
घ्रणित मैथुनः
फक़ीहों (विद्धानों) ने आठ मौकों पर मैथुन करने को मक्रूह करार दिया है।
1.चन्द्र ग्रहण की रात
2.सूर्य ग्रहण का दिन
3.सूर्य के पतन (गिराव अर्थात (12) बजे के आस-पास) के समय (ब्रहस्पतिवार के अतिरिक्त किसी दिन में)।
4.सूर्य के डूबते समय, जब तक की लाली न छट जाये।
5.मुहाक़ की रातों में (अर्थात चाँद के महीने की उन दो या तीन रातों में जब चाँद बिल्कुल नहीं दिखाई देता)
6.सुबह होने से लेकर सूरज निकलने तक।
7.रमज़ान के अतिरिक्त हर चाँद के महीने की चाँद रात को
8.हर माह की पन्द्रहवीं रात को इस के अतिरिक्त विद्धानों ने कुछ और मौक़ो पर भी मैथुन को घ्रणित बताया है।
1.जैसे सफर की हालत में जब कि स्नान के लिए पानी न हो।
2.काली, पीली या लाल आंधी चलने के समय।
3.ज़लज़ले (भूकंप) के समय। (205)
मोअतबर हदीस (यक़ीन करने योग्य हदीसों) में मिलता है कि निम्नलिखित मौक़ों पर मैथुन करना मक्रूह (घ्रणित) है।
1.सुबह से सूर्य निकलने (सूर्योदय) तक (206)
2.सूर्यास्त से लेकर लाली खत्म होने तक
3.सूर्य ग्रहण के दिन
4.चन्द्र ग्रहण के दिन
5.उस रात या दिन में जिसमें काली, पीली या लाल आँधी आये या भूकंप मसहूस हो, खुदा की क़सम यदि कोई व्यक्ति इन मौकों पर मैथुन करेगा और उससे सन्तान पैदा होगी तो उस संतान में एक भी आदत ऐसी नहीं देखेगा जिस से (प्रसन्ता) हासिल हो क्योंकि उसने खुदा के ग़ज़ब की निशानियों को कम समझा। ( तहज़ीब अल इस्लाम पेज 115)
इन क़ानूनो के ज़ाहरी कारण यह है कि चन्द्र ग्रहण और सूर्य ग्रहण ज़मीनी निज़ाम पर लाज़मी (अनिवार्य) रूप से अपना असर छोड़ते हैं। अतः इस बात का डर है कि ऐसे मौके पर गर्भ ठहरने की सूरत में बच्चे मे कुछ ऐसी कमियाँ पैदा हो जायें जो माता-पिता के ज़हनी सुकून को बरबाद कर दें, जिसको प्राकृतिक धर्म (इस्लाम) पसन्द नहीं करता----- शायद इसी लिए इस्लाम धर्म ने उपर्युक्त मौक़ो पर मैथुन क्रिया को घ्रणित करार दिया गया है।
