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Channel: हक और बातिल
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समाज में औरत का अहेम रोल

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DSC02068समाज में औरत का अहेम रोल….सक़लैन बाक़री

औरत के विषय को आज की दुनिया का एक महत्वपूर्ण विषय कहना चाहिये जो हर मुल्क, हर कल्चर, हर सुसॉईटी का विषय है लेकिन अफ़सोस की बात है कि आज तक किसी भी मुल्क और सुसॉइटी में इस विषय पर इस तरह बात नहीं की गई और उसे इस तरह बयान नहीं किया गया जो उसका अधिकार था।

 

दुनिया की हर सुसॉईटी और ख़ास कर इस्लामी सुसॉईटी में औरत का बहुत बड़ा रोल है इस लिये उसे जितना अच्छी और सही तरह बयान किया जाए जाएगा उतना ज़्यादा सुसॉईटी और मुल्क के लिये अच्छा है। आज के इन्सानी समाज में औरत बहुत मज़लूम है, मैंने इस बारे में बहुत विचार किया है और बहुत बातें हैं जो इस बारे में, मैं कह सकता हूँ। आज भी इस महत्वपूर्ण विषय को महत्व नहीं दिया जाता और जो लोग इस विषय पर बात करते भी हैं उनमें अधिकतर ऐसे होते हैं जो केवल दिखावे के तौर पर करते हैं। दुनिया को यह बताने के लिये कि हमें औरत की कितनी फ़िक्र है, और अक्सर लोग जब इस विषय पर बात करते हैं तो वह औरत को उसी नज़र से देखते हैं और बयान करते हैं जिस नज़र से वेस्टर्न कल्चर नें बयान किया है, औरत की श्रेष्ठता क्या है? उसकी ज़रूरत क्यों है? घर में, समाज में और मुल्क में उसका रोल क्या है? इसे बहुत कम बयान किया गया है जिसकी वजह से हमें काफ़ी नुक़सान भी हुआ है क्योंकि जब औरत को यह पता नहीं होगा कि इन्सानी सुसॉईटी में, फ़ैमिली और मुल्क में उसका क्या रोल है तो वह उस रोल को नहीं निभा पाएगी और उसका असर यह होगा कि इन्सान पीछे रह जाएगा।


अगर एक मुल्क तरक़्क़ी के रास्ते पर चलना चाहता है, हर मैदान में आगे बढ़ना चाहता है तो वह इन्सानों की सहायता के बिना आगे नहीं बढ़ सकता और जब इन्सानों की बात होती है तो उसमें केवल मर्द नहीं होते बल्कि औरतें भी होती हैं क्योंकि बहुत से काम मर्दों के बस में नहीं हैं उन्हें औरते ही अच्छी तरह से कर सकती हैं इसलिये वह काम औरतों के द्धारा ही किये जा सकते हैं। ख़ुद औरत को पता होना चाहिये कि किस जगह उसका क्या रोल है? ख़ास कर एक मुसलमान औरत को मालूम होना चाहिये कि इस्लाम नें उसे क्या अधिकार दिये हैं? इस्लाम उसे कहाँ कहाँ आगे देखना चाहता है? इस्लाम नें किस जगह उसका क्या रोल बताया है? ताकि वह सही जगह पर अपना सही रोल निभा सकें। अगर औरतों को इतना महत्व नहीं दिया जाता, जितना दिया जाना चाहिये तो उसमें केवल मर्दों का दोष नहीं है बल्कि ख़ुद औरतों का भी दोष है क्योंकि उन्होंनें कभी यह जानने की कोशिश ही नहीं की कि उनकी क्या हैसियत है? अगर वह ख़ुद अपने आप को नहीं जानेंगी, अपनी हैसियत को नहीं समझेंगी, अपना डिफ़ेंस ख़ुद नहीं करेंगी तो वह लोग जिनकी नज़र में औरत की कोई औक़ात नहीं है वह हमेंशा उसे खिलौना समझते रहेंगे और उस पर अत्याचार करते रहेंगे। औरतों को मालूम होना चाहिये कि इन्सानी क़ाफ़िले को आगे ले जाने में जितनी मर्द की साझेदारी है उतना ही औरत का भी हाथ है।


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