इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम मामून के षडयंत्र और उसकी चाल से भलिभांति अवगत थे और जानते थे कि उसने अपनी सरकार के आधारों को मज़बूत करने के लिए यह सुझाव दिया है परंतु इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम द्वारा मामून के धूर्ततापूर्ण सुझाव का स्वीकार किया जाना महीनों लम्बा खिंचा यहां तक कि उसने इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम को जान से मारने की धमकी दी और इमाम ने विवश होकर इस सुझाव को स्वीकार किया। इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम जब मदीने से मामून की सरकार के केन्द्र मर्व आ रहे थे तो उस समय उन्होंने जो कुछ कहा उससे समस्त लोग समझ गये कि मामून इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम को किसी चाल के अंतर्गत उनकी मातृभूमि से दूर कर रहा है। इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम जब मदीने से मर्व जाने के लिए तैयार हुए तो वह पैग़म्बरे इस्लाम की पावन समाधि पर गये, अपने परिजनों से विदा और काबे की परिक्रमा की और अपने कार्यों एवं बयानों से सबके लिए यह सिद्ध कर दिया कि यह उनकी मृत्यु की यात्रा है जो मामून का उत्तराधिकारी बनने और सम्मान की आड़ में हो रही है।

उसके बाद इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम ने हर अवसर से लाभ उठाया और लोगों तक यह बात पहुंचा दी कि मामून ने बाध्य करके उन्हें अपना उत्तराधिकार बनाया है और इमाम हमेशा यह कहते थे कि हमें हत्या की धमकी दी गयी यहां कि मैंने उत्तराधिकारी के पद को स्वीकार किया।

साथ ही इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के उत्तराधिकारी बनने की एक शर्त यह थी कि इमाम किसी को आदेश नहीं देंगे, किसी काम को रोकेंगे नहीं, सरकार के मुफ्ती और न्यायधीश नहीं होंगे, किसी को न पद से हटायेंगे और न किसी को पद पर नियुक्त करेंगे और किसी चीज़ को परिवर्तित नहीं करेंगे। इस प्रकार इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम ने स्वयं को सरकार के विरुद्ध हर प्रकार के कार्य से अलग कर लिया और दूसरी बात यह थी कि  उत्तराधिकारी बनने के लिए इमाम रज़ा ने जो शर्तें लगायी थीं वह इमाम की आपत्ति की सूचक थीं। क्योंकि यह बात स्पष्ट थी कि जो व्यक्ति स्वयं को समस्त सरकारी कार्यों से अलग कर ले वह सरकार का मित्र व पक्षधर नहीं हो सकता। मामून भी इस बात को अच्छी तरह समझ गया अतः बारम्बार उसने इमाम से कहा कि पहले की शर्तों का उल्लंघन व अनदेखी करके वह सरकारी कार्यों में भाग लें। इसी तरह वह अपने विरोधियों को नियंत्रित करने हेतु इमाम रज़ा का दुरूप्रयोग करना चाहता था। इमाम रज़ा उत्तराधिकारी का पद स्वीकार करने की शर्तों को याद दिलाते थे। मामून ने इमाम रज़ा से मांग की कि वह अपने चाहने वालों को एक पत्र लिखकर उन्हें मामून का मुकाबला करने से मना कर दें क्योंकि इमाम के चाहने वालों ने संघर्ष करके मामून के लिए परिस्थिति को कठिन बना दिया था। इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम ने मामून की बात के जवाब में कहा” मैंने शर्त की थी कि सरकारी कार्यो में हस्तक्षेप नहीं करूंगा और जिस दिन से मैंने उत्तराधिकारी बनना स्वीकार किया है उस दिन से मेरी अनुकंपा में कोई वृद्धि नहीं हुई है”

ईद की नमाज़

मामून ने इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम से ईद की नमाज़ पढ़ाने के लिए कहा। इसके पीछे मामून का लक्ष्य यह था कि लोग इमाम रज़ा के महत्व को पहचानें और उनके दिल शांत हो जायें परंतु आरंभ में इमाम ने ईद की नमाज़ पढ़ाने हेतु मामून की बात स्वीकार नहीं की पंरतु जब मामून ने बहुत अधिक आग्रह किया तो इमाम ने उसकी बात एक शर्त के साथ स्वीकार कर ली। इमाम की शर्त यह थी कि वह पैग़म्बरे इस्लाम और हज़रत अली अलैहिस्सलाम की शैली में ईद की नमाज़ पढ़ायेंगे। मामून ने भी इमाम के उत्तर में कहा कि आप स्वतंत्र हैं आप जिस तरह से चाहें नमाज़ पढ़ा सकते हैं।

इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम ने पैग़म्बरे इस्लाम की भांति नंगे पैर घर से बाहर निकले और उनके हाथ में छड़ी थी। जब मामून के सैनिकों एवं प्रमुखों ने देखा कि इमाम नंगे पैर पूरी विनम्रता के साथ घर से बाहर निकले हैं तो वे भी घोड़े से उतर गये और जूतों को उतार कर वे भी नंगे पैर हो गये और इमाम के पीछे पीछे चलने लगे। इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम हर १० क़दम पर रुक कर तीन बार अल्लाहो अकबर कहते थे। इमाम के साथ दूसरे लोग भी तीन बार अल्लाहो अकबर की तकबीर कहते थे। मामून इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के इस रोब व वैभव को देखकर डर गया और उसने इमाम को ईद की नमाज़ पढ़ाने से रोक दिया। इस प्रकार वह स्वयं अपमानित हो गया।

इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम ने उत्तराधिकारी के पद से बहुत ही होशियारी एवं विवेक से लाभ उठाया। इमाम ने यह पद स्वीकार करके एसा कार्य किया जो पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों के इतिहास में अद्वतीय है। इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम ने वह बातें सबके समक्ष कह दीं जिसे पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों ने एक सौ पचास वर्षों के दौरान घुटन के वातावरण में अपने अनुयाइयों व चाहने वालों के अतिरिक्त किसी और से नहीं कहा था।

मामून ज्ञान की सभाओं का आयोजन करता था और उसमें पैग़म्बरे इस्लाम के कथनों को बयान करने वालों और धर्मशास्त्रियों आदि को बुलाता था ताकि वह स्वयं को ज्ञान प्रेमी दर्शा सके परंतु इस कार्य से उसका मूल लक्ष्य यह था कि शायद इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम से कोई कठिन प्रश्न किया जाये जिसका उत्तर वह न दे सकें। इस प्रकार इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम अविश्वसनीय हो जायेंगे किन्तु इस प्रकार की सभाओं का उल्टा परिणाम निकला और सबके लिए सिद्ध हो गया कि इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम ज्ञान, सदगुण और सदाचारिता की दृष्टि से पूरिपूर्ण व्यक्ति हैं और वही खिलाफत के योग्य व सही पात्र हैं। पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों को सत्तर वर्षों तक मिम्बरों से बुरा भला कहा गया और वर्षों तक कोई उनके सदगुणों को सार्वजनिक रूप से बयान करने का साहस नहीं करता था परंतु इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के उत्तराधिकारी काल में उनके सदगुणों को बयान किया गया और उन्हें सही रूप में लोगों के समक्ष पेश किया गया।

इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम ने उत्तराधिकारी का पद स्वीकार करके बहुत से उन लोगों को पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों से अवगत किया जो अवगत नहीं थे या अवगत थे परंतु उनके दिलों में पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों के प्रति द्वेष व शत्रुता थी।  इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के उत्तराधिकारी के संबंध में जो बहुत से शेर हैं वे इसी परिचय एवं लगाव के सूचक व परिणाम हैं। उदाहरण स्वरूप देअबिल नाम के एक सरकार विरोधी प्रसिद्ध शायर थे और उन्होंने कभी भी किसी खलीफा या खलीफा के उत्तराधिकारी के प्रति प्रसन्नता नहीं दिखाई थी। इसी कारण सरकार सदैव उनकी खोज में थी और वह लम्बे वर्षों तक नगरों एवं आबादियों में भागते व गोपनीय ढंग से जीवन व्यतीत करते रहे पंरतु देअबिल इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम की सेवा में पहुंचे और उन्होंने अत्याचारी व असत्य अमवी एवं अब्बासी सरकारों के विरुद्ध अपने प्रसिद्ध शेरों को पढ़ा। कुछ ही समय में देअबिल के शेर पूरे इस्लामी जगत में फैल गये। इस प्रकार से कि देअबिल के अपने नगर पहुंचने से पहले ही उनके शेर लोगों तक पहुंच गये और लोगों को ज़बानी याद हो गये थे। यह विषय इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम की सफलता के सूचक हैं।

