शिया जामा मस्जिद के इमामे जुमा मौलाना आसिम हुसैन ने आज रमजान की फजीलतों का तजकिरा किया। उन्होंने आमाले रमजान और नमाज के बारे में तफ्सील से बताया। मौलाना आसिम ने नमाज के बाद रमजान में खजूर और गर्म पानी और दूध के इस्तेमाल पर पूछे गये सवाल में उन्होंने बताया रमज़ान के महीने में आहार में पहले की तुलना में बहुत अधिक बदलाव नहीं होना चाहिए और संभव हो तो खाना पीना सादा होना चाहिए। इफ़तार और सहरी में खाने पीने का कार्यक्रम इस प्रकार होना चाहिए कि सामान्य वज़न पर अधिक प्रभाव न पड़े। तले पदार्थों का सेवन कम से कम करना चाहिए, इसलिए कि इससे पाचन तंत्र प्रभावित होता है।
मौलाना आसिम ने यह भी कहा कि इस्लामी धार्मिक ग्रंथों में गर्म पानी, खजूर और दूध से इफ़तार करने की सिफ़ारिश की गई है। पैग़म्बरे इस्लाम (स) और उनके पवित्र उत्तराधिकारियों के पवित्र कथनों में खजूर, पानी और दूध से इफ़तार करने की सिफ़ारिश की गई है। पग़म्बरे इस्लाम (स) ने फ़रमाया है कि जो कोई हलाल खजूर से इफ़तार करेगा, उसकी नमाज़ का पुण्य 400 गुना बढ़ जाएगा।
इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया कि पैग़म्बरे इस्लाम (स) सबसे पहले खजूर से इफ़तार करते थे अगर वह प्राप्त होती थी। ग्रंथों में उल्लेख है कि पैग़्मबरे इस्लाम (स) खजूर से इफ़तार किया करते थे या किसी मीठी चीज़ से, लेकिन अगर यह चीज़े प्राप्त नहीं होती थीं तो गर्म पानी से इफ़्तार किया करते थे।
मौलाना आसिम ने पानी से इफ़्तार करने के संबंध में इमाम सादिक़ (अ) के हवाले से बताते हुए कहा कि आपने फ़रमाया, पानी से इफ़्तार करने से हृदय के पाप धुल जाते हैं। पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने फ़रमाया है कि गर्म पानी अमाशय व यकृत को साफ़ करता है और मुंह को सुगंधित करता है, दांतो और आंखों की पुतलियों को शक्ति प्रदान करता है, इंद्रियों को शांति प्रदान करता है और
सर के दर्द को दूर करता है।
उन्होंने अनस बिन मालिक पैग़म्बरे इस्लाम (स) के इफ़्तार के संबंध में एक कथन का उल्लेख करते हुए दूध की ओर संकेत करते हुए कहते हैं कि पैग़म्बरे इस्लाम (स) के पास पीने वाली चीज़ होती थी जिससे वे इफ़्तार किया करते थे तथा सहरी के लिए भी पीने वाली चीज़ रखते थे और संभव है कि यह दोनों एक ही प्रकार की हों और वह है दूध।
रोजा रखो ताकि स्वस्थ रहो: मौलाना इब्ने अब्बास बाराबंकी। कर्बला सिविल लाइन में नौचंदी जुमेरात के अवसर पर आयोजित मजलिस में कर्बला के इमाम मौलाना इब्ने अब्बास ने कहा कि इस्लाम के महापुरूषों ने रोज़े को शरीर को स्वास्थ्य प्रदान करने वाला, आत्मा को सुदृढ़ करने वाला, पाश्विक प्रवृत्ति को नियंत्रित करने वाला, आत्म शुद्धि करने वाला और बेरंग जीवन में परिवर्तन लाने वाला मानते हैं।
मौलाना इब्ने अब्बास ने आगे कहा कि जो सामाजिक स्वास्थ्य की भूमिका प्रशस्तकर्ता है। रोज़े के उपचारिक लाभ, जिनकी गणना उसके शारीरिक तथा भौतिक लाभों में होती है बहुत अधिक और ध्यानयोग्य हैं। इस्लामी शिक्षाओं में रोज़े के शारीरिक लाभों का भी उल्लेख किया गया है। इस संदर्भ में पैग़म्बरे इस्लाम (स) कहते हैं- रोज़ा रखो ताकि स्वस्थ्य रहो। चिकित्सा विज्ञान के अनुसार स्वस्थ रहने के लिए रोज़ा बहुत लाभदायक है।
यहां तक कि उन देशों में भी जहां रोज़े आदि में विश्वास नहीं किया जाता वहां पर भी चिकित्सक कुछ बीमारों के उपचार के लिए बीमारों को कुछ घण्टों या एक निर्धारित समय के लिए खाना न देने की शैली अपनाते हैं। रोज़ा वास्तव में शरीर के लिए पूर्ण विश्राम और पूरे शरीर की सफ़ाई-सुथराई के अर्थ में है। जिस प्रकार से मनुष्य का हृदय कुछ देर कार्य करता है और फिर एक क्षण विश्राम करता है उसी प्रकार मनुष्य के शरीर को भी ग्यारह महीने तक लगातार कार्य करने के पश्चात एक महीने के विश्राम की आवश्यकता होती है।
मौलाना इब्ने अब्बास ने आगे कहा कि शरीर के अत्यधिक कार्य करने वाले अंगों में से एक, पाचनतंत्र विशेषकर अमाशय है। सामान्य रूप से लोग दिन में तीन बार खाना खाते हैं इसलिए पाचनतंत्र लगभग हर समय भोजन के पाचन, खाद्य पदार्थों का अवशोषण करने और अ तिरिक्त पदार्थों को निकालने जैसे कार्यों में व्यस्त रहता है। रोज़ा इस बात का कारण बनता है कि शरीर का यह
महत्वपूर्ण अंग एक ओर तो विश्राम कर सके और बीमारियों से बचा रहे तथा दूसरी ओर नई शक्ति लेकर शरीर में एकत्रित हुई वसा को, जिसके बहुत नुक़सान हैं, घुला कर कम कर दे। इस्लामी महापुरूषों के अन्य कथनों में मिलता है कि मनुष्य का पाचनतंत्र बीमारियों का घर है और खाने से बचना उसका उपचार है। आज विज्ञान ने यह सिद्ध कर दिया है कि रोज़ा रखने से शरीर की अतिरिक्त वसा घुल जाती है, इससे हानिकारक और अनियंत्रित मोटापा कम होता है। कमर और उसके नीचे के भागों पर दबाव कम हो जाता है तथा पाचनतंत्र, हृदय और हृदय से संबन्धित तंत्र संतुलित हो जाते हैं। इसी प्रकार से रोज़ा शरीर की प्रतिरक्षा व्यवस्था को सुदृढ़ करता है और उसे सतर्क रखता है। इस प्रकार कहा जा सकता है कि रोज़ा सम्पूर्ण शरीर की शुद्धता का कारण बनता है और यह मनुष्य को बहुत सी बीमारियों और ख़तरों से निबटने के लिए तैयार करता है।
अन्त में उन्होंने शहीदाने कर्बला पर दर्दनाक मसायब पेश किये। जिसे सुनकर अजादार रो पड़े। बाद मजलिस अलम का जुलूस निकला। जिसमें आसिम हुसैन, आसिफ हुसैन, शहवेज ने नौहा पढ़ा। कार्यक्रम की समाप्ति पर रजा हुसैन रिजवी ने सभी का आभार व्यक्त किया।