“और आपस में झगड़ा न करो (वरना) तुम हिम्मत हार जाओगे और तुम्हरी हवा उखड़ जाएगी।” (सूरए अनफ़ाल, आयत 46)
एक समाज, ख़ानदान या घर को बरबाद करने में झगड़े लड़ाईयों का बहुत बड़ा हाथ होता है। इन झगड़ों के चक्कर में न जाने कितनी ज़िन्दगीयाँ बरबाद हो जाती हैं इस लिये कि जब समाज, ख़ानदान और घर में लड़ाईयाँ रहेंगी तो इसके अफ़राद कभी सुकून से नहीं रह पाएंगे और ज़ाहिर है कि जब सुकून न हो तो सारी तरक़्क़ीयाँ धरी की धरी रह जाएंगी। इस आतम में झगड़े के सब से बड़े नुक़सान की तरफ़ इशारा किया गया है कि लड़ाई झगड़े और बिला वजह के इख़तेलाफ़ से इंसान की हिम्मत पस्त और हैबत ख़्तम हो जाती है। लेहाज़ा मोमिनों को हुक्म दिया गया है कि लड़ाई झगड़ा न करें।
आपसी इख़तेलाफ़ से सब से ज़ियादा फ़ाएदा दुशमन उठाता है। आज भी दुशमन का यही उसूल है (फूट डालो और हुकूमत करो) हर समाज, हर ख़ानदान और हर घर की यह ज़िम्मेदारी है कि झगड़ों को ख़त्म करें और इत्तेहा और औप आपस में अच्छे ताल्लुक़ात बनाऐं ताकि तरक़्क़ी का रास्ता बने और दुशमन शर्मिन्दा और मायूस हो जाये।
हज़रत अली अलैहिस्सलाम इर्शाद फ़रमाते हैः- इख़तेलाफ़ से बचो इस लिये कि लोगों से झगड़ा कर के अलग होने वाला इंसान इस तरह शैतान के मुंह का नुवाला बन जाता है जिस तरह ग़ल्ले से अलग हो जाने वाली बकरी भेड़िये की ख़ुराक हो जाती है। (नेहजुल बलाग़ा)
हदीसः इमाम अली अलैहिस्सलाम इर्शाद फ़रमाते हैः- “जो अपनी आबरु चाहता है वोह झगड़ों से दूर रहे।” हदीस की वज़ाहतः हक़ीक़त है कि लड़ाई झगड़े के ज़रिये इंसान अपनी इज़्ज़त और आबरू से हाथ धो बेठता है। इस के वक़ार और मतानत पर हर्फ़ आ जाता है। इस बात को हम हर रोज़ अपने समाज में देखते रहते हैं। लेहाज़ा अगर आबरू का लेहाज़ और ख़याल है तो जितना हो सके तो इंसान को बिला वजह के झगड़ों और “तू तू में में” से बचना चाहिये। अल्लाह तमाम मोमिनीन की इज़्ज़त और आबरू की हिफ़ाज़त करे। (आमीन)
एक समाज, ख़ानदान या घर को बरबाद करने में झगड़े लड़ाईयों का बहुत बड़ा हाथ होता है। इन झगड़ों के चक्कर में न जाने कितनी ज़िन्दगीयाँ बरबाद हो जाती हैं इस लिये कि जब समाज, ख़ानदान और घर में लड़ाईयाँ रहेंगी तो इसके अफ़राद कभी सुकून से नहीं रह पाएंगे और ज़ाहिर है कि जब सुकून न हो तो सारी तरक़्क़ीयाँ धरी की धरी रह जाएंगी। इस आतम में झगड़े के सब से बड़े नुक़सान की तरफ़ इशारा किया गया है कि लड़ाई झगड़े और बिला वजह के इख़तेलाफ़ से इंसान की हिम्मत पस्त और हैबत ख़्तम हो जाती है। लेहाज़ा मोमिनों को हुक्म दिया गया है कि लड़ाई झगड़ा न करें।
आपसी इख़तेलाफ़ से सब से ज़ियादा फ़ाएदा दुशमन उठाता है। आज भी दुशमन का यही उसूल है (फूट डालो और हुकूमत करो) हर समाज, हर ख़ानदान और हर घर की यह ज़िम्मेदारी है कि झगड़ों को ख़त्म करें और इत्तेहा और औप आपस में अच्छे ताल्लुक़ात बनाऐं ताकि तरक़्क़ी का रास्ता बने और दुशमन शर्मिन्दा और मायूस हो जाये।
हज़रत अली अलैहिस्सलाम इर्शाद फ़रमाते हैः- इख़तेलाफ़ से बचो इस लिये कि लोगों से झगड़ा कर के अलग होने वाला इंसान इस तरह शैतान के मुंह का नुवाला बन जाता है जिस तरह ग़ल्ले से अलग हो जाने वाली बकरी भेड़िये की ख़ुराक हो जाती है। (नेहजुल बलाग़ा)
हदीसः इमाम अली अलैहिस्सलाम इर्शाद फ़रमाते हैः- “जो अपनी आबरु चाहता है वोह झगड़ों से दूर रहे।” हदीस की वज़ाहतः हक़ीक़त है कि लड़ाई झगड़े के ज़रिये इंसान अपनी इज़्ज़त और आबरू से हाथ धो बेठता है। इस के वक़ार और मतानत पर हर्फ़ आ जाता है। इस बात को हम हर रोज़ अपने समाज में देखते रहते हैं। लेहाज़ा अगर आबरू का लेहाज़ और ख़याल है तो जितना हो सके तो इंसान को बिला वजह के झगड़ों और “तू तू में में” से बचना चाहिये। अल्लाह तमाम मोमिनीन की इज़्ज़त और आबरू की हिफ़ाज़त करे। (आमीन)