निधन

मामून अपनी सत्ता को खतरे से बचाने के लिए इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम को मदीने से मर्व लाया था परंतु जब उसने देखा कि इमाम की होशियारी व विवेक से उसके सारे षडयंत्र विफल हो गये हैं तो वह इन विफलताओं की भरपाई की सोच में पड़ गया। अंत में अब्बासी खलीफा मामून ने गुप्त रूप से इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम को शहीद करने का निर्णय किया ताकि उसकी सरकार के लिए कोई गम्भीर समस्या न खड़ी हो जाये। अतः उसने इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम को विष कर शहीद कर दिया और इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम वर्ष २०३ हिजरी क़मरी में सफर महीने की अंतिम तारीख को इस नश्वर संसार से परलोक सिधार गये।


।।अल्लाहुम्मा सल्ले अला मुहम्मद व आले मुहम्मद।।



हज़रत अब्बास (अ) इमाम महदी (अ) की निगाह में

$
0
0


सलाम हो अबुल फ़ज़्ल पर, अब्बास अमीरुल मोमिनीन के बेटे, भाई से सबसे बड़े हमदर्द जिन्होंने अपनी जान उन पर क़ुरबान कर दी, और गुज़रे हुए कल (दुनिया) से आने वाले कल (आख़ेरत) के लिये लाभ उठाया, वह जो भाई पर फ़िदा होने वाला था, और जिसने उनकी सुरक्षा की और...
सैय्यद ताजदार हुसैन ज़ैदी

हज़रत अब्बास (अ) इमाम महदी (अ) की निगाह में इमामे सादिक़ (अ) जो कि स्वंय इस्लामी दुनिया में बिना किसी मदभेद के सबसे बड़े ज्ञानी माने जाते हैं जिनके ज्ञान का चर्चा उनके युग से लेकर आज तक बड़े बड़े विद्वानों की ज़बानों से सुनाई देता है, आप सदैव ही हज़रत अब्बास वफ़ा के शाहकार और कर्बला के प्यासों की आशा की तारीफ़ किया करते थे और सदैव की आपको अच्छे शब्दों में याद करते हुए दिखाई देते हैं। और आशूर के दिन हज़रत अब्बास की वीरता और उनके किये हुए कार्यों को बयान करते हुए दिखाई देते हैं।
आपने हज़रत अब्बासे के बारे में बहुत कुछ फ़रमाया है और आपके इन्ही कथनों में से एक यह है जो आपने बनी हाशिम के चाँद के लिये फ़रमायाः

मेरे चचा अब्बार बिन अली, साहेबे बसीरत और मज़बूत ईमान वाले थे। आपने अपने भाई इमाम हुसैन के साथ जिहाद किया, और इस परीक्षा में सफ़ल रहे और शहीद इस दुनिया से गए। (1)

ध्यान देने वाली बात यह है कि आपके इस कथन में आपने हज़रत अब्बास के लिये तीन बातें कहीं है और यह वही गुण हैं जिनको इमाम सादिक़ (अ) ने अपने चचा अब्बास में देखा और प्रभावित हुएः

1.    होशियारी या बसीरत

इन्सान के अंदर होशियारी या बसीरत उस समय तक पैदा नहीं हो सकती है कि जब तक उसकी राय सही और उसकी सोंच हिदायत पर न हो और यह बसीरत इन्सान को उस समय तक प्राप्त नहीं होती है जब कि इन्सान की नियत में सच्चाई न हो और उसने अहंकार और शारीरकि इच्छाओं को त्याग कर उन पर कंट्रोल न कर लिया हो।

बसीरत हज़रत अब्बास का बहुत सी स्पष्ट गुण था, यह आपकी बसीरत ही थी जिसने आपको समय के  इमाम, इमाम हुसैन (अ) की रकाब में खड़ा कर दिया और आप इज़्ज़त और सम्मान की उस चोटी पर पहुंच गये कि आज आपका नाम इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाता है।

तो अब रहती दुनिया तक जब तक इन्सानी गुणों का महत्व बाक़ी रहेगा और लोग उनका सम्मान करते रहेंगे, जो जब जब भी हज़रत अब्बास का नाम आएगा तो इन्सानों की पेशानी सम्मान में झुक जाया करेगी।

इसी चीज़ के महत्व को बयान करते हुए इमाम सादिक़ (अ)  ने फ़रमाया थाः कि मेरे चचा साहेबे बसीरत थे।

2.    मज़बूत ईमान

 हज़रत अब्बास की दूसरी विशेषता जिसने इमाम सादिक़ (अ) का ध्यान अपनी तरफ़ ख़ींचा वह अपका पक्का ईमान था, आपके मज़बूत ईमान की निशानियों में से एक अपने भाई इमाम हुसैन (अ) की तरफ़ से जिहाद करना था कि जिसका मक़सद ईश्वर की प्रसन्नता के प्राप्त करना था। जैसा कि जब हम कर्बला में आपके रजज़ों को पढ़ते हैं तो उनसे पता चलता है कि इस वीर बहादुर सेनापति के अंदर दुनियावी और माद्दी चाहत एक ज़र्रे के बराबर भी नहीं था और यह आपके मज़बूत ईमान की सबसे बड़ी दलील है।

