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Channel: हक और बातिल
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क्या औरतों को पर्दे में रखकर उनका अपमान किया जाता है?

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इस्लाम में औरतों की जो स्थिति है, उस पर सेक्यूलर मीडिया का ज़बरदस्तहमला हमेशा से होता आया है । वे पर्दे और इस्लामी लिबास को इस्लामी क़ानून में स्त्रियों की दासता के तर्क के रूप में पेश करते हैं। इसे समझने के लिए इस बात का अध्यन करना आवश्यक है की पहले की सभ्यताओं में स्त्रियों की क्या स्थिति थी और इस्लाम में क्या है और यह पर्दा प्रथा औरतों को कैसे फायदा पहुंचती है | यहाँ पहले इस बात का जिक्र भी करता चलूँ कीआमतौर पर लोग यह समझते हैं कि पर्दे का संबंध केवल स्त्रियों से है। हालांकि पवित्र क़ुरआन में अल्लाह ने औरतों से पहले मर्दों के पर्दे का वर्णन किया है—
‘‘ईमान वालों से कह दो कि वे अपनी नज़रें नीची रखें और अपनी पाकदामिनी (शील) की सुरक्षा करें। यह उनको अधिक पवित्र बनाएगा और अल्लाह ख़ूब जानता है हर उस काम को जो वे करते हैं।’’ (क़ुरआन, 24:30)
उस क्षण जब एक व्यक्ति की नज़र किसी स्त्री पर पड़े तो उसे चाहिए कि वह अपनी नज़र नीची कर ले।
इस से यह समझ में आता है की इस्लाम में औरत या मर्द का पर्दा स्त्रियों को इज्ज़त देने और उनकी हिफाज़त के लिए रखा गया है और मर्दों के परदे का मकसद भी औरतों की ही हिफाज़त है |


इस्लाम ने स्त्रियों के कैसे इज्ज़त दी देखिये :

बेबिलोनिया सभ्यता में औरतें अपमानित की जातीं थीं, और बेबिलोनिया के क़ानून में उनको हर हक़ और अधिकार से वंचित रखा जाता था। यदि एक व्यक्ति किसी औरत की हत्या कर देता तो उसको दंड देने के बजाय उसकी पत्नी को मौत के घाट उतार दिया जाता था।
यूनानी सभ्यता में औरतों को सभी अधिकारों से वंचित रखा जाता था और वे नीच वस्तु के रूप में देखी जाती थीं। यूनानी देवगाथा में ‘‘पांडोरा’’ नाम की एक काल्पनिक स्त्री पूरी मानवजाति के दुखों की जड़ मानी जाती है। यूनानी लोग स्त्रियों को पुरुषों के मुक़ाबले में तुच्छ जाति मानते थे। यद्यपि उनकी पवित्रता अमूल्य थी और उनका सम्मान किया जाता था, परंतु बाद में यूनानी लोग अहंकार और काम-वासना में लिप्त हो गए। वैश्यावृति यूनानी समाज के हर वर्ग में एक आम रिवाज बन गई।
रोमन सभ्यता अपने गौरव की चरमसीमा पर थी, उस समय एक पुरुष को अपनी पत्नी का जीवन छीनने का भी अधिकार था। वैश्यावृति और नग्नता रोमवासियों में आम थी।
मिस्री सभ्यता में स्त्रियों को शैतान का रूप मानते थे। और इस्लाम से पहले का अरब में औरतों को नीच माना जाता और किसी लड़की का जन्म होता तो कभी-कभी उसे जीवित दफ़न कर दिया जाता था।

इस्लाम ने औरतों को ऊपर उठायाऔर उनको बराबरी का दर्जा दियाऔर वह उनसे अपेक्षा करता है कि वे अपना स्तर बनाए रखें|


स्त्रियों को उनका पर्दा कैसे उनको इज्ज़त दिलवाता है और बुरी निगाहों से महफूज़ रखता है |कैसे पर्दा उनसे दुर्व्यवहार और दुराचरण को भी रोकता है।


