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Channel: हक और बातिल
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पैगम्बर(स.) ने ज़बान काटने का आदेश दिया तो हजरत अली ने क्या किया ?

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एक मरतबा पैगम्बर मोहम्मद(स.) अपने सहाबियों के साथ मस्जिद में बैठे हुए थे कि वहाँ एक अनजान शख्स आया और उन्हें अपशब्द कहने लगा। पैगम्बर(स.) ने अपने सहाबियों की तरफ देखा और कहने लगे तुममें से कौन है जो इसकी ज़बान काट सकता है? यह सुनकर दो तीन लोग तलवार व खंजर निकालकर खड़े हो गये। लेकिन पैगम्बर(स.) ने सबको आगे बढ़ने से रोक दिया और फिर अपना सवाल दोहराया। इसबार हज़रत अली(अ.) खड़े हुए लेकिन उनके हाथ में न तो तलवार थी और न ही खंजर। उन्होंने कहा अगर आपकी इजाज़त हो तो मैं उसकी ज़बान काट दूं। पैगम्बर(स.) ने हज़रत अली(अ.) को इजाज़त दे दी।

हज़रत अली(अ.) उस अपशब्द कहने वाले की तरफ बढ़े। उसका हाथ पकड़ा और दूर ले गये। कुछ देर अकेले में उससे बात करते रहे और फिर वह अपने रास्ते चला गया जबकि हज़रत अली(अ.) वापस आ गये। ये देखकर मजमे में कानाफूसी होने लगी कि जिस व्यक्ति की ज़बान काटने का पैगम्बर(स.) ने आदेश दिया था उसे हज़रत अली(अ.) ने यूं ही निकल जाने दिया। लेकिन पैगम्बर(स.) ने हज़रत अली(अ.) से कोई सवाल नहीं किया बस मन्द मन्द मुस्कुराते रहे।

फिर अगले दिन लोगों ने फिर उस अपशब्द कहने वाले को देखा लेकिन इस दशा में कि वो आज पैगम्बर(स.) की और इस्लाम की तारीफें कर रहा है। अब पैगम्बर(स.) ने मजमे के सामने हज़रत अली(अ.) से पूछा तो हज़रत अली(अ.) ने जवाब दिया कि कल मैंने इस व्यक्ति से अच्छा व्यवहार किया, इससे मोहब्बत से पेश आया और इस्लाम का पैगाम सुनाया तो इसने प्रभावित होकर इस्लाम कुबूल कर लिया। अब पैगम्बर(स.) ने मजमे की तरफ देखकर मुस्कुराते हुए फरमाया कि ज़बान काटने से मेरा मतलब यही था कि इसके दिल में अपने लिये इतना प्रेम जागृत कर दो कि जो ज़बान अपशब्द कह रही है वही ज़बान तारीफें करने लगे। अली(अ.) ने मेरी बात को समझा और यही किया। इस्लाम तलवार व खंजर के ज़ोर पर लोगों को अपने सामने सर झुकाने की बात नहीं सिखाता बल्कि प्रेम के बल पर दिलों पर राज करने का संदेश देता है। यही दीने इस्लाम की सच्ची शिक्षा है।




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