3.    इमाम हुसैन (अ) के साथ जिहाद

एक और वह गुण जिसको इमाम सादिक़ (अ) ने अपने चचा, कर्बला के विजेता हज़रत अब्बास के बारे में बयान किया है वह सैय्यदुश शोहदा पैग़म्बर के नवासे और जन्नत के जवानों के सरदार की रकाब में जिहाद करना है।

 भाई के मक़सद के लिये जिहाद यह वह सबसे बड़ा सम्मान था जो हज़रत अब्बास (अ) ने प्राप्त किया और उसको बेहतरीन अंदाज़ में पूरा किया और अपनी वीरता और बहादुरी से दिखा दिया की वह वास्तव में सेनापति कहलाये जाने के हक़दार थे। (2)

हज़रत अब्बास (अ) इमाम महदी (अ) की निगाह में

दुनिया के सबसे बड़े सुधारक, ईश्वर की वह हुज्जत जो इस संसार से अत्याचार और ज़ुल्म का नाम व निशान मिटाएगी, वह इमाम जिसकी आज सारी दुनिया प्रतीक्षा कर रही है, आप अपने स्वर्णीय कथन में हज़रत अब्बास के बारे में इस प्रकार फ़रमाते हैं

सलाम हो अबुल फ़ज़्ल पर, अब्बास अमीरुल मोमिनीन के बेटे, भाई से सबसे बड़े हमदर्द जिन्होंने अपनी जान उन पर क़ुरबान कर दी, और गुज़रे हुए कल (दुनिया) से आने वाले कल (आख़ेरत) के लिये लाभ उठाया, वह जो भाई पर फ़िदा होने वाला था, और जिसने उनकी सुरक्षा की और उन तक पानी पहुंचाने की सारी कोशिश की और उनके दोनों हाथ कट गये, ईश्वर उनके हत्यारों “यज़ीद बिन रेक़ाद” और “हैकम बिन तुफ़ैल ताई” पर लान करे। (3)

इमाम ज़माना अलैहिस्सलाम अपने चचा हज़रत अब्बास (अ) के गुणों को इस प्रकार बयान करते हैं

1.    बहुत की कठिन समय में अपने भाई सैय्यदुश शोहदा के साथ हमदर्दी और उनके साथ खड़े रहने, जिसको आज भी तारीख़ में याद किया जाता है और हज़रत अब्बास की वफ़ादारी को क़सीदा पढ़ा जाता है।

2.    आख़ेरत का ध्यान रखना और उसके लिये तक़वे का चुनाव, और मार्गदर्शक इमाम की सहायता।

3.    जन्नत के जवानों के सरदार इमाम हुसैन (अ) के लिये अपने भाईयों और उनके बच्चों की जान की क़ुरबानी देना।

4.    अपने मज़लूम भाई की अपने ख़ून से सुरक्षा।

5.    अहलेबैते हरम और इमाम हुसैन (अ) तक पानी पहुंचाने की कोशिश करना, ऐसे कठिन समय में जब यज़ीद की एक बड़ी सेना इमाम हुसैन तक पानी पहुँचने में रुकावट थी। (4)

*************

1.    ज़ख़ीरतुद दारीन, पेज 123 उमदतुम मतालिम के रिफ़्रेंस के साथ

2.    ज़ख़ीरतुद दारीन, पेज 123 उमदतुम मतालिम के रिफ़्रेंस के साथ

3.    ज़ख़ीरतुद दारीन, पेज 123 उमदतुम मतालिम के रिफ़्रेंस के साथ

4.    अलमज़ार मोहम्मद बिन मशहदी


ज़िन्दगानी हज़रत अबुल फ़ज़्ल पुस्तक से चुना गया।


वक़्त को चार हिस्सों में तकसीम करो | इमाम अली रज़ा (अ.स

$
0
0


 https://www.facebook.com/hamarajaunpur
इमाम अली रज़ा (अ.स ) ने फरमाया की तुम्हे अपने \ |