मान लीजिए कि समान रूप से सुन्दर दो जुड़वाँ बहनें सड़क पर चल रही हैं। एक केवल कलाई और चेहरे को छोड़कर पर्दे में पूरी तरह ढकी हो और दूसरी पश्चिमी वस्त्र मिनी स्कर्ट (छोटा लंहगा) और ब्लाऊज पहने हुए हो। एक लफंगा किसी लड़की को छेड़ने के लिए किनारे खड़ा हो तो ऐसी स्थिति में वह किससे छेड़छाड़ करेगा। उस लड़की से जो पर्दे में है या जो मिनी स्कर्ट पहने है? स्वाभाविक रूप से वह दूसरी लड़की से दुर्व्यवहार करेगा। ऐसे वस्त्र विपरीत लिंग को अप्रत्यक्ष रूप से छेड़छाड़ और दुर्व्यवहार का निमंत्रण (Provocation, invitation) देते हैं। क़ुरआन बिल्कुल सही कहता है कि पर्दा औरतों के साथ छेड़छाड़ और उत्पीड़न को रोकता है


इस्लाम में बलात्कारियों के लिए मौत की सज़ा :

इस्लामी क़ानून में बलात्कार की सज़ा मौत है। बहुत से लोग इसे निर्दयता कहकर इस दंड पर आश्चर्य प्रकट करते हैं। कुछ का तो कहना है कि इस्लाम एक जंगली धर्म है। एक सरल-सा प्रश्न गै़र-मुस्लिमों से किया गया कि ईश्वर न करे कि कोई आपकी माँ अथवा बहन के साथ बलात्कार करता है और आप को न्यायाधीश बना दिया जाए और बलात्कारी को आपके सामने लाया जाए तो उस दोषी को आप कौन-सी सज़ा सुनाएँगे? प्रत्येक से एक ही उत्तर मिला कि मृत्यु-दंड दिया जाएगा। कुछ ने कहा कि वे उसे कष्ट दे-देकर मारने की सज़ा सुनाएँगे। अगला प्रश्न किया गया कि यदि कोई आपकी माँ, पत्नी अथवा बहन के साथ बलात्कार करता है तो आप उसे मृत्यु-दंड देना चाहते हैं परंतु यही घटना किसी दूसरे की माँ, पत्नी अथवा बहन के साथ होती है तो आप कहते हैं कि मृत्यु-दंड देना जंगलीपन है। इस स्थिति में यह दोहरा मापदंड क्यों है?

पश्चिमी समाज औरतों को ऊपर उठाने का झूठा दावा करता है

  औरतों की आज़ादी का पश्चिमी दावा एक ढोंग है, जिसके सहारे वे उनके शरीर का शोषण करते हैं, उनकी आत्मा को गंदा करते हैं और उनके मान-सम्मान से उनको वंचित रखते हैं। पश्चिमी समाज दावा करता है कि उसने औरतों को ऊपर उठाया। इसके विपरीत उन्होंने उनको रखैल और समाज की तितलियों का स्थान दिया है, जो केवल उन जिस्मफ़रोशों और काम-इच्छुकों के हाथों का एक खिलौना हैं, जो कला और संस्कृति के रंग-बिरंगे पर्दे के पीछे छिपे हुए हैं| अमेरिका को दुनिया का सबसे उन्नत देश समझा जाता है। अबकी उसी देश में बलात्कार की दर हिंदुस्तान जैसे देशों से बहुत अधिक है | औसतन वहाँ हर ३२ सेकेंड में एक बलात्कार होता है और उनमे से केवल ०.८ प्रतिशत पे ही मुक़दमा चलाया जा पाता है |

उस दृश्य की कल्पना कीजिए कि अगर अमेरिका में पर्दे का पालन किया जाता। जब कभी कोई व्यक्ति एक स्त्री पर नज़र डालता और कोई अशुद्ध विचार उसके मस्तिष्क में उभरता तो वह अपनी नज़र नीची कर लेता। प्रत्येक स्त्री पर्दा करती अर्था्त पूरे शरीर को ढक लेती सिवाय कलाई और चेहरे के। इसके बाद यदि कोई उसके साथ बलात्कार करता तो उसे मृत्यु-दंड दिया जाता। ऐसी स्थिति में क्या अमेरिका में बलात्कार की दर बढ़ती या स्थिर रहती या कम होती?

