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Channel: हक और बातिल
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ईरान में अमीर और ग़रीब के बीच फासले

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ईरान में अमीर और ग़रीब के बीच फासले को लेकर पहले काफी कुछ पढ़ा था। ईरान पहुंचकर भी मेरी दिलचस्पी क़रीब साढ़े आठ करोड़ आबादी वाले इस मुल्क के स्लम्स में थी। पूरे सफर में जिन आधा दर्जन शहर या क़स्बों से गुज़र हुआ उनमें न भिखारी मिले, न लेबर चौक, न बदहाल लोग, न टूटे-फूटे घर, न मलिन बस्तियां। ये सब कहां चले गए? क्या हमसे छिपाकर रखे गए हैं या कहीं दूर बयाबान में भेज दिए गए हैं। ये सवाल तब तक ज़हन में थे जब तक इमाम ख़ुमैनी रिलीफ फंड का हेडक्वार्टर न घूम लिया। यहां उन पीले डिब्बों का राज़ भी खुल गया जो हर सड़क, दफ्तर, मेट्रो और चौराहे पर लगे हैं।

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सड़को पे लगे कलेक्शन बॉक्स 
ईरान में लोग मदरसे के मौलाना, ऐजेंट या एनजीओ को सदक़ा और ज़कात नहीं देते है और न ही भिखारी को भीख। इसके बदले लोग सार्वजनिक जगहों पर लगे कलेक्शन बाॅक्स में कुछ न कुछ डालते रहते हैं।ये रक़म रुपये के बराबर भी हो सकती है और दस लाख भी। ये तमाम रक़म इमाम ख़ुमैनी रिलीफ फंड के कर्मचारी इकट्ठा करते हैं। रक़म सीधे केंद्रीय ट्रेजरी में जाती है। ये दान ऑनलाइन भी किया जा सकता है। इसके अलावा मुल्क के क़रीब चार लाख सबसे अमीर लोगों पर कम से कम एक ग़रीब परिवार के बच्चों की पूरी पढ़ाई, ट्रेंनिंग और नौकरी लगने तक ख़र्च उठाने की ज़िम्मेदारी दी गयी है। इसमें विदेश में पढ़ाई का ख़र्च भी शामिल है। यानि ये अभ्यर्थी पर है कि वो क्या बनना चाहता है। कैसे बनाना है ये सरकार और स्पांसर देखते हैं। इस पूरी प्रक्रिया पर आईकेआरएफ के लोग और स्वयंसेवी कड़ी नज़र रखते हैं। मौजूदा समय में सात लाख परिवार इस तरह की स्पांसरशिप के दायरे में है। इसके लिए चुने जाने की पहली शर्त है परिवार की मुखिया का महिला होना। यानि प्राथमिकता उन्हें है जिनके परिवार में कमाने वाला पुरुष मुखिया ज़िंदा नहीं है। इसके अलावा युद्ध या सैन्य सेवा में शहीद हुए लोगों के परिवार स्पांसरशिप पाते हैं।

कलेक्शन बाॅक्स के पैसे में पहला अधिकार आपदा पीड़ितों और विस्थापितों का है। इसके अलावा यतीम और बेवा इस पैसे से हर महीने वज़ीफा और घर का ज़रूरी सामान हासिल करते हैं। आईकेआरएफ बेघर लोगों को घर बनाने के लिए ब्याज़मुक्त लोन देता है। इससे पढ़ाई और कारोबार के लिए ब्याज़मुक्त क़र्ज़े हसना यानि ऐसा लोन जो सहूलियत के हिसाब से लौटा दिया जाए, मिलता है। ईरान में मशहूर है कि अगर सरकार से कुछ न मिले तो आईकेआरएफ चले जाओ, कुछ न कुछ मिल जाएगा। इस सारे लेन-देन का हिसाब रखने के लिए आईकेआरएफ का अपना सचिवालय है। इसका सारा कामकाज सीधे सुप्रीम लीडर यानि आयतुल्लाह ख़ामेनेई की निगरानी में है। यानि सरकार का इसमें सीधे दख़ल नहीं है। आईकेआरएफ ईरान के अलावा पाकिस्तान, सोमालिया, सीरिया, लेबनान, म्यांमार और अफ्रीकी देशों में भी यूएन और रेड क्रास के साथ मिलकर सहायता कार्यक्रम चला रहा है।

ईरान में इस पैसे की चोरी गुनाहे अज़ीम है क्योंकि ये ग़रीबों का है। यही वजह है कोई सड़क पर लगी गुल्लक चोरी नहीं करता और न ही ग़रीबों के हक़ में बेईमानी करता है। आईकेआरएफ का दावा है कि उसने पिछले दस साल में ईरान के ग़रीब और अमीर के बीच की खाई को तीन से चार फीसदी तक कम किया है।


एक मज़ेदार बात बैंकिंग सेक्टर की भी पता लगी। यहां के बैंक कारोबार, घर बनाने और कार लेने के अलावा शादी करने के लिए भी लोन देते हैं। इनमें कार, घर और शादी लोन ब्याज़मुक्त है। कारोबारी लोन इस्लामिक बैंकिंग नियम के तहत दिए जाते हैं, यानि मुनाफे में हिस्सेदारी की शर्त पर। डिफाल्टर साबित करदे कि वो लोन लौटाने में मजबूर है तो लोन माफ और अगर न कर पाए तो सीधे जेल। इस दौरान बैंक को हुआ घाटा सरकार को पूरा करना होता है। ईरान में सैकड़ों बैंक हैं और इनमें कोई भी लोन की अर्ज़ी ठुकरा नहीं सकता। इसके चलते ये मुल्क ग़रीबी और बेरोज़गारी से निपटने में बहुत हद तक कामयाब रहा है।

लेखक Zaigham Murtaza



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