१. किसी ने तुम्हे पैदा किया है कोई तुम्हारा हाकिम है तुम्हारा रब है इसलिए सबसे पहले वक़्त निकालो तुम्हारे और उसके राब्ते के लिए |
२. तुम दुनिया में अकेले रहने नहीं आये हो तुम इस समाज में दुसरे इंसानों से राबता कायम करो | रिश्तेदार,पड़ोसी, समाज के लोग वगैरह से अच्छे ताल्लुकात रखो ,मुहब्बत बढाओ |
३. अपनी रोज़गार के लिए, ज़रूरीयात ज़िन्दगी के लिए |
४.लजजात ऐ हलाल --घूमो फिरो, क़ुदरत के नज़ारे देखो, बाग़ में जाओ,खेतों को महसूस करो, वगैरह क्यूँ की यह चौथा जो है वो तुम्हे ताक़त देगा पहले के तीन काम अंजाम देने में |


हबीब इस्लामी इतिहास की एक महान हस्ती हैं

$
0
0


हबीब इस्लामी इतिहास की वह महान हस्ती हैं जिनका चेहरा सूर्य की भाति इस्लामी इतिहास में सदैव चमकता रहेगा, क्योंकि आप पैग़म्बर (स) के सहाबियों में से थे और आपने बहुत सी हदीसें पैग़म्बरे इस्लाम (स) से सुन रखीं थी, और दूसरी तरफ़ आपने 75 साल की आयु में कर्बला क


सैय्यद ताजदार हुसैन ज़ैदी

“हबीब इबने मज़ाहिर” का अस्ली नाम “हबीब बिन मज़हर” है। (1) आप एक महान और सम्मानीय क़बीले से संबंधित हैं जिसका नाम इतिहास की पुस्तकों में “बनी असद” बताया गया है, और आप पैग़म्बरे इस्लाम (स) के सहाबियों में से हैं, आप पैग़म्बरे इस्लाम (स) की बेसत से एक साल पहले पैदा हुये, और आपका बचपन उस युग में व्यतीत किया है जब पैग़म्बरे इस्लाम (स) मक्के में लोगों को तौहीद और एकेश्वरवाद का निमंत्रण दे रहे थे, और आपने अपनी जवानी आरम्भिक दिनों से ही पैग़म्बरे इस्लाम (स) की पवित्र शैली को देखा और आपको पाक निमंत्रण को पहचाना और आपके पवित्र दीन इस्लाम से आशना हुये।

हबीब इस्लामी इतिहास की वह महान हस्ती हैं जिनका चेहरा सूर्य की भाति इस्लामी इतिहास में सदैव चमकता रहेगा, क्योंकि आप पैग़म्बर (स) के सहाबियों में से थे और आपने बहुत सी हदीसें पैग़म्बरे इस्लाम (स) से सुन रखीं थी, और दूसरी तरफ़ आपने 75 साल की आयु में कर्बला के पवित्र आन्दोलन में शिरकत की और विलायत एवं पैग़म्बर (स) के हरम की सुरक्षा में अपनी जान निछावर कर दी।

और चूँकि हबीब ने अपने जीवन में पाँच मासूमों को देखा था जिनमें पैग़म्बर इस्लाम (स) इमाम अली (अ) हज़रत फ़ातेमा ज़हरा (स) और इमाम हसन (अ) व इमाम हुसैन (अ) हैं और आपने अपनी आत्मा को उनसे मिला दिया था इसलिये आप मानवी एवं आध्यात्म के उस महान दर्जे पर पहुंच चुके थे जहां पहुंचना हर किसी के बस की बात नही है। (2) इस प्रकार की, इबादत, वीरता, ज्ञान, ज़ोहद और विलायत की सुरक्षा में सबकी ज़बानों पर आपका ही नाम था।

हबीब इबने मज़ाहिर पैग़म्बर (स) के चहीते

रिवायत में है किः पैग़म्बरे इस्लाम (स) एक दिन अपने कुछ सहाबियों के साथ किसी स्थान से गुज़र रहे थे, आपने देखा कि कुछ बच्चे खेल रहे हैं, पैग़म्बर (स) आगे बढ़े और एक बच्चे के पास बैठ गये, और उसके सर पर प्यार से हाथ फेरा, फिर उसके माथे को चूमा, और प्यास से उसके अपने ज़ानू पर बैठाया!

