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Channel: हक और बातिल
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किसकी इज़्ज़त की जाय किसकी ना की जाय यह एक बड़ा मसला बन चूका है |

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किसकी इज़्ज़त की जाय किसको दोस्त रखा जाय, किस्से ताल्लुक़ात रखा जाय किससे परहेज़ किया जाय यह आज के दौर में एक बड़ा मुश्किल मसला बन के उभरता जा रहा है | मुसलमान के लिए तो कम से कम यह मसला नहीं होना चाहिए क्यों की न क़ुरआन इस मसले पे चुप है न क़ौल ऐ इमाम (ा.स) | 

उसूलन तो यह सभी जानते हैं की इज़्ज़त बुर्जुर्ग, ग़रीब की आलिम बशर्ते की बा अमल हो ऐसे लोगों की करनी चाहिए | इसमें भी बहुत से शर्तें है लेकिन यह तो तय है की इज़्ज़त या दोस्ती उससे नहीं की जाती जो खुलेआम गुहान ऐ कबीरा को अंजाम देता हो और अगर किसी को उसकी  दौलत की वजह से इज़्ज़त दी गयी तब तो शिर्क जैसे गुनाह में शुमार हो जाता है | 


अफ़सोस का मक़ाम यह है की आज इंसान बा अमल हो या ना हो , गुनाह ऐ कबीरा खुलेआम अंजाम देता हो या ना देता हो कोई मायने नहीं रखता बस अगर वो शख्स दौलत मंद हो तो क़ाबिल ऐ इज़्ज़त हो जाता है | अक्सर देखा गया है की आलिम बा अमल के आस पास कोई नहीं रहता दौलत मंद और शोहरत मंद के आगे पीछे  लोग घुमा करते हैं | 


क्या इसमें भी कोई शक है की ऐसा इंसान जिसने दौलत की वजह से किसी की इज़्ज़त की वो शिर्क करता है और शिर्क एक  ऐसा गुनाह है जो माफ़ नहीं होता | इस इंसानी फितरत से वाक़िफ़ गुनाहगार अपने गुनाहों पे पर्दा डालने के लिए अपनी दौलत का इज़हार करते हुए इज़्ज़त समाज में पाने की कोशिश करता है और ज़्यादातर मामले में कामयाब होता है | 


इसी तरह से आप कहीं बैठ के ज़िक्र ऐ क़ौल ऐ इमाम (अ ) करें तो आपको लोगों को ऐलान कर कर  के बुलाना होगा लेकिन कहीं यह मालूम हो जाय की आज फुलां साहब आ रहे हैं जो मशहूर है किसी की भी खुलेआम इज़्ज़त उतारने के लिए , न मस्जिद देखते हैं न बाजार न सड़क न घर बस नाराज़ हुए की इज़्ज़त खुलेआम उतार दी | ऐसे शख्स  की भी इज़्ज़त लोग खौफ से करते हैं और उसकी बातों को सुनने में उन्हें वक़्त का भी पता नहीं चलता | हकीकत में यह इज़्ज़त करना भी शिर्क है | 


पूरे दिन बार बार अल्लाह औ अकबर कहने वाले मुसलमान को अपने  यह शिर्क करने के  अंदाज़ को ज़िंदगी रहते बदलना ही होगा वरना सिवाय पछतावे के कुछ हासिल नहीं होगा और उस वक़्त न यह दौलत मंद साथ देगा और न ना वो जिसके खौफ से आप ने अल्लाह की हिदायतों को नज़रअंदाज़ किया था | 

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