यह और बात है की जिनको पर्दा नहीं करना होता है वो सीधे इसी बात से इनकार कर देते हैं की अर्धनग्न स्त्री के बाज़ारों में घूमने से और बलात्कार या उनकी शान में लोगों द्वारा बदकलामी का कोई रिश्ता नहीं है लेकिन हर समझदार व्यक्ति इस बात को समझता भी है और मानता भी है तभी तो स्त्रियों का पर्दा भारतीय सभ्यता में भी हर धर्म के लोगों में मौजूद है | हाँ इन पर्दों की शक्ल अलग हुआ करती है और तरीका अलग होता है |


अंतमें यह भी समझ लेना आवश्यक है की इस्लाम में पर्दा क्या है और कैसे किया जाए?


क़ुरआन की सूरा नूर में कहा गया है—‘‘और अल्लाह पर ईमान रखने वाली औरतों से कह दो कि वे अपनी नज़रें नीची रखें और अपनी पाकदामिनी (शील) की सुरक्षा करें और वे अपने बनाव- श्रृंगार और आभूषणों को न दिखाएँ,इसमें कोई आपत्ति नहीं जो सामान्य रूप से ज़ाहिर हो जाए। और उन्हें चाहिए कि वे अपने सीनों पर ओढ़नियाँ ओढ़ लें और अपने पतियों, बापों, अपने बेटों....के अतिरिक्त किसी के सामने अपने बनाव-श्रृंगार प्रकट न करें।’’ (क़ुरआन, 24:31)


पर्दे के लिए आवश्यक शर्तें :

पवित्र क़ुरआन और हदीस (पैग़म्बर के कथन) के अनुसार पर्दे के लिए निम्नलिखित बातों का ध्यान देना आवश्यक है—
(i) पहला शरीर का पर्दा है जिसे ढका जाना चाहिए। यह पुरुष और स्त्री के लिए भिन्न है। पुरुष के लिए नाभि (Navel) से लेकर घुटनों तक ढकना आवश्यक है और स्त्री के लिए चेहरे और हाथों की कलाई को छोड़कर पूरे शरीर को ढकना आवश्यक है। यद्यपि वे चाहें तो खुले हिस्से को भी छिपा सकती हैं। इस्लाम के कुछ आलिम इस बात पर ज़ोर देते हैं कि चेहरा और हाथ भी पर्दे का आवश्यक हिस्सा है।
अन्य बातें ऐसी हैं जो स्त्री एवं पुरुष के लिए समान हैं।

(i) धारण किया गया वस्त्र ढीला हो और शरीर के अंगों को प्रकट न करे।

(ii) धारण किया गया वस्त्र पारदर्शी न हो कि कोई शरीर के भीतरी हिस्से को देख सके।

(iii) पहना हुआ वस्त्र ऐसा भड़कीला न हो कि विपरीत लिंग को आकर्षित या उत्तेजित करे।

(iv) पहना हुआ वस्त्र विपरीत लिंग के वस्त्रों की तरह न हो।



पर्दा दूसरी चीज़ों के साथ-साथ इंसान के व्यवहार और आचरण का भी पता देता है |पूर्ण पर्दा, नैतिक व्यवहार और आचरण को भी अपने भीतर समोए हुए है। कोई व्यक्ति यदि केवल वस्त्र की कसौटियों को अपनाता है तो वह पर्दे के सीमित अर्थ का पालन कर रहा है। वस्त्र के द्वारा पर्दे के साथ-साथ आँखों और विचारों का भी पर्दा करना चाहिए। किसी व्यक्ति के चाल-चलन, बातचीत एवं व्यवहार को भी पर्दे के दायरे में लिया जाता है।

पवित्र क़ुरआन की सूरा अल अहज़ाब में उल्लेख किया गया है—
‘‘ऐ नबी! अपनी पत्नियों, पुत्रियों और ईमान वाली स्त्रियों से कह दो कि वे (जब बाहर जाएँ) तो ऊपरी वस्त्र से स्वयं को ढाँक लें। यह अत्यन्त आसान है कि वे इसी प्रकार जानी जाएँ और दुर्व्यवहार से सुरक्षित रहें और अल्लाह तो बड़ा क्षमाकारी और बड़ा ही दयालु है।’’ (क़ुरआन, 33:59)

इसी भी देखें बेटियाँ कृपया ध्यान दें

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