सहाबियों ने जब आपका यह कार्य देखा तो इसका कारण पूछा। आपने फ़रमायाः एक दिन मैंने देखा कि यह बच्चा मेरे हुसैन (अ) के साथ खेल रहा था, और खेलते खेलते “हुसैन” के पैरों के नीचे की मिट्टी उठाता और अपने चेहरे और आँखों पर लगाता। इसलिये मैं भी उसके चाहता हूँ। क्योंकि वह मेरे बेटे को दोस्त रखता है, और जिब्रईल से सूचना दी है किः वह कर्बवा की घटना में मेरे हुसैन (अ) के साथियों और सहायता करने वालों में से होगा। (3)

स्वर्गीय हाजी शेख़ जाफ़र तुस्तरी ने अपनी तक़रीरात में संभावना वयक्त की है कि वह बच्चा हबीब इबने मज़ाहिर थे।

हबीब इबने मज़ाहिर का ज्ञान

पैग़म्बरे इस्लाम (स) के निधन के बाद हबीब ने हज़रत अली (अ) की बैअत की और पैग़म्बरे इस्लाम (स) के बाद इमाम अली (अ) को उनका वास्तविक और पहला ख़लीफ़ा मान लिया, क्योंकि आपने पैग़म्बरे इस्लाम (स) की ज़बानी बहुत बार सुना था कि आपने फ़रमाया «انا مدینة العلم و علی بابها فمن اراد المدینة فلیات الباب » मैं ज्ञान का शहर और अली उसके द्वार हैं, जो भी ज्ञान चाहता है वह उस द्वार से प्रवेश करें। इसलिये आपने मौक़े के ग़नीमत समझा और इमाम अली (अ) के सच्चे शागिर्दों और पक्के सहाबियों में से हो गये। (4) और आपसे बहुत ज्ञान बटोरा।

आप हर प्रकार के ज्ञान जैसे फ़िक़्ह, क़राअत, हदीस, अदबियात (साहित्य) जदल, मुनाज़ेरा में माहिर थे, और इतने माहिर थे कि लोग उनको देख कर आश्चर्य किया करते थे। (5) और आपके ज्ञानों में से एक आपका “बलाया और मनाया” यानी भविष्य की घटनाओं का ज्ञान था।

हबीब इबने मज़ाहिर की वीरता

हबीब इबने मज़ाहिर, वीर, बहादुर और शक्तिशाली व्यक्ति थे, और इमाम अली (अ) के युग में होने वाले सारे युद्धों में आप समिलित हुए और बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका अदा की, और उस ज़माने में आप इमाम अली (अ) के साथियों में कूफ़े के एक बहुत ही बहादुर व्यक्ति माने जाते थे। (6)

आप शाशूरा के दिन भी वीरता और साहस के साथ उमरे साद की सेना के सामने डट गये, और आपने उनको नसीहत देनी शुरू की ताकि यह शाशीरिक इच्छाओं के मारे और दुनिया के क़ैदी किसी प्रकार जाग जाएं।

संक्षेप में यह कह दिया जाए कि हबीब वह व्यक्ति थे जो केवल ईश्वर से डरते थे आपने अपनी सारी शक्ति और साहस के साथ विलायत की सुरक्षा की ठान ली थी और उसके लिये कमर कस ली थी।

हबीब इबने मज़ाहिर की इबादत

हबीब ईश्वर की अराधना करने वाले और धर्मात्मा मनुष्य थे और ईश्वर के आदेशों का पालन करते थे और तक़वा रखते थे, आप पूर्ण क़ुरआन के हाफ़िज़ थे, और हर रात ईश्वर की इबादत किया करते थे। (7)

इमाम हुसैन (अ) के कथानुसारः हर रात्रि एक बार परा क़ुरआन पढ़ा करते थे। (8)

आप वह व्यक्ति थे जिन्होने अपने जीवन की अंतिम रात (आशूर) भी ईश्वर से प्रार्थना करने और इबादत में गुज़ार दी।

हबीब इबने मज़ाहिर का ज़ोहद (वैराग्य)

आप ईश्वर द्वारा हलाल और हराम की गई चीज़ों का ध्यान रखते थे, और एक पवित्र लेकिन सादा जीवन व्यतीत करते थे। आपने दुनिया की चाहत से इतना अधिक दूर थे और आपने ज़ोहद को अपने जीवन में वह स्थान दे दिया था कि कर्बला के मैदान में जितना भी आपको पैसे और जान बच जाने का लालच दिया गया लेकिन आपने कभी भी शत्रु के निमंत्रण को स्वीकार नहीं किया और फ़रमायाः हमारे पास पैग़म्बर (स) के सामने कोई बहाना नहीं है कि हम तो जीवित रह जाएं लेकिन पैग़म्बर (स) का बेटा मज़लूम क़त्ल कर दिया जाये। (9)

निसंदेह यह कहा जा सकता है कि हबीब उन लोगों में से हैं जिनके बारे में इमाम अली (अ) ने फ़रमयाः ارادتهم الدنیا فلم یریدوها (10) दुनिया उनकी तरफ़ आती थी लेकिन उन्होंने दुनिया से मुंह मोड़ लिया था।

हबीब इबने मज़ाहिर हुसैनी आन्दोलन के आरम्भ से शहादत तक

इमाम हसन (अ) की शहादत के बाद शियों ने इमाम हुसैन (अ) को पत्र लिखे और आपसे मोआविया के विरुद्ध युद्ध करने का निमंत्रण दिया, पहला पत्र “सुलैमान बिन मरयम ख़ज़ाई” जो एक शिया थे के घर में लिखा गया, और यह पत्र कूफ़े के चार सम्मानी व्यक्तियों के हस्ताक्षर के साथ “अब्दुल्लाह बिन मसमअ हमदानी” और “अब्दुल्लाह बिन वाल” के माध्यम से मक्के भेजा गया, और उन हस्ताक्षर करने वालों में से एक हबीब भी थे। (11)

इस आधार पर हम यह समझ सकते हैं कि हबीब ने उसी आरम्भ से ही उस ईश्वरीय आन्दोलन के लिये गतिविधियां आरम्भ कर दी थीं। और “मुसलिम बिन औसजा” के साथ जो कूफ़े में गुपचुप तरीक़े से “हज़रत मुसलिम” के लिये लोगो के बैअत ले रहे थे, इस राह में किसी प्रकार की कोताई नहीं की और उनसे जो कुछ भी हो पाया उन्होंने इस आन्दोलन के लिये किया। (12)

हबीब उस मुजाहिद और वीर बूढ़े का नाम है जिसने दृढ़ इरादा कर लिया था कि जिस प्रकार भी संभव होगा वह अपने आप को इमाम हुसैन (अ) की ख़िदमत में कर्बला अवश्य पहुंचाएंगे और अपने इस निश्चय को पूरा करने ले लिये आप रातों को यात्रा करते और दिन में आराम ताकि आप इबने ज़्याद के गुर्गों के हाथों गिरफ़्तार न किये जा सकें, और आख़िरकार आप सात मोहर्रम को कर्बला में इमाम हुसैन (अ) के क़ाफ़िले के साथ मिल गये। (13)

कर्बला पहुंचते ही, आपने इमाम के साथ अपनी वफ़ादारी को दोबारा सिद्ध कर दिया। जब आपने देखा कि इमाम के साथियों की संख्या बहुत कम है और शत्रु बहुत अधिक हैं तो आपने इमाम हुसैन (अ) से फ़रमायाः यहां पास में ही क़बीला बनी असद रहता है अगर आप आज्ञा दें तो में शत्रुओं से पहले उनके पास जाकर आपकी सहयाता के लिये कहूँ, शायद ईश्वर उनका मार्गदर्शन कर दे। आपने इमाम से आज्ञा ली और बनी असद के पास पहुँचे और उनकी नसीहत की। (14)

शहादत

आप शहादत के आशिक़ थे, आपका दिश शहादत चाहता था, आप शबे आशूर ईश्वर की अराधना और प्रार्थना में व्यस्त थे, और प्रतीक्षा कर रहे थे कि किस प्रकार सुबह हो और आशूर का दिन और अपने मौला व आक़ा इमाम हुसैन (अ) लेकिन अपनी जान क़ुरबना करके जामे शहादत नोश कर लें।

आख़िरकार, जान देने का समय आ गया, यह बूढ़ा आशिक़ अपने सीने में जवानों का दिल और हौसला रखता था, अपनी तेज़ तलवार के साथ शत्रु की सेना में घुस गया और जो भी सामने आया उसको नर्क पहुँचायाः और इस प्रकार रजज़ (सिंहनाद) पढ़ाः

मैं हबीब, मज़ाहिर का बेटा हूँ, जब जंग की आग जल जाती है तो, युद्ध के मैदान के एक सवार हूँ, तुम लोग अगरचे लोगों की संख्या में हमसे अधिक हो लेकिन हम तुसमे अधिक वफ़ादार और प्रतिरोधी हैं, हमारी हुज्जत और दलील ऊँची हैं, और हमारी मंतिक स्पष्ट है और हम तुमसे अधिक परहेज़गार और दृढ़ हैं। (15)

हबीब इबने मज़ाहिर उस आयु में भी एक विजेता की भाति तलवार चला रहे थे और आपने शत्रु के 62 लोगों को नर्क पहुंचाया।

प्यास और थकान आप पर हावी होने लगी थी, और उसी समय अचानक “बदील बिन मरयम अक़फ़ानी” ने आप पर हमला किया और आपके सर पर तलवार मारी दूसरे ने भाले से आप पर हमला किया, यहां तक कि अब हबीब घोड़े पर संभल न सके और ज़मीन पर गिर पड़े, आर की दाढ़ी ख़ून से लाल हो गई, उसके बाद “बदील बिन मरयम” ने आपका सर शरीर से अलग कर दिया।

इस बूढ़े आशिक़ की शहादत इमाम हुसैन (अ) के लिये बहुत दुखद थी, आप स्वंय आपके सरहाने पहुंचे, हबीब की शहादत का इमाम पर इतना अधिक प्रभाव हुआ कि आपने फ़रमायाः

احتسب نفسی و حماة اصحابی

अपना और अपने साथियों का सवाब मैं ईश्वर से लूँगा। (16) हे हबीब! तुम महान व्यक्ति थे जो एक रात में क़ुरआन पढ़ा करते थे। (17)

आख़िरकार इमाम हुसैन (अ) के वफ़ादार साधी हबीब इबने मज़ाहिर असदी 75 साल की आयु में दस मोहर्रम सन 61 हिजरी को कर्बला की पवित्र ज़मीन पर शहीद हो गये।

सीख

इतिहास हम सबको सिखाता है, इसीलिये हमको इतिहास को केवस इतिहास के तौर पर नहीं देखना चाहिए बल्कि हमको चाहिए कि महान व्यक्तियों की जीवनी को पढ़ने के बाद उनसे सीख लें और उसपर अपने जीवन में अमल करें।

इमाम हुसैन (अ) के इस वीर, और वफ़ादार साथी के जीवन से जो सीख ली जा सकी है उसकों मैं यहां पर बयान कर रहा हूँ।

कभी सोंचा हैं कि क्यों हबीब जैसे लोग अपने ख़ून की अंतिम बूंद तक विलायत और इमामत की सुरक्षा में डटे रह ते हैं और अपनी सारी हस्ती को उसपर क़ुरबान कर देते हैं?

इसका कारण यह है कि हबीब जैसे लोग अहलेबैत के सच्चे दोस्त और आशिक़ होते हैं, उनका दावा केवल ज़बानी नहीं होता है बल्कि वह कोशिश करते हैं, अक़ीदे, सोंच, अख़लाक़, राजनीतिक समझ, व्यक्तिगत जीवन और समाजिक जीवन में एस प्रकार व्यवहार करें जो अहलेबैत के आदेशानुसार हो।

अतं में ईश्वर से प्रार्थना है कि वह हमको अहलेबैत के दोस्तों में क़रार दे। (आमीन)

**********************
1.    अलरेजाल, तक़ीउद्दीन हसन बिन अली बिन दाऊद हिल्ली।

2.    मजलिसुल मोमिनीन, पेज 308, क़ाज़ी नूरुल्लाह।

3.    बिहारुल अनवार, जिल्द 10, अल्लामा मजलिसी, मुनतख़बु तवारीख़, पेज 278 हाज मोहम्मद हाशिम ख़ुरासानी।

4.    अलमजालिसुल सुन्निया फ़ी मनाक़िब व मसाएबिल इतरतिन नबविया, जिल्द 1, सैय्यद महन अल अमीन।

5.    अमाली मुनतख़बा, पेज 49

6.    अबसारुल ऐन फ़ी अंसारुल हुसैन, पेज 56, मोहम्मद बिन ताहिर समावी

7.    आयानुश शिया, जिल्द 4, पेज 554, सैय्यद महन अल अलमीन

8.    तरजुमा नफ़सुल महमूम, शेख़ अब्बास क़ुमी, पेज 343

9.    रेजाल, कश्शी।

10.    नहजुल बलाग़ा, सैय्यद रज़ी, ख़तुबा हम्माम

11.    इर्शाद, शेख़ मुफ़ीद, जिल्द 2, पेज 34- 35

12.    आयानुश शिया, जिल्द 4, पेज 554, सैय्यद महन अल अलमीन

13.    आयानुश शिया, जिल्द 4, पेज 554, सैय्यद महन अल अलमीन

14.    अबसारुल ऐन फ़ी अंसारुल हुसैन, पेज 57, मोहम्मद बिन ताहिर समावी

15.    तारीख़ तबरी, जिल्द 7, पेज 347

16.    तारीख़ तबरी, जिल्द 7, पेज 349


17.    मुनतहल आमाल, शेख़ अब्बास क़ुमी, पेज 430


Viewing all 658 articles
Browse latest View live


Latest Images